किसी कैदी को 14 दिनों से अधिक एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता - बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो साल चार माह बाद अंडा सेल से निकाला
LiveLaw News Network
31 Jan 2022 12:13 PM IST
एकांत कारावास में दो साल चार महीने की सजा काट चुके इमरान शेख ने केंद्रीय कारागार, औरंगाबाद के अधीक्षक को लिखा था, "मैं भूल गया हूं कि इंसानों के साथ संवाद कैसे किया जाता है, हर मानवीय भावनाएं खत्म हो चुकी हैं, यहां तक कि जानवरों को भी इस तरह नहीं रखा जाता है।" हालांकि उसे राहत नहीं मिली थी।
पिछले हफ्ते, बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने शेख की पत्नी के पत्र का संज्ञान लिया और जेल अधिकारी को उसे तत्काल प्रभाव से एक साधारण जेल सेल में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया, और डॉक्टरों की एक टीम को जेल का दौरा करने तथा उसकी स्थिति का पता लगाने का आदेश दिया।
"हम याचिका में लगाए गए आरोपों को पढ़कर स्तब्ध हैं, साथ ही कैदी की ओर से खुद तथा हमारे समक्ष याचिकाकर्ता के रूप में फरियाद लेकर आई कैदी की पत्नी द्वारा प्रस्तुत किए गए अभ्यावेदन को पढ़कर हैरान हैं।"
कोर्ट ने आगे, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, औरंगाबाद को शेख से जेल में मिलने, उसका बयान दर्ज करने और औरंगाबाद जेल की अंडा सेल की स्थिति पर हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि कैदी अधिनियम की धारा 46 (10) के तहत 14 दिनों की अवधि से अधिक सेलुलर कारावास की अनुमति नहीं होती है। कैदी को इतने ही दिनों के लिए एक सामान्य सेल में वापस स्थानांतरित करने के बाद ही फिर से 14 दिनों की अवधि के लिए अंडा सेल में भेजा जा सकता है।
"यद्यपि कैदी अधिनियम की धारा 46 (10) के प्रावधानों के संदर्भ में, सेलुलर कारावास 14 दिनों की अवधि से अधिक नहीं दिया जा सकता है, लेकिन, याचिकाकर्ता के दोषी पति इमरान @ मेंहदी नासिर शेख को पिछले दो साल और चार महीने से लगातार एकांत कारावास में रखा गया है।"
हाईकोर्ट प्रशासन को शेख की पत्नी रूहीना का पत्र मिलने के बाद, उन्होंने हाईकोर्ट विधिक सेवा उप-समिति, औरंगाबाद के वकील रूपेश जायसवाल को याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया।
शेख को हत्या, सबूत नष्ट करने और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था। जायसवाल ने दलील दी कि एकांत कारावास की सजा के बाद उन्होंने सितंबर 2021 में एसपी को पत्र लिखा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। तब तक दो साल बीत चुके थे।
पत्र में कैदी ने कहा कि एकांत कारावास ने उसके दिमाग को प्रभावित किया है। वह मतिभ्रम की स्थिति से गुजर रहा है और अन्य मानसिक समस्याओं एवं बीमारियों से पीड़ित है। उसे मांसपेशियों में समस्या आ गयी है, उसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप है और उसके पेट पर 180 टांके हैं।
"इसलिए सुधार के नाम पर और मेरी चिकित्सा संबंधी कई समस्याओं को देखते हुए, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया मुझे अंडा बैरक में एकांत कारावास से हटाया जाए, इससे पहले कि मनोवैज्ञानिक मानसिक रोग की यह बीमारी और जटिल हो जाए।"
जायसवाल ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में शेख की पत्नी रूहीना ने कहा था कि वह अपने पति से मिली थी और उसकी हालत बिगड़ रही थी और वह उससे ठीक से संवाद नहीं कर पा रहा था। फिर भी कुछ नहीं हुआ।
अंत में, हाईकोर्ट ने शेख की दुर्दशा का संज्ञान लिया। अपने आदेश में कोर्ट ने 'चार्ल्स गुरमुख सोबराज बनाम दिल्ली सरकार और अन्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गयी कुछ टिप्पणियों को दर्ज किया कि एकांत कारावास, सेलुलर अलगाव अमानवीय और तर्कहीन है।
उपरोक्त निर्देशों के साथ, कोर्ट ने मामले को 31 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया।
केस टाइटल: शेख रूहीना बनाम द स्टेट ऑफ महाराष्ट्र
केस नंबर: क्रिमिनल रिट याचिका 119/2022
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (बॉम्बे) 26
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