सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क किए बिना एफआईआर दर्ज करने के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं जा सकते: गुजरात हाई‌कोर्ट

LiveLaw News Network

4 Feb 2022 3:53 PM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क किए बिना एफआईआर दर्ज करने के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं जा सकते: गुजरात हाई‌कोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने पाया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क किए बिना एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाले विभिन्न आवेदन सीधे हाईकोर्ट के समक्ष दायर किए जा रहे हैं।

    जस्टिस विपुल पंचोली के अनुसार , यह धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का उल्लंघन है। इसलिए, बेंच ने अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी, जो उसके द्वारा प्रतिवादी-पुलिस प्राधिकरण के पास दायर लिखित शिकायत के आधार पर थी।

    कोर्ट ने यह देखा,

    " एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाले विभिन्न आवेदन कोड की धारा 156 (3) के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क किए बिना सीधे इस न्यायालय के समक्ष दायर किए जा रहे हैं, जो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के सीधे विरोध में है। इस प्रकार, तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर वर्तमान मामले में यह याचिका खारिज की जाती है।"

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसने कुछ व्यक्तियों के खिलाफ प्रतिवादी-पुलिस प्राधिकरण को 10.01.22 में एक लिखित शिकायत दी थी। फिर भी इसे 13.01.22 तक भी पंजीकृत नहीं किया गया था। यह कहते हुए कि संज्ञेय अपराध होने पर एफआईआर दर्ज करना पुलिस-प्राधिकरण का कर्तव्य है, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के हस्तक्षेप की प्रार्थना की।

    इसके विपरीत, प्रतिवादी ने लिखित शिकायत में उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता से संबंधित व्यक्तियों द्वारा नौ ब्लैंक चेक प्राप्त किए गए थे। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता इस तरह की शिकायत दर्ज करके बचाव करने की कोशिश कर रहा था और इस पर न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि प्रतिवादी ने बताया कि याचिकाकर्ता के पास संबंधित मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष एक निजी शिकायत दर्ज करने का उपाय था और इस तरह याचिका को खारिज करने का आग्रह किया।

    फैसला

    बेंच ने प्राथमिक मुद्दे की पहचान की, जो प्रतिवादी-पुलिस प्राधिकरण द्वारा शिकायत का पंजीकरण न करने की शिकायत थी। इसे संबोधित करने के लिए, बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को पुलिस प्राधिकरण द्वारा तीन दिनों के भीतर यानी 13.01.2022 को बुलाया गया था और फिर भी वर्तमान याचिका सीधे हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई थी। कोर्ट ने 2020 के विशेष आपराधिक आवेदन संख्या 6760 में गुजरात हाईकोर्ट की समन्वय पीठ की टिप्पणियों पर विचार किया,

    " हमारी राय में सीआरपीसी की धारा 156 (3) एक मजिस्ट्रेट में ऐसी सभी शक्तियों को शामिल करने के लिए पर्याप्त है जो एक उचित जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं, और इसमें एक एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने और एक उचित जांच का आदेश देने की शक्ति शामिल है यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट हैं कि पुलिस द्वारा उचित जांच नहीं की गई है या नहीं की जा रही है। "

    यह विचार सुधीर भास्करराव तांबे बनाम हेमंत यशवंत धागे और अन्य और साकिरी वासु बनाम यूपी राज्य के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने लिया था, जहां बेंच ने कहा था:

    " यदि किसी व्यक्ति की शिकायत है कि उसकी एफआईआर पुलिस द्वारा दर्ज नहीं की गई है, या दर्ज की गई है, उचित जांच नहीं की जा रही है, तो पीड़ित व्यक्ति का उपचार धारा 226 के तहत हाईकोर्ट में जाना नहीं है, बल्‍कि धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना है। "

    गुजरात हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने यह भी कहा था कि एफआईआर दर्ज करने के इस कानून को सुप्रीम कोर्ट ने अच्छी तरह से स्थापित किया था और इसकी पुष्टि की थी। इन उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के साथ याचिका के टकराव को देखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

    केस शीर्षक: रंजीतप्रसाद चंद्रदेवराम राजवंशी श्री लॉजिस्टिक्स के मा‌लिक बनाम गुजरात राज्य

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (गुजरात) 20

    केस नंबर: आर/एससीआर.ए/1114/2022

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