राज्य सभी दृष्टिबाधित व्यक्तियों के साथ अन्य विकलांग व्यक्तियों के जैसा व्यवहार करे, यह निर्देश नहीं दे सकतेः मद्रास हाईकोर्ट

Avanish Pathak

20 Sep 2022 5:29 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह राज्य सरकार को सभी दृष्टिबाधित व्यक्तियों के साथ अन्य विकलांग व्यक्तियों, जो किसी भी रोजगार में अक्षम हों, के जैसे व्यवहार का निर्देश नहीं दे सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए, हमारा विचार है कि हम प्रतिवादियों को यह निर्देश नहीं दे सकते कि वे दृष्टिबाधित श्रेणी के तहत सभी विकलांग व्यक्तियों के साथ अन्य विकलांग व्यक्तियों के समान व्यवहार करें, जो किसी भी रोजगार में अक्षम हैं।"

    कार्यवाहक चीफ जस्टिस एम दुरईस्वामी और जस्टिस सुंदर मोहन की खंडपीठ ने विकलांग समूह के लिए काम कर रहे संगठन नेत्रोदय की याचिका पर यह टिप्पणी की।

    याचिकाकर्ता संगठन ने दृष्टिबाधितों के लिए पेंशन योजना को समाज कल्याण विभाग से नि:शक्तजन विभाग में स्थानांतरित करने की मांग की थी। दूसरी प्रार्थना दृष्टिबाधित व्यक्तियों की पेंशन को 1000 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये करने यानि अन्य विकलांग व्यक्तियों के बराबर करने की थी।

    एनजीओ ने तर्क दिया था कि राज्य अलग-अलग पेंशन देकर नेत्रहीनों और अन्य विकलांग व्यक्तियों के बीच भेदभाव करता है, इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। यह तर्क दिया गया कि दृष्टिबाधित व्यक्ति समान रूप से अक्षम हैं।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि कुछ दृष्टिबाधित व्यक्ति आजीविका कमाने में असमर्थ हैं और उन्हें अन्य विकलांग व्यक्तियों के समान माना जाना चाहिए। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि सभी व्यक्तियों के लिए रहने की लागत समान है, इस प्रकार भुगतान किए गए भत्ते की मात्रा में भेदभाव अतार्किक और निराधार था।

    सरकार ने अदालत को बताया कि वह सभी विकलांग व्यक्तियों की पीड़ा को कम करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रही है। कोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार ने खुद केंद्र सरकार की ''इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना'' के तहत मिलने वाले लाभ में केंद्र सरकार द्वारा ‌‌दिए जा रहे 300 रुपये के योगदान में 700 रुपये जोड़ा है। राज्य ने योजना के तहत लाभार्थियों की संख्या में भी वृद्धि की है।

    राज्य ने यह भी बताया कि भरण-पोषण भत्ता केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए बढ़ाया गया था जो सार्वजनिक रोजगार या अन्य रोजगार पाने में असमर्थ थे। इनमें बौद्धिक विकलांग व्यक्ति, गंभीर रूप से प्रभावित व्यक्ति, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से प्रभावित व्यक्ति और कुष्ठ प्रभावित व्यक्ति शामिल थे।

    अतिरिक्त महाधिवक्ता एस सिलम्बन्नन ने तर्क दिया कि इन व्यक्तियों की तुलना दृष्टिबाधित विकलांग व्यक्तियों के साथ नहीं की जा सकती जो सार्वजनिक रोजगार और अन्य प्रकार के रोजगार के लिए पात्र हैं। राज्य ने दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लाभ के लिए इसके द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर भी प्रकाश डाला।

    दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद, अदालत ने प्रतिवादी के रुख से सहमति व्यक्त की कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों की तुलना अन्य विकलांग व्यक्तियों के साथ नहीं की जा सकती है।

    हालांकि, चूंकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कुछ दृष्टिहीन व्यक्ति अन्य बीमारियों, दुर्बलता और बुढ़ापे के कारण भी रोजगार के लिए अपात्र हैं, खंडपीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वे उनके साथ अन्य विकलांग व्यक्तियों के समान व्यवहार करने के उनके अनुरोध पर विचार करें, जिन्हें मासिक भरण-पोषण भत्ता मिल रहा है।

    योजना को एक विभाग से दूसरे विभाग में स्थानांतरित करने की प्रार्थना के संबंध में, अदालत ने कहा कि वह राज्य को किसी विशेष विभाग के माध्यम से योजना का संचालन करने का निर्देश नहीं दे सकती है।

    एनजीओ ने तर्क दिया था कि समाज कल्याण विभाग निष्पक्ष रूप से कार्य नहीं कर रहा है और दृष्टिबाधित विकलांग व्यक्तियों को कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। जवाब में राज्य ने अदालत को सूचित किया कि सभी जिलों में अलग-अलग विकलांग व्यक्तियों की शिकायतों को देखने के लिए राजस्व मंडल अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी।

    अदालत ने इस प्रकार प्रतिवादियों को अंडरटेकिंग का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मासिक पेंशन योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए अलग-अलग विकलांग व्यक्तियों को कोई कठिनाई न हो और किसी भी अनावश्यक औपचारिकता पर जोर न दिया जाए।

    केस टाइटल: नेत्रोदय बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य

    केस नंबर:WP NO 11065 Of 2018

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 407

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