न्यायालय विवादित हस्ताक्षरों की तुलना केवल एक नज़र से नहीं कर सकता, विशेषताओं का विश्लेषण रिकॉर्ड करना चाहिए : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Sharafat

27 March 2023 5:22 AM GMT

  • न्यायालय विवादित हस्ताक्षरों की तुलना केवल एक नज़र से नहीं कर सकता, विशेषताओं का विश्लेषण रिकॉर्ड करना चाहिए : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि हालांकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 एक अदालत को विवादित हस्ताक्षरों की स्वीकृत हस्ताक्षरों के साथ तुलना करने का अधिकार देती है, लेकिन यह एक आकस्मिक अवलोकन या केवल एक नज़र में नहीं किया जा सकता, बल्कि विशेष रूप से एक विश्लेषण दर्ज किए बिना विवादित हस्ताक्षरों की तुलना नहीं की जा सकती।

    जस्टिस हरकेश मनुजा ने यह टिप्पणी थिरुवेंगडा बिल्लई बनाम नवनीतम्मल और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए की।

    दिनांक 12.12.1988 को बिक्री समझौते के निष्पादन के साथ-साथ बयाना राशि की रसीद और बाद के अन्य दस्तावेज मामले में विवाद में थे।

    जस्टिस मनुजा ने कहा कि इस आशय के कानून के प्रस्ताव के बारे में कोई संदेह नहीं है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 73 के तहत, न्यायालय दस्तावेज़ को देखने और विवादित हस्ताक्षरों की स्वीकृत हस्ताक्षरों के साथ तुलना करने के लिए स्वयं को अपने ऊपर ले सकता है।

    अदालत ने कहा,

    "यह कहते हुए कि हालांकि 1872 अधिनियम की धारा 73 न्यायालय को विवादित हस्ताक्षरों की स्वीकृत हस्ताक्षरों के साथ तुलना करने का अधिकार देती है, हालांकि, यह एक आकस्मिक अवलोकन या केवल एक नज़र में नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से विशेषताओं का विश्लेषण रिकॉर्ड किए बिना विवादित की तुलना स्वीकृत हस्ताक्षरों से नहीं की जा सकती।"

    अदालत ने कहा कि विवादित हस्ताक्षरों की विशेषताओं की स्वीकृत हस्ताक्षरों के साथ तुलना करने की ऐसी कोई कवायद प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा नहीं की गई थी।

    अदालत ने अपील स्वीकार करते हुए जोड़ा,

    इसकी अनुपस्थिति में प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा दस्तावेजों/समझौते पर अपीलकर्ता/प्रतिवादी के हस्ताक्षरों के संबंध में मात्र स्व अवलोकन के आधार रिकॉर्ड किए गए निष्कर्ष रद्द किये जाते हैं।"

    अपीलकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट सुमीत गोयल, एडवोकेट सुमीत जैन और एडवोकेट शिवम कौशिक ने पैरवी की।

    प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट राजेंद्र शर्मा ने पैरवी की।


    केस टाइटल : विजय कुमार अग्रवाल बनाम खुशाल सिंह

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