केंद्र की ब्लॉकिंग शक्ति धारा 69A का उल्लंघन नहीं कर सकती; मध्यस्थ अपील करने का हकदार: ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष ब्लॉकिंग ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका में दलील दी

LiveLaw News Network

18 Oct 2022 5:19 AM GMT

  • केंद्र की ब्लॉकिंग शक्ति धारा 69A का उल्लंघन नहीं कर सकती; मध्यस्थ अपील करने का हकदार: ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष ब्लॉकिंग ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका में दलील दी

    कथित अपमानजनक ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने के केंद्र के आदेश को चुनौती देने के मामले में, माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ने आज कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि जब तक विषय वस्तु सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 (ए) में उल्लिखित आधारों का उल्लंघन नहीं करती है, तब तक एक सर्वव्यापी सामान्य रोक आदेश नहीं दिया जा सकता है।

    यह प्रावधान केंद्र को किसी भी मध्यस्थ को लिखित में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए कुछ सूचनाओं को अवरुद्ध करने का निर्देश देने का अधिकार देता है, बशर्ते यह संतुष्ट है कि ऐसा करना आवश्यक है (i) भारत की संप्रभुता और अखंडता तथा भारत की रक्षा के हित में ( ii) अधिकृत निकाय की सुरक्षा, (iii) विदेशी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या (iv) सार्वजनिक व्यवस्था या (v) उपरोक्त से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए।

    ट्विटर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और अशोक हरनहली ने कहा कि यदि विषय विस्तु धारा 69 (ए) के तहत निषेध के दायरे में नहीं आती है, तो उसे ब्लॉक नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के ब्लॉकिंग आदेश न केवल प्राथमिक उपयोगकर्ता के अधिकारों को, बल्कि मध्यस्थ के अधिकारों को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार, यह उनका मामला था कि मध्यस्थ प्राधिकरण के ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देने के हकदार हैं।

    दातार ने दलील दी,

    "यदि यह मेरा प्लेटफॉर्म है और उपयोगकर्ता को ब्लॉक कर दिया जाता है तो मैं (यहां) आने और यह कहने का हकदार हूं कि यह प्लेटफॉर्म धारा 69 ए का उल्लंघन नहीं कर रहा है ... मेरा प्लेटफॉर्म कंटेंट पोस्ट करने और विचार विमर्श करने में सक्षम है। यहां मामला बदतर है, क्योंकि मुझे ब्लॉकिंग आदेश के बारे में उपयोगकर्ताओं को कुछ बताने की अनुमति है।"

    उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में नियमों और अनुपालन तंत्रों की तुलना करते हुए कहा कि किसी विशेष विषय वस्तु को बिना नोटिस के तुरंत हटाया जा सकता है, बशर्ते वह घृणित हो, लेकिन अन्य सभी मामलों में, उन्होंने जोर दिया कि प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

    "केवल चाइल्ड पोर्न जैसे घृणित विषय वस्तु के मामले में प्रत्यक्ष वैधानिक हस्तक्षेप अनिवार्य है। प्रक्रियात्मक निष्पक्षता का यह प्रावधान केवल घृणित हिंसक विषय वस्तु वाले मामलों में है, लेकिन अन्य मामलों में नहीं।"

    दातार ने यह यह भी दलील देने की कोशिश की कि भारत में, ब्लॉकिंग आदेश स्थायी प्रकृति के हैं। हालांकि, कोर्ट की इस पूछताछ पर कि क्या भारतीय कानूनों के तहत आदेश हटाने का कोई प्रावधान है, तो दातार ने कहा कि आईटी नियमावली के नियम 4) के तहत प्रावधान सचिव को आदेश वापस लेने का अधिकार देते हैं और इसकी एक विस्तृत प्रक्रिया उपलब्ध है।

    ब्लॉक करने की शक्ति ट्वीट केंद्रित होती है और उपयोगकर्ता और मध्यस्थ को कारणों का खुलासा किया जाना चाहिए:

