अदालतों को डिफॉल्ट के बजाय मैरिट के आधार पर मामले को निपटाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

Brij Nandan

28 Jun 2022 11:50 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने कहा कि अदालतों को मामलों को डिफ़ॉल्ट के बजाय मैरिट के आधार पर निपटाने का प्रयास करना चाहिए और जब कोई मामला पेश किया जाता है तो हाइपरटेक्निकल दृष्टिकोण का उपयोग करने से बचना चाहिए।

    जस्टिस सी.एस. डायस ने यह देखने के बाद कहा कि एक निचली अदालत ने मनी सूट में एक लिखित बयान को समय पर प्रस्तुत करने की अनदेखी की थी, क्योंकि इसमें कुछ औपचारिक दोष थे।

    पीठ ने कहा,

    "मुझे लगता है कि निचली अदालत द्वारा अपनाया गया पाठ्यक्रम अति-तकनीकी और अनुचित है, खासकर जब याचिकाकर्ताओं ने निचली अदालत द्वारा अनुमत निर्धारित समय अवधि के भीतर लिखित बयान दायर किया था। निचली अदालत को याचिकाकर्ताओं को एक अवसर देना चाहिए था। आवेदन को खारिज करने का कठोर कदम उठाने के बजाय, लिखित बयान में डिफॉल्ड में सुधार करें। साथ ही अदालतों को डिफ़ॉल्ट के बजाय मैरिट के आधार पर मामले को निपटाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।"

    प्रतिवादी ने यहां याचिकाकर्ताओं से धन की वसूली के लिए एक डिक्री की मांग करते हुए एक अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायाधीश के समक्ष एक मुकदमा दायर किया था। चूंकि याचिकाकर्ताओं को एकतरफा सेट किया गया था, इसलिए उन्होंने एकतरफा आदेश को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया। आदेश को इस शर्त पर रद्द कर दिया गया कि याचिकाकर्ता अपना लिखित बयान 17.12.2018 को या उससे पहले दाखिल करें।

    उन्होंने उक्त तिथि को लिखित बयान दाखिल किया, लेकिन उसमें एक औपचारिक खामी थी।

    निचली अदालत ने आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोई लिखित बयान दाखिल नहीं किया गया था और इस तरह एकतरफा आदेश की पुष्टि की।

    इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट बीजू वर्गीज अब्राहम और प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट जाकिर हुसैन पेश हुए।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने समय पर अपना लिखित बयान दाखिल किया था, फिर भी निचली अदालत ने यह कहते हुए आवेदन को खारिज कर दिया कि कोई लिखित बयान दाखिल नहीं किया गया था।

    उपलब्ध दस्तावेजों और पक्षों की दलीलों पर गौर करने पर जज ने कहा कि निचली अदालत को याचिकाकर्ताओं को सीधे आवेदन को खारिज करने के बजाय लिखित बयान में डिफॉल्ड को ठीक करने का अवसर देना चाहिए था। इसे एक तकनीकी और अनुचित कदम बताते हुए याचिका को स्वीकार किया गया और आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया।

    याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर लिखित बयान में डिफॉल्ड को ठीक करने और निचली अदालत के समक्ष लिखित बयान पेश करने की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: ज़रीता एशलेन रोचा एंड अन्य बनाम एन मैरी वर्गीस

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 306

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