सिनेमा हॉल की ओर से पार्किंग फीस लेने का मामला: आंध्र प्रदेश जिला उपभोक्ता आयोग ने सिनेमा मालिक को फिल्म देखने वालों को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया

Brij Nandan

6 March 2023 5:26 AM GMT

  • सिनेमा हॉल की ओर से पार्किंग फीस लेने का मामला: आंध्र प्रदेश जिला उपभोक्ता आयोग ने सिनेमा मालिक को फिल्म देखने वालों को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया

    आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने एक वकील को 5000रुपये के मुआवजे का आदेश दिया है जिससे 2019 में सिनेमा परिसर में पार्किंग फीस लिया गया था, जब हम वहां सिनेमा देखने गया था।

    शिकायतकर्ता को राहत देते हुए, आयोग ने पाया कि थिएटर कॉम्प्लेक्स "आईनॉक्स-उर्वसी कॉम्प्लेक्स" में 3 स्क्रीन थे और इसलिए राज्य सरकार द्वारा जारी जीओ एमएस 486 दिनांक 07.07.2007 के रूप में "मल्टीप्लेक्स कॉम्प्लेक्स" की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं।

    आयोग ने कहा,

    "मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के संबंध में, हमारा मानना है कि विपरीत पक्ष के सिनेमा हॉल में मॉल नहीं है, लेकिन तीन (3) स्क्रीन के साथ सिनेमा हॉल चलाकर व्यावसायिक गतिविधि करने वाला एक सिनेमा परिसर होने से सिनेमा थिएटर के ग्राहकों को अपने वाहनों को बिना शुल्क के रखने के लिए पार्किंग की जगह उपलब्ध करानी चाहिए।“

    शिकायतकर्ता विजयवाड़ा स्थित एक पेशेवर वकील है। 2019 में उन्होंने आईनॉक्स-उर्वसी कॉम्प्लेक्स में मूवी टिकट बुक कराया था। वह अपनी बाइक लेकर गया था और उसे हॉल द्वारा प्रदान की गई पार्किंग सुविधा में पार्क किया, जिसके लिए उससे 15 रुपये लिए गए।

    उन्होंने इसकी शिकायत की। उन्होंने आरोप लगाया कि हॉल बिना किसी अधिकार के फिल्म देखने वालों से पार्किंग शुल्क वसूल रहा है। इसलिए, उनके अनुसार, यह सेवा में कमी है जिसके लिए उन्हें मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा। इसलिए, उन्होंने अपनी शिकायतों के निवारण के लिए जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, विजयवाड़ा से संपर्क किया।

    सिनेमा हॉल की ओर से ये प्रस्तुत किया गया कि सभी प्रतिष्ठान, चाहे वे सरकारी हों या निजी, पार्किंग सेवाएं प्रदान करने के लिए शुल्क लगाते हैं। इसलिए, उनके सिनेमा हॉल को इसी तरह के प्रतिष्ठानों के साथ रखा गया है और इसलिए, पार्किंग शुल्क लगाने पर प्रतिबंध लगाने के लिए उन्हें अलग करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदान किए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

    इसके अलावा, यह कहा गया कि पार्किंग शुल्क का प्रावधान एक व्यावसायिक गतिविधि है जो सिनेमा हॉल के व्यापार और व्यवसाय की स्वतंत्रता के अधिकार का एक हिस्सा है और इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत संरक्षित है।

    यह तर्क दिया गया कि सिनेमा हॉल को पार्किंग शुल्क लेने से रोकने के लिए किसी भी कानून के अभाव में, पार्किंग सुविधाओं के बदले में व्यावसायिक गतिविधियों को चलाने और शुल्क लेने पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि विजयवाड़ा नगर निगम ने खुद सिनेमा हॉल के पक्ष में पार्किंग के लिए चार्ज करने के लिए एक 'ट्रेड लाइसेंस' जारी किया है।

    इसके अलावा, यह भी कहा गया कि जो लोग अपने वाहनों पर सिनेमा हॉल जाते हैं, वे वाहनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी हॉल को सौंपते हैं। सुविधा प्रदान करने के लिए, हॉल सुरक्षा कर्मियों, स्वच्छता, सफाई, प्रकाश व्यवस्था आदि जैसे विभिन्न मोर्चों पर बहुत अधिक खर्च करता है। इसलिए, यह मॉल को उपरोक्त सेवाओं के लिए शुल्क लेने का अधिकार देता है।

    सिनेमा हॉल की ओर से तर्क दिया गया कि उनका कॉम्प्लेक्स मल्टीप्लेक्स थिएटर नहीं है और इसलिए शासनादेश 486 दिनांक 07.07.2007 के दायरे में नहीं आएगा। उस आदेश के तहत, 'मल्टीप्लेक्स कॉम्प्लेक्स' शब्द को "एक एकीकृत मनोरंजन और शॉपिंग सेंटर/कॉम्प्लेक्स या एक शॉपिंग मॉल और कम से कम तीन (3) सिनेमा हॉल/स्क्रीन ..." के रूप में परिभाषित किया गया है।

    उपरोक्त परिभाषा का अध्ययन करने के बाद, आयोग ने कहा कि 'मल्टीप्लेक्स कॉम्प्लेक्स' में एक शॉपिंग मॉल और कम से कम तीन (3) सिनेमा हॉल/स्क्रीन वाली विभिन्न प्रकार की गतिविधियां शामिल हैं। ये नोट किया गया कि हालांकि विपरीत पक्ष के सिनेमा हॉल में तीन स्क्रीन हैं, लेकिन उसके पास कोई शॉपिंग मॉल नहीं है।

    आयोग ने कहा, क्योंकि इसके पैरा 3 में अधिसूचना सिनेमा हॉल में तीन (3) स्क्रीन होने की बात करती है, विपरीत पक्ष 'मल्टीप्लेक्स कॉम्प्लेक्स' शब्द के अंतर्गत आएगा क्योंकि इसके हॉल में तीन स्क्रीन हैं। इसलिए, आयोग ने निर्देश दिया कि सिनेमा हॉल उन लोगों से पार्किंग के लिए कोई शुल्क नहीं लेगा, जो सिनेमा देखने के लिए परिसर में आते हैं।

    आयोग ने सिनेमा हॉल को 15रुपये वापस करने का निर्देश दिया जो शिकायतकर्ता से पार्किंग शुल्क के रूप में लिया गया था।

    आयोग ने उसे 5 हजार रुपये का मुआवजा देने को भी कहा और इसके साथ ही 2000/- (दो हजार रुपये) मुकदमेबाजी खर्च देने को कहा।

    केस नंबर: सी.सी. नंबर 33 ऑफ 2019

    शिकायतकर्ता के वकील: के. गिरिधर, पार्टी-इन-पर्सन

    विरोधी पक्षों के वकील: पी. बद्रीनाथ, वकील


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