धन शोधन मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अधिकारी को अंतरिम राहत से इनकार किया

LiveLaw News Network

4 July 2020 3:45 AM GMT

  • धन शोधन मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अधिकारी को अंतरिम राहत से इनकार किया

    Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मंगलवार को पूर्व आईएएस अधिकारी और छत्तीसगढ़ के संसदीय मामलों के विभाग में प्रधान सचिव को उनके ख़िलाफ़ एन्फ़ॉर्स्मेंट केस इन्फ़र्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) के तहत दायर मामले में कोई भी अंतरिम राहत देने से मना कर दिया। अधिकारी के ख़िलाफ़ धन शोधन का मामला दर्ज है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीआर रामचंद्र मेनन और न्यायमूर्ति पार्थ प्रतिम साहू की खंडपीठ ने प्रवर्तन निदेशालय को इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। पीठ ने इस मामले में किसी भी तरह के अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया।

    अधिकारी लोक शुक्ला ने अपने वक़ील आयुष भाटिया के माध्यम से हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी और कहा था कि उसके ख़िलाफ़ ईसीआईआर के तहत दर्ज मामला फ़र्ज़ी है। उसने अपनी दलील में कहा कि उसके मामले में निम्नलिखित बातों के बिना भी मामला चलाया जा रहा है –

    (i) सीआरपीसी की धारा 154 के तहत किसी संज्ञेय अपराध के होने के बारे में किसी सूचना की रिकॉर्डिंग।

    (ii) सीआरपीसी की धारा 257 के तहत किसी संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट/एफआईआर/ईसीआईआर किसी मजिस्ट्रेट को दिए बिना।

    (iii) अगर याचिकाकर्ता की गिरफ़्तारी हुई और उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया तो इस बारे में मजिस्ट्रेट के समक्ष इस केस की डायरी की पेशी (सीआरपीसी की धारा 167 के तहत)

    याचिकाकर्ता ने मामले की जांच को रायपुर से नई दिल्ली ट्रान्स्फ़र करने पर भी सवाल उठाया।

    उसने कहा कि जब रायपुर में सारी व्यवस्था है फिर भी उसके मामले की जांच नई दिल्ली भेज दिया गया और उसे COVID 19 महामारी के समय संबंधित अधिकारी के समक्ष दिल्ली में उपस्थित होने को कहा गया; उसे परेशान करने के लिए ही ऐसा किया गया है।

    ईडी ने कहा था कि याचिका कार्रवाई को रोकने के लिए दायर की गई है और इसके बावजूद कि याचिककर्ता को गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत मिल गई है, वह मामले की जांच में सहयोग नहीं कर रहा है।

    ईडी की इस दलील पर हाईकोर्ट ने विचार किया –

    "यह कहा गया कि याचिककर्ता ने संज्ञेय अपराध को देखते हुए अग्रिम ज़मानत की मांग की और उसे आदेश मिल भी गया, लेकिन अदालत ने उसे जांच में सहयोग का विशेष रूप से आदेश दिया है। आदेश प्राप्त करने के बाद कोर्ट की बात मानने की बजाय याचिककर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और रिट याचिका दायर की है और अधिनियम के प्रावधानों पर सवाल उठाया है; इसका कोई आधार नहीं है।"

    जैसे कि ऊपर कहा गया है कि कोर्ट ने अथॉरिटी को नोटिस जारी किया है पर अभी जांच को स्थगित करने से मना कर दिया। याचिका में धन शोधन अधिनियम 2002 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई है।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    · अधिनियम की धारा 50 संविधान के तहत सेल्फ़-इंक्रिमिनेशन के अधिकार के ख़िलाफ़ है;

    · पीएमएलए के अध्याय III के प्रावधान जो कि ज़ब्ती, न्यायिक निर्णय से जुड़े हुए हैं, असंगत और गलत हैं;

    · पीएमएलए की धारा 17 और 18 के प्रावधान मनमाना हैं;

    · अधिनियम की धारा 19 अथॉरिटी को किसी आरोपी के प्रथम दृष्टया दोषी सिद्ध होने के पहले ही उसे गिरफ़्तार करने का अधिकार देता है;

    · पीएमएलए की धारा 24 आपराधिक क़ानून के इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है कि कोई व्यक्ति अपराध सिद्ध होने तक निर्दोष होता है;

    ईडी ने इन दलीलों का विरोध किया और कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के बारे में उसकी समझ गलत है।

    मामले का विवरण :

    केस का शीर्षक: आलोक शुक्ला बनाम प्रवर्तन निदेशालय

    केस नंबर: WPCR No. 291/2020

    कोरम: मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीआर रामचंद्र मेनन और न्यायमूर्ति पार्थ प्रतीम साहू

    पेश हुए : वक़ील अर्शदीप सिंह याचिककर्ता के लिए, एएसजी बी गोपा कुमार और डॉक्टर सौरभ पांडे (प्रतिवादी के लिए)

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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