COVID-19 मौतें | उड़ीसा हाईकोर्ट ने मेडिकल लापरवाही के लिए राज्य को मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
26 March 2022 11:35 AM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने चिकित्सा लापरवाही के लिए एक राज्य द्वारा संचालित चिकित्सा सुविधा यानी वीर सुरेंद्र साईं इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (VIMSAR) को जिम्मेदार ठहराया है। इस मामले में दो COVID-19 रोगियों की मौत हो गई थी।
चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस आर.के. पटनायक ने कहा,
"वर्तमान मामले में न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत और संरक्षित पीड़ितों के स्वास्थ्य के अधिकार के उल्लंघन से निपट रहा है। पं. परमानंद कटारा बनाम भारत संघ और अन्य, 1989 एआईआर 2039 और पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (1996) 4 SCC 37 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसी भी व्यक्ति को सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में चिकित्सा देखभाल के पर्याप्त मानक से वंचित नहीं किया जा सकता है। संसाधनों की कमी का बहाना सुप्रीम कोर्ट द्वारा कभी स्वीकार नहीं किया गया।"
संक्षेप में तथ्य:
जुलाई, 2021 में न्यायालय ने VIMSAR में COVID-19 के दौरान पीड़ितों के इलाज में मेडिकल लापरवाही के आरोपों की जांच करने के लिए पूर्व जिला न्यायाधीश श्री ए.बी.एस. नायडू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में दर्ज किया गया कि दो पीड़ितों के मामलों को छोड़कर शेष ग्यारह मामलों में रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री ने मेडिकल लापरवाही और VIMSAR द्वारा खामियों को स्थापित नहीं किया। फिर भी रिपोर्ट में कहा गया कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि पीड़ितों की मौत इलाज के दौरान हुई थी। उक्त दो पीड़ितों के लिए रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि मुआवजा के तौर पर उनमें से प्रत्येक को उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के माध्यम से उचित पहचान पर 5 लाख का भुगतान किया जाए।
न्यायालय द्वारा अवलोकन और निर्देश:
कोर्ट ने रिपोर्ट को ध्यान से देखने के बाद पाया कि जांच प्राधिकरण (ईए) ने रखे गए सबूतों का एक उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण पाया और दो रोगियों/पीड़ितों की मौत के बारे में सही निष्कर्ष पर पहुंचा, जो डॉक्टरों की मेडिकल लापरवाही के कारण हुई है। यह माना गया कि उक्त अस्पताल में किसी विशेष डॉक्टर की मेडिकल लापरवाही को इंगित करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है, उनकी मृत्यु के लिए सामूहिक जिम्मेदारी संस्थान पर ही लागू होनी चाहिए।
कोर्ट ने दो रिट याचिकाओं यानी रीपक कंसल बनाम भारत संघ और गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ में 30 जून 2021 के एक सामान्य निर्णय का संदर्भ दिया। इसमें भारत के सुप्रीम कोर्ट ने दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) केंद्र और राज्य सरकार को COVID-19 महामारी के पीड़ितों के परिवारों को अनुग्रह राशि प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग वाली याचिकाओ का निपटारा किया।
यह पीटी में निर्धारित अनुपात पर भी बहुत अधिक निर्भर करता है। परमानंद कटारा बनाम भारत संघ, एआईआर 1989 एससी 2039 और पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (1996) 4 एससीसी 37, जिसके अनुरूप किसी भी व्यक्ति को सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मेडिकल देखभाल के पर्याप्त मानक से वंचित नहीं किया जा सकता है। इसने कटारा (सुप्रा) में की गई टिप्पणियों का हवाला दिया, जिसमें लोगों के लिए चिकित्सा सुविधाएं सुनिश्चित करने में राज्य की भूमिका पर बल दिया गया था।
कोर्ट ने कहा,
"एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों के कल्याण को सुरक्षित करना है। लोगों के लिए पर्याप्त मेडिकल सुविधाएं प्रदान करना कल्याणकारी राज्य में सरकार द्वारा किए गए दायित्वों का एक अनिवार्य हिस्सा है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए राज्य पर अनुच्छेद 21 एक दायित्व लागू करता है। इस प्रकार मानव जीवन का संरक्षण सर्वोपरि है। राज्य द्वारा संचालित सरकारी अस्पताल और उसमें कार्यरत मेडिकल अधिकारी मानव जीवन के संरक्षण के लिए मेडिकल सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य हैं। सरकारी अस्पताल द्वारा ऐसे उपचार की आवश्यकता वाले व्यक्ति को समय पर मेडिकल उपचार प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन के अधिकार की गारंटी का उल्लंघन होता है।"
नतीजतन, कोर्ट ने माना कि वर्तमान मामला दो पीड़ितों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मुआवजे के दावे से संबंधित है और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से पूरी तरह से समर्थित है। न्यायालय ने ईए द्वारा निकाले गए निष्कर्षों पर संतोष व्यक्त किया, जो उसके सामने रखे गए सबूतों पर आधारित है।
तदनुसार, न्यायालय निम्नलिखित निर्देश देने के लिए आगे बढ़ा:
1. 15 अप्रैल, 2022 को या उससे पहले राज्य पीड़ितों (यदि जीवित हैं) और पीड़ितों के परिजनों को COVID-19 आपदा के कारण अनुग्रह राशि के रूप में 50,000 / - का भुगतान करेगा, जिनके नाम हैं जस्टिस नायडू, सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है;
2. मेडिकल लापरवाही के कारण मरने वाले दोनों पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे के रूप में प्रत्येक को पांच लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। यह 50,000/- रुपये की अनुग्रह राशि के अतिरिक्त होगी जो उक्त परिवारों को देय होगी।
इसके अलावा, इसने VIMSAR को दो मई, 2022 को या उससे पहले अपने मेडिकल अधीक्षक के माध्यम से उपरोक्त निर्देशों के अनुपालन का एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। यदि उपरोक्त तिथि तक अनुपालन का हलफनामा दायर नहीं किया जाता है तो न्यायालय की रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि स्वचालित रूप से उचित निर्देशों के लिए न्यायालय के समक्ष तुरंत एक नोट रखें।
केस शीर्षक: ज्ञानदत्त चौहान बनाम सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, ओडिशा सरकार
मामला संख्या: डब्ल्यू.पी.(सी) 2021 की जनहित याचिका संख्या 17152
निर्णय दिनांक: 23 मार्च 2022
कोरम : मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति आर.के. पटनायक
जजमेंट लेखक: चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर
याचिकाकर्ता के वकील: ज्ञानदत्त चौहान, याचिकाकर्ता-इन-पर्सन
प्रतिवादी के लिए वकील: पी.के. मुदुली, अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (ओरि) 34
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