"अदालतें पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं और राजनीतिक नेता रैलियों का आयोजन कर रहे हैं?": बॉम्बे हाईकोर्ट ने COVID-19 के बीच राजनीतिक रैलियों के आयोजन पर आपत्ति जताई

LiveLaw News Network

30 Jun 2021 9:53 AM GMT

  • अदालतें पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं और राजनीतिक नेता रैलियों का आयोजन कर रहे हैं?: बॉम्बे हाईकोर्ट ने COVID-19 के बीच राजनीतिक रैलियों के आयोजन पर आपत्ति जताई

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को COVID-19 महामारी के बीच पूरे महाराष्ट्र राज्य में राजनीतिक रूप से संचालित रैलियों पर कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने इसके साथ ही रैलियों में शामिल राजनेताओं की तुलना फर्जी टीकाकरण शिविरों को आयोजित करने वाले लोगों से किया।

    पीठ राज्य में COVID19 प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने स्वत: संज्ञान मामले में कहा कि क्या वे (राजनेता) फर्जी टीकाकरण शिविर आयोजित करने वालों की तुलना में कम जिम्मेदार हैं? सभी लोग राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश में लगे पड़े हैं।

    कोर्ट ने राज्य सरकार से ऐसी रैलियों को रोकने के लिए योजना बनाने के लिए कहा कि COVID-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए किसी भी राजनीतिक रैलियों को रोकने के लिए आपको अपनी मशीनरी को सक्रिय करना होगा। यदि आप इसे संभाल नहीं सकते हैं तो यह काम अदालत द्वारा किया जाएगा। हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम अदालतों को बंद कर रहे हैं, हम पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं और ये राजनीतिक नेता रैलियां कर रहे हैं।

    दरअसल पिछले हफ्ते, हजारों लोगों ने सीबीडी बेलापुर इलाके में प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि निर्माणाधीन नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम स्थानीय नेता दिवंगत डीबी पाटिल के नाम पर रखा जाए। प्रदर्शनकारियों ने हवाई अड्डे का नाम शिवसेना के दिवंगत प्रमुख बाल ठाकरे के नाम पर रखने के फैसले को रद्द करने की मांग की।

    इस प्रस्ताव का विरोध करने के लिए रैली में स्थानीय लोगों के साथ-साथ कुछ राजनीतिक नेता भी शामिल हुए थे, जिसमें हजारों प्रदर्शनकारियों ने सीबीडी बेलापुर में सिडको के कार्यालय भवन का घेराव करने की कोशिश की।

    कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों की संख्या पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि,

    "हमने सोचा कि रैली में 5,000 लोग होंगे, लेकिन 25,000 लोग शामिल हुए। आप COVID-19 का प्रबंधन कैसे करेंगे? क्या यह रैली करने का समय है? और क्या मुद्दा है? हवाई अड्डे का नामकरण। क्या COVID19 के खत्म होने तक इंतजार नहीं किया जा सकता?"

    खंडपीठ ने कहा कि हवाई अड्डे का काम भी पूरा नहीं हुआ , लेकिन नामकरण का मुद्दा पहले से ही इतना महत्व प्राप्त कर चुका है।

    पीठ ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विमुक्त जाति, घुमंतू जनजाति और विशेष पिछड़ा वर्ग के लोगों को पदोन्नति में 33 प्रतिशत आरक्षण पर इस साल की शुरुआत से हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि राज्य पहले ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया चुका है (शायद कहने का मतलब है कि उस मुद्दे पर रैलियां निकालने की कोई जरूरत नहीं थी) और पूछा कि ये राजनीतिक नेता अपने मतदाताओं के सामने कब जाएंगे और कहेंगे कि मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष है। सर्वोच्च न्यायालय को ही अंतिम निर्णय लेना है।

    हवाई अड्डा विवाद

    समाचार रिपोर्टों के मुताबिक हवाई अड्डे का नाम शिवसेना के दिवंगत प्रमुख बाल ठाकरे के नाम पर रखने के प्रस्ताव को पहले नवी मुंबई की योजना एजेंसी सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (सिडको) की बोर्ड बैठक में मंजूरी दी गई थी। पिछले साल दिसंबर में राज्य के शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने सिडको को पत्र लिखकर हवाई अड्डे का नाम दिवंगत बाल ठाकरे के नाम पर रखने का प्रस्ताव भेजने को कहा।

    इस महीने की शुरुआत में राज्य सरकार ने यह भी घोषणा की कि हवाई अड्डे का नाम बाल ठाकरे के नाम पर रखा जाएगा। वहीं प्रदर्शनकारियों की मांग है कि निर्माणाधीन नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम स्थानीय नेता दिवंगत डीबी पाटिल के नाम पर रखा जाए।

    Next Story