"विभागाध्यक्ष का आचरण दोषमुक्त होना चाहिए": दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन शोषण के आरोप के बाद एचओडी नियुक्त नहीं किए गए प्रोफेसर की याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

11 Dec 2021 8:52 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्‍ली हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि हेड ऑफ डिपार्टमेंट (एचओडी) के रूप में एक शिक्षक का आचरण दोष मुक्त होना चाहिए, एक सीन‌ियर प्रोफेसर की याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने एक अध्यापक द्वारा खुद पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाए जाने के बाद केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रमुख के रूप में अपनी नियुक्ति नहीं किए जाने पर व्यथित होकर याचिका दायर की थी।

    जस्टिस वी कामेश्वर राव ने कहा ,

    "एक प्रोफेसर/ शिक्षक का एक एचओडी के रूप में आचरण, जिसे विभाग की विभिन्न गतिविधियों में खुद को शामिल करने की आवश्यकता होती है, जिसमें छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत करना शामिल है, दोष मुक्त होना चाहिए।"

    कोर्ट प्रोफेसर आरके शर्मा द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें विभाग के प्रमुख के रूप में किसी अन्य प्रोफेसर की नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। उनका मामला था कि विश्वविद्यालय में सबसे सीनियर प्रोफेसर होने के नाते, वे रसायन विज्ञान विभाग के एचओडी के रूप में नियुक्त होने के हकदार थे।

    विश्वविद्यालय का मामला था कि एक शिक्षक द्वारा कुछ प्रोफेसरों के संबंध में की गई यौन उत्पीड़न की शिकायत के बाद, जिसमें याचिकाकर्ता भी शामिल थे, जो साक्षात्कार समिति का हिस्सा थे, आंतरिक शिकायत कमेटियों का गठन किया गया था, जिन्हें या‌चिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी नहीं मिला। कमेटी ने उन्हें बरी कर दिया था।

    तीसरी कमेटी के निष्कर्ष के अनुसरण में, विश्वविद्यालय ने एक अक्टूबर, 2021 को एक पत्र जारी कर याचिकाकर्ता को कदाचार के लिए चेतावनी दी और भविष्य में शिकायतकर्ता के साक्षात्कार में भाग नहीं लेने का निर्देश दिया, ताकि चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता बनाए रखी जा सके। हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा उक्त संचार को चुनौती नहीं दी गई थी।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने प्रस्तुत किया कि चेतावनी आचरण नियमों के तहत दंड नहीं है और याचिकाकर्ता को एचओडी के रूप में नियुक्ति करने पर विचार करने के लिए विश्वविद्यालय के लिए कोई रोक नहीं है।

    दूसरी ओर, विश्वविद्यालय की ओर से पेश अधिवक्ता संतोष कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय के अध्यादेश XXIII के तहत, अगर अच्छे वैध कारण है तो वरिष्ठतम प्रोफेसर को नियुक्त करने की कोई बाध्यता नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह नोट किया जाता है, एक अक्टूबर, 2021 के संचार के मद्देनजर, जिसे मैंने शिकायतकर्ता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर, जिसके परिणामस्वरूप आंतरिक शिकायत समिति की रिपोर्ट कुछ शिक्षकों के खिलाफ है, जो इसका हिस्सा थे, उपरोक्त के रूप में पुन: प्रस्तुत किया है। याचिकाकर्ता सहित साक्षात्कार बोर्ड, कार्यकारी परिषद का निर्णय है कि याचिकाकर्ता को उसके द्वारा किए गए कदाचार के लिए चेतावनी दी जाए।"

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने एक अक्टूबर, 2021 के संचार को स्वीकार कर लिया था और उसे चुनौती नहीं दी थी। न्यायालय का विचार था कि विश्वविद्यालय के अध्यादेश XXIII के अनुसार, यह कुलपति को विभागाध्यक्ष नियुक्त करने का विवेक देता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या इस मामले के दिए गए तथ्यों पर कॉल लेने के लिए मामले को कुलपति के पास वापस भेजने की आवश्यकता है, हालांकि उपरोक्त के मद्देनजर और चूंकि याचिकाकर्ता ने एक अक्टूबर, 2021 के संचार को चुनौती नहीं दी है, इस न्यायालय का विचार है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए, याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

    तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।


    शीर्षक : प्रो. आरके शर्मा बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य।

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