नाबालिग पति की कस्टडी पत्नी को नहीं दी जा सकती क्योंकि यह एक वयस्क और नाबालिग के बीच सहवास की मंजूरी होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 Jun 2021 10:44 AM GMT

  • नाबालिग पति की कस्टडी पत्नी को नहीं दी जा सकती क्योंकि यह एक वयस्क और नाबालिग के बीच सहवास की मंजूरी होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक नाबालिग पति की कस्टडी उसकी पत्नी को देने से इनकार करते हुए कहा कि अगर एक नाबालिग पति को उसकी पत्नी की कस्टडी में रखा जाएगा, तो यह यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act),2012 के तहत अपराध की अनुमति देना होगा।

    न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की खंडपीठ ने कहा कि उनकी शादी शून्य करणीय है और अगर नाबालिग पति को उसकी पत्नी की कस्टडी में रखा जाता है, तो यह एक बालिग और नाबालिग के बीच सहवास को मंजूरी देने के बराबर होगा।

    कोर्ट के समक्ष मामला

    मनीष कुमार की उम्र करीब साढ़े 16 साल है और उन्होंने कानून के संज्ञान में एक बालिग ज्योति से शादी की, जिसकी उम्र सिर्फ 18 साल से अधिक है।

    मनीष, ज्योति से शादी के बाद ज्योति और उसके परिवार के सदस्यों के साथ रह रहा था। हालांकि मनीष की मां ने आरोप लगाया कि ज्योति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसके नाबालिग बेटे (मनीष) को बहला-फुसलाकर उसकी शादी के लिए मजबूर किया, जो कि कानून के तहत गैर-कानूनी है।

    उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके बेटे को ज्योति और उसके परिवार के सदस्यों ने अवैध रूप से कस्टडी में रखा है और इस तरह मनीष की मां ने तत्काल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।

    अदालत के समक्ष उसने मनीष कुमार को पहले याचिकाकर्ता के रूप में और खुद को दूसरे के रूप में पेश किया। अदालत से कहा कि वह अपने बेटे मनीष कुमार को इस अदालत के सामने पेश करने का आदेश दें और पेश होने पर मनीष कुमार की देखभाल के लिए उसकी कस्टडी उन्हें सौंपे जाने के तरीके पर विचार करें।

    अदालत के समक्ष मनीष कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपनी मां के साथ नहीं रहना चाहता।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि जिस तरह 1956 के अधिनियम की धारा 6 (सी) के तहत एक नाबालिग हिंदू पत्नी की शादी एक बालिग लड़के से और पति को उसके प्राकृतिक अभिभावक के रूप में माना जा सकता है, ऐसा कोई मामला नहीं है। उसी तरह पोक्सो अधिनियम नाबालिग और बालिग के बीच सहवास को प्रतिबंधित करता है।

    कोर्ट ने पोक्सो अधिनियम पर कहा कि धारा 3 [यौन हमला] के तहत परिभाषित अपराध, धारा 4 [ यौन हमले के लिए सजा] के तहत दंडात्मक खंड के साथ, उस व्यक्ति के मामले में आकर्षित होगा, जो ऐसा अपराध करता है। यौन उत्पीड़न, जैसा कि धारा 3 के तहत परिभाषित किया गया है, चाहे अपराधी की उम्र या लिंग कुछ भी हो।

    कोर्ट ने फैसला में कहा कि,

    "एक बालिग महिला को अगर शादी करने की अनुमति दी गई है या अधिक विशेष रूप से एक नाबालिग के साथ पूर्ण विवाह की अनुमति दी गई है तो 2012 के अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत निश्चित रूप से अभियोजन शुरू होने के बाद आरोप स्थापित होने के अधीन मुकदमा चलाया जाएगा।"

    कोर्ट ने मामले के तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि अगर मनीष, जो अभी भी 18 साल से कम उम्र का है, को उसकी पत्नी की कस्टडी में रखा जाता है तो यह अधिनियम,2012 की धारा 3 और धारा 4 उक्त क़ानून के अन्य दंडात्मक प्रावधान के तहत अपराध के कमीशन को मंजूरी देगा।

    पीठ ने कहा कि नाबालिग मनीष कुमार को उसकी बालिग पत्नी की कस्टडी में सौंपना, न केवल पूरी तरह से अवैध होगा, बल्कि 2012 के अधिनियम के तहत एक अपराध की अनुमति देना होगा और बच्चे के हित का उल्लंघन होगा। यदि ऐसा किया जाता है बिना किसी सिद्धांत या मानदंड के आवेदन के इसे एक विकल्प के रूप में माना जा सकता है जो नाबालिग के कल्याण को सुरक्षित करेगा।

    कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से फैसला सुनाया कि:

    "एक नाबालिग की कस्टडी या देखभाल, जो स्वाभाविक रूप से नाबालिग को अपराध का शिकार बनाती है या उसके वयस्क अभिभावक को 2012 के अधिनियम के तहत अपराधी बनानी है, नाबालिग का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कस्टडी या व्यवस्था के रूप में रखना उचित नहीं है।"

    कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद विचार के लिए निम्नलिखित मुद्दों का भी गठन किया।

    प्रश्न: क्या हिंदू विवाह अधिनियम,1955 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 14 के उल्लंघन में नाबालिग का विवाह प्रारंभ से ही शून्य है?