    पीठ ने धारा 19 ए में प्रयुक्त अभिव्यक्ति 'रिकॉर्ड किए जाने वाले कारणों' का उल्लेख किया और पूछा कि क्या जनता के अनुरोध पर ऐसे कारणों तक पहुंचा जा सकता है।

    इधर, हरनहली ने प्रस्तुत किया कि ब्लॉकिंग आदेश तक पहुंच की अनुमति न देकर, इसकी जांच करने और वैधता पर आपत्तियां उठाने के उपयोगकर्ता के साथ-साथ मध्यस्थ दोनों के अधिकार भी छीन लिये जाते हैं। उन्होंने कहा कि 'श्रेया सिंघल' के फैसले के सुरक्षा उपायों को तब तक पूरा नहीं किया जा सकता जब तक कि उपयोगकर्ताओं को यह जांचने का अधिकार न हो कि क्या सही प्रक्रिया का पालन किया गया है। उन्होंने कहा कि आदेश उपयोगकर्ताओं और मध्यस्थ दोनों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए, क्योंकि उनके अधिकार दांव पर हैं।

    फिर हरनहली ने प्रस्तुत किया:-

    "ब्लॉक करने की शक्ति ट्वीट विशेष पर निर्भर करती है और अकाउंट्स को ब्लॉक करने का मतलब होता है थोक में ब्लॉक करना, जिसे असाधारण परिस्थितियों में ही ब्लॉक किया जा सकता है, खासकर तब जब अकाउंट में असावधान ट्विट किया जाता है या पसंद का ट्वीट नहीं होता है। "

    अधिवक्ता हरनहल्ली ने कथित रूप से आपत्तिजनक ट्वीट को, न कि पूरे अकाउंट को ब्लॉक करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा,

    "मान लीजिए मैं एक बुरी किताब लिखता हूं। केवल किताब पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।"

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि प्रसार की गति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट पहले ही किताबों और ऑनलाइन सामग्री के बीच का अंतर समझाया जा चुका है

    इसके बाद हरनहल्ली ने सीआरपीसी की धारा 95 [कुछ प्रकाशनों को ज़ब्त करने और उसके लिए तलाशी वारंट जारी करने की घोषणा करने की शक्ति] का हवाला दिया और दलील दी कि ब्लॉकिंग ऑर्ड उपयोगकर्ता को आगे ट्वीट करने से रोकता है।" उन्होंने कहा, ''अगर वे बिना वैध कारण बताए हर खाते को ब्लॉक करते रहते हैं तो प्लेटफॉर्म खुद ही प्रभावित होता है।"

    संजय हेगड़े की वादकालीन याचिका खारिज

    सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोंधी ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े की ओर से दायर एक वादकालीन अर्जी का उल्लेख किया, जिनका ट्विटर अकाउंट 2019 में वापस ब्लॉक कर दिया गया था।

    अपने अकाउंट को निलंबित करने की हेगड़े की चुनौती दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है। इधर, उन्होंने यह दलील दी कि हालांकि ट्विटर केंद्र के ब्लॉकिंग आदेशों के खिलाफ शिकायत कर रहा है, लेकिन इस प्लेटफॉर्म ने कुछ ट्वीट्स पर उनके अकाउंटस निलंबित करके उनके साथ इसी तरह का व्यवहार किया था।

    हालांकि, कोर्ट ने अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा,

    "केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता (हेगड़े) एक अन्य हाईकोर्ट के समक्ष एक पक्षकार हैं जहां समान विषय वस्तु को उठाया गया है, यह इस अदालत के समक्ष पक्षकार के तौर पर समाहित होने का कमजोर आधार है।"

    इसमें कहा गया है,

    "वरिष्ठ अधिवक्ता का यह दलील देना कि दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष कुछ दलीलें इस मामले में पार्टियों द्वारा संदर्भित की जाती हैं, इसिलए उनके मुवक्किल के पूर्वाग्रह होगा, प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसकी अभिव्यक्ति कठिन है।"

    श्रुतिका पांडे द्वारा संकलित

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