हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ आपराधिक केस दायर करने वाले न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उचित ठहराया

LiveLaw News Network

19 Aug 2020 1:53 PM GMT

  • हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ आपराधिक केस दायर करने वाले न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उचित ठहराया
    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उस न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ आपराधिक केस दायर किए थे।

    छत्तीसगढ़ के न्यायिक अधिकारी प्रभाकर ग्वाल के मामले में बिना जांच के ही पूर्ण न्यायालय ने उसकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी, जिसके बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया था। इस मामले में आरोप था कि इस अधिकारी ने अपनी पत्नी के माध्यम से तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश सहित कई व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवाया था। इस मामले में ग्वाल ने अपनी बर्खास्तगी के आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी।

    अधिकारी के मामले की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति पी सैम कोशी ने कहा कि न्यायिक अधिकारी ने अपनी पत्नी के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश व हाईकोर्ट के एक अन्य जज के खिलाफ आपराधिक केस दायर किया था। जिसमें बिना किसी ठोस तथ्यों के निराधार आरोप लगाए गए थे। इतना ही नहीं ऐसा करते समय न तो हाईकोर्ट को सूचित किया गया और न ही मंजूरी या अनुमति ली गई।

    जज ने कहा कि-

    याचिकाकर्ता के आचरण से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उसने पब्लिसिटी पाने और न्यायाधीशों व अधिकारियों की छवि खराब करने के विशिष्ट इरादे से ऐसा किया है। वहीं इसी के साथ वह पूरी तरह से न्यायपालिका की छवि को भी धूमिल करना चाहता था।

    अदालत ने यह भी कहा कि इस अधिकारी ने बार-बार कई पत्र भेजे थे, जिनमें इस अधिकारी ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों,उच्च न्यायिक सेवा के कुछ वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों व अपने कुछ सहयोगियों के खिलाफ गंभीर, अपमानजनक और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाए थे जो एकदम झूठे,घिनौने और निदंनीय थे।

    पीठ ने कहा कि-

    "अधीनस्थ न्यायपालिका का एक अधिकारी यदि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों व राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक केस दायर करने का साहस कर सकता है तो इस बात की कल्पना करने की कोई आवश्यकता नहीं है कि न्यायिक सेवा में रहते हुए यह अधिकारी अपनी मजिस्ट्रियल और न्यायिक शक्तियों का उपयोग करके कैसा कहर ढ़हा सकता है और इससे संस्थान को बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।

    याचिकाकर्ता ने काफी सारे पत्र हाईकोर्ट के पास भेजे थे और कुछ अवसरों पर तो उसने सीधे भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी पत्र भेजे हैं। पीठ ने कहा कि यदि हम उन विभिन्न पत्रों और इनकी भाषा पर गौर करते हैं तो यह स्वयं स्पष्ट रूप से दर्शा देते हैं कि अधिकारी अपने दृष्टिकोण में कभी भी विनम्र नहीं थे। इतना ही नहीं उन्होंने इन पत्रों में अपमानजनक भाषा का भी इस्तेमाल किया था। वहीं कारण बताओं नोटिस के जवाब में दी गई दलीलें सदंर्भ से बाहर की होती थी या उनका मामले से कोई लेना-देना नहीं होता था।''

    अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों को हमेशा उच्च स्तर के आचरण को बनाए रखना चाहिए और ऐसा ही आचरण लागू करना चाहिए,जिसका ध्यान उन्हें व्यक्तिगत रूप से रखना चाहिए ताकि संस्थान की छवि बनी रहे। वहीं एक जज के तौर पर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते समय कोर्टरूम के साथ आम जनता के बीच भी इस तरह का व्यवहार करना चाहिए कि न्यायपालिका को छवि धूमिल न हो पाए।

    कोर्ट ने कहा कि-

    ''हमेशा यह उम्मीद की जाती है कि एक न्यायिक अधिकारी को उच्च स्तर की अखंडता को बनाए रखने के अलावा न्यायिक अनुशासन को भी बनाए रखना चाहिए और हमेशा अनौचित्य से बचने की कोशिश करनी चाहिए। न्यायाधीश को हमेशा अपने आस-पास की स्थिति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उसे अतिसक्रिय या अति-प्रतिक्रियाशील होने से बचना चाहिए। हमेशा एक न्यायाधीश से यह अपेक्षा की जाती है कि वह खुद सबसे अधिक मेहनत से काम करे और खुद को उस व्यवहार से दूर रखे जो उत्पीड़न, अपमानजनक, पूर्वाग्रही या पक्षपाती हो ...

    ..न्याय के प्रशासन में जज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और न्याय देने के सिस्टम में ट्रायल कोर्ट के जज की काफी अहम भूमिका होती है। प्रत्येक न्यायिक अधिकारी का आचरण तिरस्कार या कलंक से ऊपर होना चाहिए। उसे कर्तव्यनिष्ठ, अध्ययनशील, व्यापक, विनम्र, धैर्यवान, समयनिष्ठ, न्यायपूर्ण, साथ ही निजी, राजनीतिक या पक्षपातपूर्ण प्रभावों के प्रति उदासीन होना चाहिए। उसे कानून के अनुसार न्याय करना चाहिए और अपनी नियुक्ति को सार्वजनिक विश्वास के रूप में दर्शाना चाहिए।

    उसे कभी भी अपने न्यायिक कर्तव्यों के शीघ्र और उचित प्रदर्शन के साथ अन्य मामलों या अपने निजी हित को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए और न ही उसे अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने या अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के उद्देश्य से अपने कार्यालय का संचालन करना चाहिए। न्यायिक कार्यालय की प्रकृति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत आचरण और राज्य की सबसे महत्वपूर्ण शाखा की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का आधिकारिक आचरण बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए।''

    अदालत ने इस न्यायिक अधिकारी की रिट याचिका को खारिज करते हुए यह भी कहा कि अनुच्छेद 311 (2) इस मामले में आकर्षित या लागू होता है क्योंकि न्यायिक अधिकारी ने जानबूझकर अपने पूरे कृत्य की कार्रवाई की है। अदालत ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड पर कई ऐसे तथ्य उपलब्ध थे, जिसके कारण पूर्ण न्यायालय ने अनुच्छेद 311 (2) को लागू करते हुए याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने की सिफारिश की थी।

    केस का विवरण

    केस का नाम- प्रभाकर ग्वाल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

    केस नंबर -रिट याचिका (एस) नंबर 2795/2016

    कोरम-न्यायमूर्ति पी सैम कोशी

    प्रतिनिधित्व-वकील उषा मेनन, सोमकांत वर्मा, प्रफुल्ल एन भारत

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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