    उत्तर: एक नाबालिग की शादी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 (iii) और बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 3(1) के उल्लंघन में शुरू से ही शून्य नहीं है, लेकिन नाबालिग के विकल्प पर शून्य है। लेकिन, अगर बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 12 के तहत विचार की गई कोई भी आकस्मिकता मौजूद है और साबित की जा सकती है, तो विवाह अमान्य होगा।

    प्रश्न: क्या एक नाबालिग जो अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहता है, वह अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का हकदार है, विशेष रूप से, जहां वह वयस्क होने की कगार पर है और अपनी पसंद को व्यक्त करने के आयु वर्ग में है?

    उत्तर: किसी मामले की परिस्थितियों की समग्रता और एक नाबालिग द्वारा अपनी पसंद की अभिव्यक्ति के आधार पर जो वयस्कता प्राप्त करने के कगार पर है, न्यायालय किसी मामले में नाबालिग को अपने माता-पिता या अन्य प्राकृतिक अभिभावकों को वरीयता में उसकी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने की अनुमति दे सकता है।

    प्रश्न: क्या एक नाबालिग अपनी पसंद के किसी अजनबी के साथ अपने माता-पिता या प्राकृतिक अभिभावक से दूर रहने का फैसला करता है, उसे प्राकृतिक अभिभावक द्वारा उसकी कस्टडी में बहाल करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, खासकर, बंदी प्रत्यक्षीकरण के एक रिट के माध्यम से?

    उत्तर: जहां एक नाबालिग अपनी पसंद के किसी अजनबी के साथ अपने माता-पिता या प्राकृतिक अभिभावक से दूर रहने का फैसला करता है, उसे बंदी प्रत्यक्षीकरण के एक रिट के माध्यम से एक प्राकृतिक अभिभावक की कस्टडी में बहाल करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, इस शर्त के अधीन कि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि प्राकृतिक अभिभावक की तुलना में नाबालिग का कल्याण अजनबी के साथ बेहतर ढंग से सुरक्षित है। बेशक अदालत को इसमें बहुत सावधानी रखना होता है।

    प्रश्न: क्या नाबालिग को एक प्राकृतिक अभिभावक के अलावा किसी अन्य अजनबी के साथ रहने की इजाजत दी जा सकती है, अगर नाबालिग के कल्याण को पूरी तरह अजनबी के हाथों न्यायालय की संतुष्टि के लिए बेहतर तरीके से सुनिश्चित किया जाता है?

    उत्तर: किसी नाबालिग की कस्टडी किसी अजनबी को सौंपने से पहले कोर्ट को इस मामले में सबूतों पर स्पष्ट और स्पष्ट रूप से संतुष्ट होना चाहिए कि नाबालिग का कल्याण स्वाभाविक अभिभावकों की तुलना में अजनबी के हाथों में निश्चित रूप से बेहतर सुरक्षित है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "हालांकि किसी मामले में न्यायालय के लिए एक प्राकृतिक अभिभावक पर एक पूर्ण अजनबी का चयन करने की अनुमति हो सकती है, उस विकल्प का प्रयोग अत्यंत दूरदर्शिता और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए और अजनबी की वास्तविक और परिस्थितियों के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन पर किया जाना चाहिए। "

    कोर्ट का आदेश

    कोर्ट ने आदेश दिया कि नाबालिग लड़का 18 साल की उम्र तक राज्य की सुविधाओं में रहेगा, जैसे कि प्रोटेक्शन होम या सेफ होम या चाइल केयर सेंटर में।

    कोर्ट ने फैसला सुनाया कि,

    "04.02.2022 को (जब वह १८ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है), वह जहां चाहे वहा जाने के लिए स्वतंत्र होगा और अपनी पत्नी ज्योति और उनके परिवार सहित किसी के भी साथ रहने के लिए स्वतंत्र होगा।"

    यह व्यवस्था मनीष के इस रुख को देखते हुए की गई है कि वह अपनी मां के पास वापस नहीं जाना चाहता है।

    कोर्ट ने कहा कि अगर किसी कारणवश 4 फरवरी 2022 से पहले वह अपनी मां के पास वापस जाना चाहता है तो वह जा सकता है। उसे उस गृह के एक अधिकारी के माध्यम से जहां वह रहता है, के द्वारा अधिनियम 2012 के तहत नियुक्त बाल कल्याण समिति को इस उद्देश्य के लिए आवेदन करना होगा।

    कोर्ट ने आदेश दिया कि,

    "फिर उसे बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया जाएगा, जो उसका बयान दर्ज करके मामले में उसके रुख का पता लगाएगी। अगर मनीष का रुख स्पष्ट है कि वह अपनी अपनी मां के पास वापस जाना चाहता है। कल्याण समिति संतुष्ट है कि यह एक स्वैच्छिक बयान है, मनीष को अपनी मां के पास वापस जाने की अनुमति दी जाएगी और 18 वर्ष की आयु तक वहां रहने की अनुमति दी जाएगी। उसके बाद मनीष अपनी पत्नी सहित जहां चाहे वहां जाने के लिए स्वतंत्र होगा।"

    केस का शीर्षक - मनीष कुमार और अन्य बनाम यू.पी. और 7 अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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