सरकारी कार्यालयों में ज़मीनी स्तर तक फैला भ्रष्टाचार चुपचाप लोकतंत्र के स्तंभों को निगलने वाला दीमक है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
Shahadat
28 Nov 2023 10:34 AM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि "सरकारी कार्यालयों के भीतर जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार लोकतंत्र के स्तंभों को खामोशी के साथ निगलने वाले दीमक के समान है।" इसके साथ ही कोर्ट ने पटवारी की दूसरी गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका खारिज कर दी, जिस पर म्यूटेशन की प्रक्रिया के लिए रिश्वत मांगने का आरोप है।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा,
"यह उन संस्थानों में हमारे नागरिकों के विश्वास को कुठाराघात करता है, जो उनकी सेवा के लिए बने हैं। न्याय की पवित्रता बनाए रखने के लिए भ्रष्टाचार के इस खरपतवार को उखाड़ फेंकना होगा, क्योंकि यह केवल सूरज की रोशनी में पारदर्शिता और अखंडता के साथ बना रह सकता है, जिससे न्याय का वृक्ष फल दे सके।"
यह कहते हुए कि न्यायालय का कर्तव्य सिर्फ भ्रष्टों को दंडित करना नहीं है, बल्कि निवारण के बीज बोना है, पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि "भ्रष्टाचार की छाया शासन के गलियारों में अंधेरा न कर दे।"
ये टिप्पणी रशपाल सिंह की दूसरी अग्रिम जमानत याचिका के जवाब में आई, जिस पर अमृतसर पुलिस स्टेशन में भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम 2018 द्वारा संशोधित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
यह आरोप लगाया गया कि हलका पटवारी सिंह ने "गरीब आदमी" से उसकी मां की मृत्यु के कारण छह करनाल भूमि का उत्परिवर्तन करने के लिए 10,000 रुपये की रिश्वत की मांग की। शिकायतकर्ता ने उन वार्तालापों को रिकॉर्ड करने के लिए भी कहा, जहां वह रिश्वत की मांग कर रहा था और शिकायतकर्ता राशि कम करने का अनुरोध कर रहा था।
दूसरे गिरफ्तारी-पूर्व आवेदन की सुनवाई योग्यता के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा,
"याचिकाकर्ता एक भी अतिरिक्त युक्ति या परिस्थिति का अंतर बताने में असमर्थ है, जिसे पहले प्रचारित नहीं किया गया।"
माया रानी गुइन और आदि बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (2003) में कलकत्ता हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले पर भी भरोसा किया गया, जिसमें यह स्पष्ट रूप से माना गया,
"अग्रिम जमानत के लिए दूसरे आवेदन पर विचार करना समन्वित क्षेत्राधिकार वाली पीठ द्वारा पारित पहले के आदेश पर पुनर्विचार के समान होगा, क्योंकि आरोप अपरिवर्तित है। आरोप अपरिहार्य है, जो वही रहता है, किसी घटना में विश्वास करने या गिरफ्तारी की आशंका के कारणों के पुनरुद्धार का संकेत नहीं देगा, जिस पर न्यायालय ने अग्रिम जमानत के लिए पहले आवेदन में पहले ही विचार कर लिया है।"
न्यायालय ने कहा कि स्थापित कानून के मद्देनजर,
"सीआरपीसी की धारा 438 के तहत समान राहत के लिए दूसरे आवेदन पर नई परिस्थितियों, विकास या सामग्री को पेश करके नए तर्क या मोड़ देकर विचार नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, बिना किसी के दूसरे आवेदन पर विचार किया जा सकता। तथ्यात्मक स्थिति में परिवर्तन को बनाए रखने योग्य नहीं माना जाता है।"
मामले की योग्यता के आधार पर अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने उसके और याचिकाकर्ता के बीच अलग-अलग समय पर हुई बातचीत को रिकॉर्ड किया गया, जब रिश्वत की मांग की गई थी। अब जब शिकायतकर्ता उससे रिश्वत की राशि कम करने का अनुरोध कर रहा है।
पक्षकारों द्वारा की गई दलीलों और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा,
"मामले के विशिष्ट तथ्य और परिस्थितियां इस न्यायालय की अंतरात्मा को चुभती हैं।"
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा कि जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और याचिका "किसी भी योग्यता से रहित और बिना किसी तथ्य के" है।
उपरोक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: रशपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य
ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।