मोटर वाहन मुआवज़ा छलावा नहीं होना चाहिए : जिस व्यक्ति के शरीर के निचले हिस्से को काटना पड़ा, उसकी कार्यशील विकलांगता को सुप्रीम कोर्ट ने 75% माना

LiveLaw News Network

11 Jun 2020 12:58 PM GMT

  • मोटर वाहन मुआवज़ा छलावा नहीं होना चाहिए : जिस व्यक्ति के शरीर के निचले हिस्से को काटना पड़ा, उसकी कार्यशील विकलांगता को सुप्रीम कोर्ट ने 75% माना

    दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति जिसके शरीर के निचले हिस्से को काटकर हटाना पड़ा, उसकी कार्यशील विकलांगता को घटाने के हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति नहीं दी और कहा कि दुर्घटना के कारण भविष्य की आमदनी में कमी के लिए मुआवज़ा छलावा नहीं होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बीर गवई की पीठ ने श्री एंटॉनी ऊर्फ एंथॉनी ऊर्फ़ ऐन्थॉनी स्वामी बनाम प्रबंध निदेशक, केएसआरटीसी के मामले की सुनवाई में कहा,

    "भविष्य में आमदनी में कमी की क्षतिपूर्ति उचित और न्यायपूर्ण होनी चाहिए, ताकि वह व्यक्ति गरिमापूर्ण ज़िंदगी जी सके और एक ऐसे मुआवज़े की बात नहीं की जानी चाहिए जो छलावा है।"

    वर्ष 2010 में केएसआरटीसी बस जिसमें अपीलकर्ता सवार था, दुर्घटना का शिकार हो गई जिसकी वजह से उसे बांयी ओर के निचले धड़ को काटकर अलग करना पड़ा। उसकी विकलांगता को 75% माना गया। हालांकि मोटर वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण ने इस स्तर की विकलांगता को ध्यान में रखकर उसे मुआवज़े दिए जाने का फ़ैसला सुनाया, पर केरल हाईकोर्ट ने उसकी विकलांगता के प्रतिशत को पूरे शरीर की तुलना में मात्र 25% माना।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विकलांगता के प्रतिशत में यह कमी बिना किसी कारण के की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि अपीलकर्ता जो पेंटर था, उसकी आजीविका कमाने की क्षमता को न केवल कम की गई है बल्कि पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया गया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस व्यक्ति को दुर्घटना ने एक पेंटर के रूप में पूरी तरह अक्षम बना दिया और वह कोई शारीरिक कार्य नहीं कर सकता।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा,

    "…(दुर्घटना ने) इस व्यक्ति को एक पेंटर के रूप में और कोई भी शारीरिक काम कर पाने के लिए पूरी तरह अक्षम बना दिया है, इसलिए भविष्य में आय की हानि के लिए मुआवज़ा उचित और न्यायपूर्ण होना चाहिए ताकि वह एक गरिमापूर्ण जीवन जी सके न कि उसे एक ऐसा मुआवज़ा दिया जाए जो कि छलावा है।

    अगर 75% विकलांगता ने अपीलकर्ता को पूरी तरह विकलांग बना दिया है और वह अपने सामान्य पेशे को नहीं अपना सकता या इसी तरह का कोई और काम नहीं कर सकता तो उस स्थिति में उसके शरीर की विकलांगता के अनुपात में उसको मुआवज़ा दिए जाने की बात उसके समझ में नहीं आती।"

    हाईकोर्ट ने उसे इलाज के लिए ₹50,000 का मुआवज़ा देने का आदेश दिया था, जिसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट ने उसे ₹250,000 का मुआवज़ा दिए जाने का आदेश दिया। सुख-सुविधा की हानि के लिए मुआवज़े की राशि बढ़ाकर ₹50,000 कर दी क्योंकि उसे विकलांगता के कारण वह सामाजिक समूह में उठने-बैठने लायक़ नहीं रहा।

    सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मुआवज़े की राशि ₹11,97,350 निर्धारित की जबकि हाईकोर्ट ने सिर्फ़ ₹5,10,350 ही देने का आदेश दिया था।

    पीठ ने इस बारे में राजकुमार बनाम अजय कुमार एवं अन्य 2011 (1)SCC 343 एवं नागराजप्प्पा बनाम डिविज़नल मैनेजर, ऑरीएंटल इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड, 2011 (13) SCC 323 मामले का भी संदर्भ दिया।

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