वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते: गुजरात हाईकोर्ट

Avanish Pathak

3 Feb 2023 4:35 PM GMT

  • वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते: गुजरात हाईकोर्ट

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने आशाबेन मुलजीभाई घोरी बनाम गुजरात राज्य में अपने हालिया फैसले में कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता है। जस्टिस इलेश जे वोरा की पीठ ने एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट अदालत के निर्देशों की मांग वाली एक रिट याचिका का निस्तारण किया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके अभ्यावेदन के बावजूद, वह संबंधित अधिकारियों से एफआईआर दर्ज नहीं करवा सकी। इसलिए, उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय का रुख किया।

    अपने खंडन में, प्रतिवादी राज्य ने तर्क दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत उपायों की उपलब्धता को देखते हुए, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार को लागू करना उचित नहीं है। अपने तर्क को मजबूत करने के लिए, राज्य ने सकिरी वासु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2008) 2 एससीसी 409 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

    दलीलों के गुण-दोष पर अपनी चर्चा में, अदालत ने सबसे पहले साकिरी वासु के मामले (सुप्रा) और सुधीर भास्करराव तांबे बनाम हेमंत यशवंत धागे, (2016) 6 एससीसी 277 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा की, जहां यह माना गया कि यदि किसी व्यक्ति के पास यदि शिकायत है कि उसकी एफआईआर पुलिस ने दर्ज नहीं की है, या दर्ज होने के बाद उचित जांच नहीं की जा रही है तो पीड़ित व्यक्ति के लिए उपलब्‍ध उपचार संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना नहीं है, ब‌ल्‍कि धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना है। यदि सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत इस तरह का आवेदन किया जाता है और मजिस्ट्रेट प्रथम दृष्टया संतुष्ट है, तो वह एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे सकता है, या यदि यह पहले ही दर्ज हो चुकी है, तो वह उचित जांच करने का निर्देश दे सकता है, जिसमें अपने विवेक से, यदि वह आवश्यक समझे, जांच अधिकारी को बदलने की सिफारिश भी कर सकता है, ताकि मामले में उचित जांच की जा सके।

    अंतत कोर्ट ने कहा,

    "जब शिकायतकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं तो इस न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की जरूरत नहीं है।"

    अदालत ने याचिका का निस्तारण कर दिया, लेकिन रिट याचिकाकर्ता को सीआरपीसी में प्रासंगिक प्रावधान को लागू करने के माध्यम से संबंधित क्षेत्राधिकार में मजिस्ट्रेट अदालत में जाने की स्वतंत्रता दी।

    केस टाइटल: आशाबेन मुलजीभाई घोरी बनाम गुजरात राज्य

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