"कोर्ट कमसिन उम्र की लड़कियों का संरक्षक है जो परिणामों को जाने बिना संरक्षण याचिका दायर करती हैं": हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को यह पता करने का निर्देश दिया कि लड़की निर्णय लेने में सक्षम है या नहीं
LiveLaw News Network
1 Aug 2021 4:26 PM IST
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि न्यायालय नाबालिग लड़कियों या कमसिन उम्र की लड़कियों का अभिभावक भी है, जिन्हें कम उम्र के कारण प्रेमासक्ति के वश में तथा लिव-इन-रिलेशनशिप के आधार पर याचिका दायर करने के परिणामों के न जानने के कारण एक पुरुष द्वारा बहकाया भी जा सकता है।
न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने आगे कहा कि जहां लड़की या तो नाबालिग है या उसकी उम्र 18 साल के आसपास है, लिव-इन-रिलेशनशिप के आधार पर किसी भी याचिका का निपटारा करने से पहले, कोर्ट को लड़की के माता-पिता को नोटिस देना होगा या लड़की का बयान दर्ज करने के लिए इलाका मजिस्ट्रेट को दिशानिर्देश जारी करना होगा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह संरक्षण याचिका दायर करने के परिणाम को समझ चुकी है और क्या वह स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है?
संक्षेप में मामला
कोर्ट आईपीसी की धारा 420, 198, 199, 200, 120-बी के तहत दर्ज प्राथमिकी में अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
याचिकाकर्ता सुजाता ने शुरू में सह-अभियुक्त गौरव के साथ एक आपराधिक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वह उसके (गौरव के) साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में है और दोनों को सुरक्षा प्रदान की जाए, हालांकि, उक्त याचिका को वापस लेने के रूप में खारिज कर दिया गया था, क्योंकि कोर्ट उनके तकों से संतुष्ट नहीं हो सका था।
इसके बाद, याचिकाकर्ता और सह-आरोपी गौरव ने पहली याचिका के तथ्य को छुपाकर एक और आपराधिक याचिका दायर की थी, हालांकि, इस बार एस.एस.पी., गुरदासपुर को निर्देश दिया गया था कि वे जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग को लेकर दिये गये ज्ञापन पर विचार करें।
इसके बाद याचिकाकर्ता की मां ने दो तथ्यों के आधार पर आदेश वापस लेने के लिए याचिका दायर की थी; पहला यह कि पहली याचिका को वापस लेने का खुलासा दूसरी याचिका में नहीं किया गया था और दूसरी बात यह है कि गौरव एक विवाहित व्यक्ति था जिसका एक जीवित जीवनसाथी था और इसलिए, लिव-इन-रिलेशनशिप का दावा स्पष्ट रूप से झूठा था।
उक्त आवेदन का निस्तारण भी एस.एस.पी. गुरदासपुर को आवेदक की शिकायतों पर विचार करने के निर्देश के साथ किया गया था। इसके बाद ही पुलिस ने जांच की और मौजूदा प्राथमिकी दर्ज की।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसे सह-आरोपी गौरव की शादी के बारे में पता नहीं था, जब उसने लिव-इन-रिलेशनशिप के आधार पर संरक्षण के लिए दो लगातार याचिकाएं दायर कीं क्योंकि उसने दोनों याचिकाओं में अलग-अलग हलफनामा दायर किया था।
कोर्ट की टिप्पणियां
शुरुआत में कोर्ट ने देखा कि करीब 18 वर्ष की लड़की द्वारा लिव-इन-रिलेशनशिप के आधार पर दायर संरक्षण याचिकाओं का निपटारा उस लड़की के माता-पिता को नोटिस जारी किए बिना पहले ही दिन करने का जोश और उत्साह, कभी-कभी उस लड़की को गहरे संकट में डालने वाला परिणाम दे सकता है।
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि अब यह सर्वविदित है कि लिव-इन रिलेशनशिप पर आधारित संरक्षण याचिकाएं सिर्फ बचाव का आधार बनाने के लिए एक नेक और गणनात्मक तरीके से दायर की जाती हैं, क्योंकि लड़की के माता-पिता बलात्कार और अपहरण का पुलिस मामला दर्ज करते हैं।
कोर्ट ने आगे जोड़ा, "कहने की जरूरत नहीं है, लगभग 18 वर्ष की आयु में, एक लड़की के माता-पिता की प्राथमिक चिंता उसे ठीक से शिक्षित करना और उसके पेशेवर करियर का निर्माण करना है और ऐसे निर्णय माता-पिता द्वारा सोच समझकर लिये जाते हैं, जबकि लिव-इन-रिलेशनशिप के आधार पर दायर संरक्षण याचिकाएं युवा व्यक्तियों द्वारा दिल से लिए गए भावनात्मक निर्णयों के आधार पर दायर की जाती हैं।"
अंत में, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 10 दिनों की अवधि के भीतर जांच अधिकारी के सामने पेश होने का निर्देश दिया और उसे अंतरिम जमानत दे दी (गिरफ्तारी के मामले में)। हालांकि, उसे जब कभी बुलाया जायेगा, जांच में शामिल होना होगा।
जांच अधिकारी को यह निर्देश दिया गया है कि लड़की को इलाका मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाये, जो उसका बयान दर्ज करेगा और इस अदालत को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा कि क्या वह लड़की अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती है और क्या उसे पता था कि सह-आरोपी गौरव एक विवाहित व्यक्ति है, जो तथ्य उससे छुपाया गया था।
अदालत ने शिकायतकर्ता/मां के लिए भी अपना बयान दर्ज कराने को लेकर इलाका मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का रास्ता खुला छोड़ दिया और इस बीच, एसएसपी, गुरदासपुर को सुनवाई की अगली तारीख से पहले सह-आरोपी गौरव की गिरफ्तारी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।
केस टाइटल : सुजाता बनाम पंजाब सरकार