किसी लापता व्यक्ति के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट तब जारी नहीं की जा सकती, जब एफआईआर में किसी पर भी उसे अवैध रूप से हिरासत में लेने का आरोप न हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

17 Nov 2023 11:02 AM GMT

  • किसी लापता व्यक्ति के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट तब जारी नहीं की जा सकती, जब एफआईआर में किसी पर भी उसे अवैध रूप से हिरासत में लेने का आरोप न हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी लापता व्यक्ति के संबंध में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट (Habeas Corpus Writ) जारी नहीं की जा सकती, खासकर तब जब किसी भी नामित व्यक्ति पर उस व्यक्ति की अवैध हिरासत के लिए जिम्मेदार होने का आरोप नहीं लगाया गया है, जिसके उत्पादन के लिए रिट जारी की गई है।

    जस्टिस करुणेश सिंह पवार की पीठ ने अपने लापता बेटे को पेश करने की मांग करने वाली मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    पीठ ने अपने आदेश में कहा,

    “याचिकाकर्ता अपने बेटे की गैरकानूनी हिरासत का प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में विफल रही है। किसी लापता व्यक्ति का पता लगाने के लिए इस न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी नहीं की जा सकती, विशेषकर जब एफआईआर बंदी के पिता द्वारा एक वर्ष से अधिक समय पहले ही गुमशुदगी दर्ज कराई जा चुकी है, जहां अवैध हिरासत का कोई आरोप नहीं है।”

    मूलतः, लापता लड़के की याचिकाकर्ता-मां का मामला यह है कि उसका बेटा 25 जून, 2022 से शक्ति नगर (लखनऊ) से लापता हो गया था। उसके लापता होने से ठीक एक दिन पहले लड़के और प्रतिवादी नंबर 4 (शिकंजी विक्रेता) के बीच कुछ हाथापाई हुई थी। उसे आशंका है कि लापता लड़के का प्रतिवादी नंबर 4 ने अपहरण कर लिया है।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी राज्य के एजीए ने प्रस्तुत किया कि मामले में जांच एफआईआर दर्ज होने के तुरंत बाद शुरू हुई और वर्तमान में जांच जारी है और तलाशी अभियान भी चल रहा है।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि जांच के दौरान एक शव प्राप्त हुआ था। उस शव के कपड़े और डीएनए सैंपल टेस्टण के लिए फोरेंसिक साइंस लैब में भेजे गए हैं।

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, हाईकोर्ट ने शुरुआत में कहा कि मामले में 27 जून, 2022 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी और एफआईआर में लापता लड़के के पिता ने कहा था कि उनके बेटे को कुछ बीमारियां हो गई हैं। शिकंजी वाले से हाथापाई होने वाली बात पर उन्होंने कहा कि आखिरी बार उसे शिकंजी की दुकान पर देखा गया था।

    अदालत ने आगे कहा कि एफआईआर में प्रतिवादी नंबर 4 के खिलाफ अवैध हिरासत के संबंध में कोई आरोप नहीं लगाया गया। अब घटना के एक साल से अधिक समय के बाद त्वरित बंदी याचिका दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि प्रतिवादी नंबर 4 के इशारे पर उपद्रवियों ने उसके बेटे का अज्ञात द्वारा अपहरण कर लिया गया था।

    यह देखते हुए कि इस याचिका में अभिसाक्षी द्वारा कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया गया कि प्रतिवादी नंबर 4 द्वारा बंदी को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है, अदालत ने कहा कि रिट याचिका एफआईआर में अभियोजन पक्ष की कहानी से निश्चित सुधार है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    “एफआईआर दर्ज करते समय शिकायतकर्ता द्वारा प्रतिवादी नंबर 4 के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया कि उसने बंदी का अपहरण कर लिया है, बल्कि साधारण गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज की गई। परिणामस्वरूप जांच शुरू हुई, जो अभी भी लंबित है। बंदी के लापता होने की सूचना विभिन्न नये चैनलों के अखबारों को दे दी गई है और पूरे शहर में पर्चे चिपका दिये गए हैं। हालांकि पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी तरह से हताशा में और जांच से परेशान होकर अभिसाक्षी द्वारा एक वर्ष से अधिक समय के बाद पहली बार अभियोजन की कहानी को बदलकर याचिका दायर की गई है।”

    इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट नियमित और आकस्मिक रूप से जारी नहीं की जा सकती, न्यायालय ने कहा कि जब तक याचिकाकर्ता द्वारा प्रथम दृष्टया यह दिखाने के लिए कोई स्पष्ट मामला स्थापित नहीं किया जाता है कि बंदी अवैध कारावास में है, तब तक बंदी प्रत्यक्षीकरण की कोई रिट जारी नहीं की जा सकती।

    तदनुसार, अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    अपीयरेंस- याचिकाकर्ता के वकील: दादू राम शुक्ला (डी.आर. शुक्ला), मनोज कुमार सिंह और प्रतिवादी के वकील: जी.ए.

    केस टाइटल- महेश (नाबालिग) थ्रू उनकी माता श्रीमती. मीना @ किरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. गृह विभाग एलकेओ और 3 अन्य [बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका नंबर- 337/2023]

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