ग्राम स्तर पर क्वारंटीन केंद्रों की स्थिति दयनीय : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को ग्राम सभाओं को फंड उपलब्ध कराए
LiveLaw News Network
4 Jun 2020 11:38 AM IST
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य में ग्रामीण स्तर पर बने क्वारंटाइन या संगरोध केंद्रों की ''दयनीय स्थिति'' पर गहरी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने इस मामले में संबंधित जिलाधिकारियों को स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश भी दिया है।
यह भी निर्देश दिया गया है कि राज्य में हो रही ''रैपिड टेस्टिंग'' के संबंध में भी एक रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश की जाए।
राज्य के विभिन्न जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों की तरफ से प्रस्तुत रिपोर्टों को देखने के बाद न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की पीठ ने कहा कि-
''इन रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद हमें जो समझ आ रहा है,वो यह है कि जो क्वारंटाइन केंद्र ग्राम स्तर पर स्थापित किए गए हैं उनकी स्थिति सबसे खराब है। गाँवों में बनाए गए ज्यादातर क्वारंटाइन केंद्र सरकारी प्राथमिक विद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में चल रहे हैं और इन रिपोर्ट के अनुसार उनकी स्थिति बहुत दयनीय है।''
अदालत ने कहा कि इन केंद्रों में रखे गए लोगों के लिए भोजन उपलब्ध कराने की कोई सुविधा नहीं है। पीठ ने कहा कि, '' इन केंद्रों में रखे गए लोगों को ग्रामीणों या उनके खुद के परिजन ही भोजन उपलब्ध करा रहे हैं।''
कोर्ट ने कहा कि इनमें से कई संगरोध केंद्रों में 20-30 लोगों के लिए केवल 1 या 2 शौचालय उपलब्ध पाए गए हैं।
पीठ ने यह भी कहा कि-
''इन क्वारंटाइन केंद्रों में से कई ऐसे केंद्र थे जहां पर 20 से 30 लोगों को रखा गया था। जबकि वहां केवल 1 या 2 शौचालय हैं। सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि इन शौचालयों की स्वच्छता की स्थिति भी बेहद खराब है। इनमें से अधिकांश शौचालय साफ नहीं थे। इसके अलावा शहरों में बने केंद्रों के कई शौचालय भी खराब स्थिति में पाए गए हैं,क्योंकि इन शौचालयों को नियमित रूप से साफ नहीं किया जा रहा है।''
पीठ का मानना था कि इस दुर्दशा का मुख्य कारण यह है कि ग्राम सभाओं के पास पैसे की कमी है। जबकि ग्राम सभा ही इन केंद्रों के संचालन की देखरेख के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए पीठ ने निम्न निर्देश जारी किए हैं-
''गाँव स्तर पर क्वारंटाइन को अच्छे से संचालन करने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक यह हैं कि ''ग्राम सभाओं'' को पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाए... जिसके लिए जिला मजिस्ट्रेटों और पंचायत स्तर के अधिकारियों और चुने हुए प्रतिनिधियों के बीच एक उचित समन्वय होना चाहिए। जहां इस समय अगर किसी भी कारण से ''ग्राम प्रधान''काम नहीं कर रहे हैं,उन इलाकों के लिए संबंधित जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित अधिकारी के माध्यम से वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।''
5 मई, 2020 को उत्तराखंड सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे ऐसे गाँवों के ग्राम सभाओं और ग्राम प्रधानों के साथ समन्वय स्थापित करें जहाँ ये क्वारंटाइन केंद्र स्थापित किए गए हैं। साथ ही कहा था कि इन सभी ग्राम सभाओं को पैसा मुहैया कराया जाए और यह भी देखा जाए कि इन क्वारंटाइन केंद्रों में सारे उचित प्रबंध किए गए हैं या नहीं। हालांकि, कोर्ट को रिपोर्ट देखने के बाद यह ''डर लगा कि अब तक इस दिशा में सब ठीक से नहीं जा रहा है।''
