पासपोर्ट जारी करने में हो रही देरी के मामले में पासपोर्ट अधिकारियों के खिलाफ दायर उपभोक्ता शिकायत सुनवाई योग्य नहींः पंजाब SCDRC
LiveLaw News Network
2 July 2020 6:30 PM IST
पंजाब राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कहा है कि पासपोर्ट अधिकारियों द्वारा प्रदान की गई सेवा और उपभोक्ता सेवा अधिनियम में परिभाषित 'सेवा' एक नहीं है। उन्हें एक समान नहीं माना जा सकता है। जिला फोरम के समक्ष अपनी शिकायत में, शिकायतकर्ता ने कहा था कि उसने अपने पासपोर्ट को दोबारा जारी कराने के लिए आवेदन किया था, लेकिन मामले को किसी ना किसी बहाने से लंबित रखा गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने शिकायतकर्ता के पासपोर्ट को दोबारा जारी करने पर जानबूझकर, मनमाने तरीके से और बिना किसी उचित कारण के रोक लगाई। पासपोर्ट अधिकारियों की ओर से सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए, उन्होंने पासपोर्ट जारी करने समेत मुकदमेबाजी के खर्च के रूप में 80,000/- और 15,000/- के मुआवजे का भुगतान करने के लिए दिशा-निर्देश मांगे।
जिला फोरम ने शिकायत की अनुमति दी और प्राधिकरण को शिकायतकर्ता को पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया गया।
क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय द्वारा दायर अपील में, राज्य आयोग द्वारा विचार किया गया मुद्दा यह था कि क्या शिकायतकर्ता एक 'उपभोक्ता' की परिभाषा के अंतर्गत आता है और क्या पासपोर्ट सेवा के कर्तव्य 'सेवा' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं, जैसा कि सीपी अधिनियम में परिभाषित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय आयोग के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए, राज्य आयोग के अध्यक्ष जस्टिस परमजीत सिंह धालीवाल, ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत में उठाया गया विवाद 'उपभोक्ता विवाद' नहीं है और वह सीपी अधिनियम की धारा 2 (1) (डी) में निहित 'उपभोक्ता' के तहत नहीं आता।
"केंद्र सरकार या पासपोर्ट अधिनियम के तहत शक्ति प्राप्त किसी भी प्राधिकारी द्वारा पासपोर्ट जारी करना या इसमें कोई सुधार करना एक संप्रभु अधिनियम है, जिसे निर्धारित नियमों के अनुसार अधिकारियों द्वारा निष्पादित किया जाना है।
प्रत्येक पासपोर्ट आवेदन निर्धारित आंतरिक सुरक्षा प्रक्रियाओं से गुजरता है और साथ ही साथ सुरक्षा एजेंसियों, जैसे पुलिस और सीआईडी आदि के माध्यम से जांच की जाती है। पासपोर्ट अधिनियम धारा 6, 10 और 11 मना करने/ निराकरण/ निरस्त करने और अपील प्रक्रियाओं का प्रावधान करता है। पासपोर्ट बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है और उक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, पासपोर्ट अधिकारी इसे जारी करने या किसी भी सुधार से पहले खुद को कई तथ्यों संतुष्ट करता है।
यदि उन सभी तथ्यों को सत्यापित करते समय, कि संदेह की मामूली आशंका भी होती है तो पासपोर्ट अधिकारी का पासपोर्ट जारी करने से इनकार करना या उसमें सुधार करने से इनकार करना उचित ठहराया जा सकता है। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 17 के अनुसार, पासपोर्ट केंद्र सरकार की संपत्ति होता है और कोई भी इस पर अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता है।"
पीठ ने एस विजयकुमार बनाम रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर ऑफ दी नेशनल कमीशन मामले में दिए गए एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि पासपोर्ट जारी करना एक सांविधिक कार्य है और पासपोर्ट अधिकारी को 'सेवा प्रदाता' नहीं माना जा सकता है और, इसलिए, पासपोर्ट जारी करने में देरी के लिए अधिनियम के तहत शिकायत सुनवाई योग्य नहीं होगी। शिकायत को खारिज करते हुए आयोग ने कहा-
"यह स्पष्ट है कि पासपोर्ट अधिकारियों द्वारा प्रदान की गई सेवा को 'सेवा' के अर्थ में नहीं लिया जा सकता है, और शिकायतकर्ता को 'उपभोक्ता' नहीं माना जा सकता है, जैसा कि सीपी अधिनियम में परिभाषित किया गया है।"
केस टाइटल: क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय बनाम गुरप्रीत सिंह मंगत
केस नं: फर्स्ट अपील नंबर 54 ऑफ 2020
कोरम: जस्टिस परमजीत सिंह धालीवाल, अध्यक्ष
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