"धर्म का चुनाव कपल के बीच का मामला": गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा
LiveLaw News Network
6 Aug 2021 11:25 AM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिका पर गुजरात राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और कोर्ट ने कहा कि अंतर-धार्मिक विवाह के मामले में यह विवाहित जोड़े को तय करना है कि उन्हें किस धर्म का पालन करना है। दरअसल, गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 को संशोधित करके गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 बनाया गया है।
याचिकाकर्ताओं की प्रस्तुतियां
वकील मिहिर जोशी ने गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की धारा 3 का उल्लेख करते हुए तर्क दिया कि विवाह को या किसी व्यक्ति द्वारा विवाह करना एक अपराध बना दिया गया है और यह अनुच्छेद 21 के विपरीत है।
वकील मिहिर जोशी ने आगे कहा कि,
"एक अंतर-धार्मिक विवाह कभी भी सुचारू नहीं होता है, यह अधिनियम अनिवार्य रूप से शादी करने के लिए अलग-अलग धर्मों के दो वयस्कों की पसंद को छीन रहा है। विवाह अपने आप में अवैध नहीं है, जिसे एक अपराध बना दिया गया है।"
यह ध्यान दिया जा सकता है कि 2003 का मूल अधिनियम केवल बल पूर्वक या प्रलोभन या कपटपूर्ण तरीकों से एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरदस्ती धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है। हालांकि, अब संशोधित अधिनियम विवाह द्वारा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन या किसी व्यक्ति की शादी में सहायता करने जैसे कृत्यों को प्रतिबंधित करता है। ।
अदालत की कार्यवाही
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि,
"अगर जबरदस्ती या कपटपूर्ण तरीके से शादी होती है और फिर धर्मांतरण होता है, तो निश्चित रूप से यह सही नहीं है, लेकिन अगर शादी की वजह से धर्म परिवर्तन होता है तो इसे अपराध कहना सही नहीं है।"
राज्य सरकार की ओर से पेश मनीषा लवकुमार ने जवाब दिया कि,
''अगर शादी का लालच ही एकमात्र जरिया है जिसके आधार पर धर्मांतरण होता है...''
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि,
"हम स्पष्ट करते हैं कि अगर बिना किसी जबरदस्ती या किसी कपटपूर्ण या किसी प्रलोभन के कोई अंतर-धार्मिक विवाह होता है तो कम से कम इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए। जैसे ही कोई प्राथमिकी दर्ज कराता है, व्यक्ति को सीधे जेल में डाल दिया जाता है. यह उचित नहीं है।"
एडवोकेट मनीषा लवकुमार ने फिर से जवाब दिया कि अधिनियम का उद्देश्य यह देखना है कि अगर कोई कहत है कि जब तक आप धर्मांतरित नहीं होंगे तब तक कोई विवाह नहीं होगा और इसलिए इस पर रोक लगाना अधिनियम का उद्देश्य है। मजबूर किया जा रहा है कि अगर आप शादी करना चाहते हैं तो आपको धर्मांतरण करना ही होगा। इसी पर रोक लगाने के लिए कानून बनाया गया है।
सीजे विक्रम नाथ ने इस पर कहा कि,
"लेकिन यह कपल के बीच का मामला है।"
एडवोकेट मनीषा लवकुमार ने कहा कि बहुत ईमानदारी से इस स्तर पर मैंने अधिनियम की समग्रता की जांच नहीं की है। कृपया नोटिस जारी करें। मैंने एक्ट की समग्रता की जांच नहीं की है और इस प्रकार मैं कोर्ट की सहायता करने में असमर्थ हूं।
न्यायमूर्ति वैष्णव ने इसके अलावा कहा कि अगर किसी की शादी होती है और फिर उसे जेल भेज दिया जाता है तो राज्य खुद को संतुष्ट कर लेगा कि शादी जबरदस्ती की गई थी?
स्टेट काउंसल ने प्रस्तुत किया कि एक अंतर-धार्मिक विवाह अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन सभी विवाह के लिए धर्मांतरण की आवश्यकता नहीं होती है।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि,
"लेकिन, यह विवाहित जोड़े को तय करना है कि उन्हें किस धर्म का पालन करना है।"
मुख्य न्यायाधीश ने इसके अतिरिक्त यह भी टिप्पणी की कि,
"यदि राज्य अंतर-धार्मिक विवाह के मामले में कोई कार्रवाई करता है / किसी व्यक्ति को जेल भेजता है, तो आप हमारे पास आएं हम आपकी रक्षा करेंगे।"
कोर्ट ने अंत में राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामले को 17 अगस्त को सुनवाई के लिए पोस्ट किया। इसके अलावा चूंकि राज्य अधिनियम को चुनौती दी गई है, अदालत ने महाधिवक्ता को भी नोटिस जारी किया है।