इसलिए न्यायालय ने सचिव, स्वास्थ्य और सचिव, आपदा प्रबंधन, उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया है कि वह सभी जिला मजिस्ट्रेटों को उचित आदेश पारित करें। ताकि 5 मई 2020 को उनके द्वारा स्वयं पारित किए गए आदेश को उसके असल मायनों में लागू किया जा सकें। जिससे ग्राम सभाओं को पर्याप्त धन मिल सकें और वह इन केंद्रों का संचालन अच्छे से कर पाएं।
इस बीच स्वास्थ्य सचिव को भी निर्देश दिया गया है कि कोर्ट के बीस मई के आदेश के अनुसार राज्य की सीमाओं पर स्थापित किए गए क्वारंटाइन केंद्रों की सभी कमियों को दूर किया जाए।
उक्त आदेश के माध्यम से हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिया था कि जहां तकसंभव हो सीमावर्ती जिलों में क्वारंटाइन केंद्रों की स्थापना की जाए।
हालांकि लॉकडाउन प्रतिबंधों में छूट के मद्देनजर, अदालत ने सरकार की इन दलीलों के साथ सहमति व्यक्त की है कि सीमावर्ती शहरों में अधिक क्वारंटाइन केंद्र स्थापित करना संभव नहीं होगा।
आदेश में कहा गया है कि-
''हमें लगता है कि बदली हुई परिस्थितियों के तहत अधिकारियों के लिए नए केंद्रों की स्थापना करना व्यावहारिक नहीं होगा। इन आकस्मिकताओं को ध्यान में रखते हुए हमने अपने आदेश में यह कहा है कि ''सभी संभव प्रयास किए जाएं।''
इसके अलावा यह भी कहा गया कि-
"जैसा कि हमने ऊपर कहा था पहले से मौजूद क्वारंटाइन केंद्रों में सुधार किया जाना चाहिए। हम उत्तराखंड सरकार के स्वास्थ्य सचिव और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश देते हैं कि वह इन क्वारंटाइन केंद्रों की सभी कमियों को दूर करें।''
इन सबके अलावा अदालत ने ऐसे होटलों का विवरण भी मांगा है जिन्हें क्वारंटाइन केंद्रों में परिवर्तित किया गया है और कथित तौर पर उनमें रहने वालों लोगों से शुल्क लिया जा रहा है।
आदेश में यह भी कहा गया है कि
''स्वास्थ्य सचिव इस न्यायालय को उन होेटल के बारे में अवगत कराए,जिनको ''क्वारंटाइन केंद्र'' के रूप में चिह्नित किया गया। जिनके लिए राज्य सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति के लिए 950 रुपये ( नौ सौ पचास पचास रुपये) दिए जा रहे हैं। लग्जरी होटल ही यह सुविधा केवल प्रभावित के मांगने पर ही उसे उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में क्या उस व्यक्ति से भी इसका शुल्क लिया जाता है? मामले की अगली सुनवाई पर राज्य अदालत के समक्ष ऐसे होटलों की सूची और उनके द्वारा किए जा रहे इस भेद का ब्यौरा पेश करें।''
इस मामले में अब 17 जून को सुनवाई होगी।
पिछले हफ्ते हाई कोर्ट ने लॉकडाउन के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासियों को वापस लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाए जा रहे उपायों पर गहरा असंतोष व्यक्त किया था।
कोर्ट ने कहा था कि-
'' संपन्नों की उदासीनता ने उन लोगों की दुर्दशा कर दी,जिनके पास कुछ नहीं है और मजबूरी में उन सभी को भोजन और पानी के बिना मीलों पैदल चलना पड़ गया है (चरम गर्मियों के दौरान जब देश के कई हिस्सों में दिन के तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि देखी जा रही है), जो कि बेहद खतरनाक है।''
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक-सच्चदानंद डबराल बनाम भारत संध व अन्य (और अन्य जुड़े मामले)
केस नंबर-डब्ल्यूपी (पीआईएल) नंबर 58/2020
कोरम- न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति रविंद्र मैथानी
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें