इतने संवेदनशील क्यों? फ़रहान अख्तर की फ़िल्म का नाम बदलने की याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार
Amir Ahmad
17 Nov 2025 6:02 PM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को फ़रहान अख्तर की आने वाली फ़िल्म '120 वीर बहादुर' का टाइटल बदलने की मांग वाली जनहित याचिका पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
याचिका में फ़िल्म का नाम बदलकर '120 वीर अहीर' करने की मांग की गई थी। अदालत ने साफ़ कहा कि फ़िल्म के प्रमाणन की पुनर्विचार प्रक्रिया अभी लंबित है और केंद्र सरकार ने आश्वस्त किया कि इस पर दो दिन के भीतर निर्णय ले लिया जाएगा, क्योंकि फ़िल्म का प्रदर्शन इस शुक्रवार, 21 नवंबर को प्रस्तावित है।
यह याचिका संयुक्त आखिर रेजीमेंट मोर्चा की ओर से दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि फ़िल्म में वर्ष 1962 के रेज़ांग ला युद्ध से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया।
साथ ही यह भी कहा गया कि फ़िल्म का शीर्षक सैनिकों और उनके समुदाय की पहचान को कमतर दिखाने वाला है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी ने याचिकाकर्ता से पूछा कि एक फ़िल्म के नाम को लेकर इतनी संवेदनशीलता क्यों दिखाई जा रही है।
अदालत ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने केवल ट्रेलर देखा है जबकि सैनिकों के साहस और शौर्य को समझने के लिए पूरी फ़िल्म देखना ज़रूरी है।
याचिका में यह तर्क दिया गया कि रक्षा मंत्रालय और केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड ने कहानी की ऐतिहासिक प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के अपने दायित्व का पालन नहीं किया। इसमें उल्लेख किया गया कि आधिकारिक इतिहास के अनुसार 120 सैनिकों में से 114 युद्ध में शहीद हुए थे और यह टुकड़ी मुख्यतः अहीर/यादव समुदाय के सैनिकों से बनी थी, जिन्होंने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में अंतिम सांस तक मोर्चा संभाला था।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि फ़िल्म इस सामूहिक शौर्यगाथा को एक काल्पनिक चरित्र की व्यक्तिगत वीरता के रूप में दिखाती है, जिससे वास्तविक सैनिकों और उनके समुदाय की पहचान धूमिल होती है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट धीरज जैन ने अदालत को बताया कि फ़िल्म का परीक्षण पांच सदस्यीय समिति ने किया, जिसमें एक अनुभवी सैन्य विशेषज्ञ भी शामिल थे, जो बॉलीवुड में सैन्य विषयों पर मार्गदर्शन देने के लिए नियुक्त किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि कानून और नियमों के सभी प्रावधानों का पूरी तरह पालन किया गया।
निर्देशक की ओर से पेश एडवोकेट अभिनव सूद ने दलील दी कि याचिका समय से पहले दायर की गई, क्योंकि आपत्तियाँ केवल टीज़र देखकर उठाई गई, जबकि किसी फ़िल्म का आकलन संपूर्ण रूप से करना चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता पहले ही सिनेमैटोग्राफ़ अधिनियम की धारा 6 के तहत केंद्रीय सरकार के पास पुनरीक्षण आवेदन दायर कर चुका है, जो इस मामले में उपलब्ध वैधानिक उपाय है।
अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि चूँकि याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दायर कर दी और केंद्र सरकार ने दो दिनों के भीतर इस पर निर्णय लेने का आश्वासन दिया, इसलिए इस चरण पर न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।
इसके साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

