दोष सिद्ध होने पर कंपनी को जुर्माने की सजा दी जा सकती है, भले ही अपराध में कारावास की भी सजा हो: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

3 Oct 2022 11:52 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जहां एक कंपनी पर अपराध का आरोप है और उस पर दिन-प्रतिदिन के कारोबार के संचालन के लिए जिम्मेदार निदेशकों/व्यक्तियों को दोषी ठहराए बिना भी मुकदमा चलाया जा सकता है, उक्त कंपनी को जुर्माने की सजा दी जा सकती है, भले ही जिस अपराध के लिए कंपनी को दोषी ठहराया गया है, उसके लिए कारावास की सजा दी जा सकती है।

    ज‌स्टिस संजय धर की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता फार्मा कंपनी ने प्रतिवादी ड्रग्स इंस्पेक्टर, कठुआ द्वारा याचिकाकर्ताओं और प्रोफार्मा प्रतिवादी द्वारा धारा 8 (ए) (आई) सहपठित धारा 27 (डी) ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत अपराध करने का आरोप लगाते हुए दायर शिकायत को चुनौती दी थी।

    जिला न्यायिक मोबाइल मजिस्ट्रेट (टी), कठुआ द्वारा पारित एक आदेश को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें मजिस्ट्रेट ने कहा था कि प्रथम दृष्टया अधिनियम 1940 की धारा 27 (डी) सहपठित धारा 8 (ए) (आई) के तहत अभियुक्तों के खिलाफ अपराध बनते हैं, और उनके खिलाफ प्रक्रिया जारी की जाती है।

    याचिकाकर्ता ने शिकायत को मुख्य रूप से इस आधार पर चुनौती दी थी कि कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कारोबार के लिए जिम्मेदार निदेशकों / पदाधिकारियों को शामिल किए बिना, उक्त कंपनी के खिलाफ कार्यवाही जारी नहीं रह सकती है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी तर्क दिया कि कंपनी एक न्यायिक व्यक्ति है और इसके खिलाफ, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम की धारा 34 के मद्देनजर, अभियोजन शुरू करते समय इसका प्रतिनिधित्व पदाधिकारियों या निदेशकों द्वारा किया जाए, साथ ही दोनों, कंपनी और दिन-प्रतिदिन के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति कार्यवाही के आवश्यक पक्ष हैं। इस आधार पर याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि याचिकाकर्ता कंपनी के खिलाफ अभियोजन रद्द किया जाए।

    मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने कहा कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 34 का अवलोकन स्पष्ट करता है कि जब किसी कंपनी द्वारा कोई अपराध किया गया हो तो प्रत्येक व्यक्ति, जिस समय अपराध किया गया था, उस समय कंपनी का प्रभारी था और कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए उत्तरदायी था, उसे और कंपनी को अपराध का दोषी माना जाएगा।

    कोर्ट ने कहा, यह प्रावधान कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के लिए प्रतिवर्ती दायित्व की अवधारणा का विस्तार करता है, जहां कंपनी द्वारा अपराध किया गया है।

    याचिकाकर्ता के इस तर्क कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 34 (1) में दी गई अभिव्यक्ति "साथ ही कंपनी", यह बताती है कि कंपनी और कंपनी के प्रभारी व्यक्ति को आवश्यक रूप से अभियुक्त के रूप में पक्षकार होना चाहिए, कोर्ट ने कहा कि जहां कंपनी प्रमुख अपराधी है, उसके पदाधिकारी या निदेशक, जो उसके दिन-प्रतिदिन के कारोबार के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं, कंपनी के कृत्यों के लिए प्रत्याधिकृत रूप से (Vicariously ) उत्तरदायी हो जाते हैं।

    इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या किसी कंपनी पर ऐसे अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है, जिसमें जुर्माने की सजा के अलावा कारावास की सजा हो सकती है, जैसा कि मामला है, पीठ ने कहा कि चूंकि कंपनी एक न्यायिक व्यक्ति है, इसलिए कंपनी के खिलाफ कारावास की सजा को निष्पादित करना असंभव है।

    इस विषय पर कानून को और स्पष्ट करते हुए बेंच ने स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य, (2005) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सहारा लिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले के इस पहलू से निपटते हुए , यह माना कि अभियोजन से कंपनियों को कोई प्रतिरक्षा नहीं है क्योंकि अभियोजन उन अपराधों के संबंध में है, जिनके लिए निर्धारित सजा अनिवार्य कारावास और जुर्माना है।

    संक्षेप में, अदालत ने कहा कि जिस कंपनी पर अपराध करने का आरोप लगाया गया है, उसके निदेशकों / व्यक्तियों को अपने दिन-प्रतिदिन के व्यवसाय के संचालन के लिए दोषी ठहराए बिना भी मुकदमा चलाया जा सकता है और दोषी ठहराए जाने पर, उक्त कंपनी को जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है, भले ही जिस अपराध के लिए कंपनी को दोषी ठहराया गया हो, उसके लिए कारावास की सजा भी हो।

    तदनुसार, पीठ ने याचिका में कोई योग्यता नहीं पाई और इसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल : कैडिला फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड बनाम ड्रग इंस्पेक्टर कठुआ

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 171


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