छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने POCSO मामले में पीड़िता के सीआरपीसी की धारा 164 के बयान की प्रामाणिकता साबित करने के लिए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को 'बचाव गवाह' के रूप में पेश होने का आदेश दिया

Shahadat

13 Nov 2023 2:51 PM IST

  • छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने POCSO मामले में पीड़िता के सीआरपीसी की धारा 164 के बयान की प्रामाणिकता साबित करने के लिए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को बचाव गवाह के रूप में पेश होने का आदेश दिया

     Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को बुलाए, जिसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया, जिससे पीड़िता के बयान की प्रामाणिकता साबित करने के लिए उसे 'बचाव गवाह' के रूप में पेश किया जा सके।

    जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की एकल पीठ आवेदक द्वारा दायर पुनर्विचार आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (POCSO), जांजगीर चांपा के आदेश को चुनौती दी गई, जिन्होंने न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी), पामगढ़ को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए पीड़िता के बयान की सत्यता साबित करने के लिए 'बचाव गवाह' बुलाने का उनका आवेदन खारिज कर दिया।

    पुनर्विचार आवेदक पर आईपीसी की धारा 363, 366 और 376 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 4 और 6 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया और उसे मुकदमे का सामना करना पड़ा।

    आवेदक पर आरोप था कि वह करीब 15 साल की नाबालिग पीड़िता को शादी का झांसा देकर बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया और कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। पीड़िता को बचाया गया और आवेदक के खिलाफ उपरोक्त आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया।

    जांच के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया। आरोप तय होने के बाद अभियोजन पक्ष की ओर से कई गवाहों से पूछताछ की गई। सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी का बयान दर्ज होने के बाद मामला बचाव साक्ष्य के लिए तय किया गया।

    बचाव साक्ष्य के चरण में जब अभियुक्त ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को अपनी ओर से गवाह के रूप में बुलाने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया तो आक्षेपित आदेश पारित कर दिया गया।

    आवेदक के वकील सुमित सिंह ने तर्क दिया कि मुकदमे के दौरान अपने बयान में पीड़िता ने अभियोजन पक्ष के मामले के समर्थन में बढ़ा-चढ़ाकर बताया। हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपना बयान देते समय उसने आवेदक के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया।

    जब पीड़िता से उस बयान का सामना कराया गया, जो उसने एक्ट की धारा 164 के तहत दिया तो उसने संबंधित ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को ऐसा कोई भी बयान देने से साफ इनकार कर दिया। इस प्रकार, वकील ने तर्क दिया कि ऐसी स्थिति में आवेदक के लिए ट्रायल कोर्ट में 'बचाव गवाह' के रूप में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट का बयान दर्ज कराना आवश्यक हो गया, जिससे उक्त बयान की सत्यता का पता लगाया जा सके। हालांकि, राज्य ने पुनर्विचार आवेदन खारिज करने की प्रार्थना की।

    पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने पी. युवाप्रकाश बनाम राज्य प्रतिनिधि मामले में सुप्रीम कोर्ट के पुलिस निरीक्षक के फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया। इसकी सत्यता साबित करने के लिए 'बचाव गवाह' के रूप में जांच की गई।

    इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मिसाल को ध्यान में रखते हुए न्यायालय का विचार था कि आवेदक को मामले में खुद का बचाव करने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए। इसके लिए पीड़ित की प्रामाणिकता को जानना आवश्यक है। एक्ट की धारा 164 के तहत बयान दर्ज किया गया।

    अदालत ने कहा,

    "इस दृष्टिकोण से ट्रायल कोर्ट के समक्ष संबंधित ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट का बयान दर्ज करना उचित होगा।"

    तदनुसार, पुनर्विचार आवेदन की अनुमति दी गई और ट्रायल कोर्ट को बचाव गवाह के रूप में संबंधित ज्यूडिशिल मजिस्ट्रेट एक्जामिनेशन आयोजित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया गया।

    आवेदक के वकील: सुमित सिंह और राज्य के वकील: विनोद टेकाम, पी.एल.

    Next Story