राजस्थान हाईकोर्ट ने 150 रुपये की रिश्वत लेने के आरोपी क्लर्क को 38 साल बाद बरी किया

Shahadat

20 Feb 2023 7:17 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने 150 रुपये की रिश्वत लेने के आरोपी क्लर्क को 38 साल बाद बरी किया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में जिला परिवहन कार्यालय (डी.टी.ओ.), सीकर के क्लर्क को बरी कर दिया, जिसे वर्ष 1985 में ट्रायल कोर्ट ने तीन महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई और 150 / - रुपये के रिश्वत मामले में दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई।

    जस्टिस नरेंद्र सिंह ढड्ढा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

    "अभियोजन की कहानी के अनुसार, सुल्तानाराम द्वारा अपीलकर्ता को 150/- रुपये दिए गए, लेकिन अभियोजन पक्ष रिश्वत की मांग और स्वीकृति को साबित करने में विफल रहा। केवल पैसे की वसूली ही इसे रिश्वत मानने का आधार नहीं हो सकती।"

    पीठ ने कहा कि जांच ठीक से नहीं की गई थी और जांच अधिकारी ने जानबूझकर दो अन्य लोगों को छोड़ दिया, जिनके लिए कथित तौर पर रिश्वत की मांग की गई।

    "ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में इन खामियों के बारे में उल्लेख किया। इसलिए मेरी राय में ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 161 और भ्रष्टाचार अधिनियम, 1947 धारा 5 (1) (डी) सपठित धारा 5 (2) के तहत गलत तरीके से दोषी ठहराया। इसलिए ट्रायल कोर्ट का फैसला और आदेश अलग रखा जाना चाहिए।

    शिकायतकर्ता सुल्तानाराम ने अपनी लिखित शिकायत में कहा कि हरि नारायण (अपीलार्थी), डी.टी.ओ. सीकर ने शिकायतकर्ता के ट्रैक्टर के रजिस्ट्रेशन को बदलने के लिए शिकायतकर्ता को 150/- रुपये (स्वयं के लिए 50/- रुपये, अशोक जैन के लिए 50/- रुपये और मूलचंद डी.टी.ओ. के लिए 50/- रुपये) का देने के लिए कहा।

    ट्रैप कार्यवाही और जांच पूरी होने के बाद अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था।

    ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को दोषी करार देते हुए आईपीसी की धारा 161 के तहत और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 की धारा 5 (1) (डी) सपठित धारा 5 (2) के साथ निर्णय और आदेश देते हुए दिनांक 28.01.1985 / 02.02.1985 को तीन माह के साधारण कारावास व एक हजार, पांच सौ रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई।

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन रिश्वत की मांग और स्वीकृति को साबित करने में विफल रहा, क्योंकि शिकायतकर्ता सुतानाराम का सबूत विरोधाभासी था।

    अपीलकर्ता द्वारा आगे तर्क दिया गया कि जांच अधिकारी ने मामले की गलत जांच की और मूलचंद और अशोक जैन को छोड़ दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता ने अशोक जैन के लिए 50/- रुपये और मूलचंद के लिए 50/- रुपये लिए, लेकिन इन तथ्यों का उल्लेख किए बिना उनके खिलाफ आरोप तय किए गए।

    केस टाइटल: हरि नारायण बनाम राजस्थान राज्य

    कोरम: जस्टिस नरेंद्र सिंह धड्डा

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