दिल्ली दंगों के खिलाफ कैंडललाइट मार्च: बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कठोर सजा के प्रावधान वाली धारा इस्तेमाल करने पर सवाल उठाया

LiveLaw News Network

6 Sep 2021 6:00 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को पिछले साल दिल्ली दंगों के खिलाफ मुंबई में हुए एक प्रदर्शन में शामिल लोगों के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम के तहत आरोपों को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब देने का अंतिम अवसर दिया।

    16 याचिकाकर्ताओं पर आरोप लगाया गया था कि जब वे 26 फरवरी, 2021 को दादर में "कैंडल लाइट मार्च" के लिए एकत्र हुए थे, तो 18 फरवरी के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया गया था।

    जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की खंडपीठ ने छात्रों, वरिष्ठ नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा सीआरपीसी की धारा 226, 227 और धारा 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई की।

    याचिका में प्रदर्शन में शामिल होने वाले लोगों पर लगे आरोप पत्र और उनके खिलाफ सभी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई है।

    पीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों में दम पाया।

    एडवोकेट आनंदानी फर्नांडीस ने प्रस्तुत किया कि जहां डीसीपी ने एक धारा के तहत निषेधात्मक आदेश जारी किए, जो केवल जुर्माना (2,500 रुपये) लगाने के इस्तेमाल की जाती है। इसेक साथ ही याचिकाकर्ताओं को अलग-अलग गंभीर धाराओं के साथ चार्ज-शीट किया गया है। इसमें न्यूनतम चार महीने से लेकर एक साल तक की कैद की सजाओं का प्रवाधान है।

    एडवोकेट आनंदानी ने कहा,

    "पुलिस ने उन्हें घेर लिया और एक एफआईआर दर्ज की गई। कठिनाई यह है कि डीसीपी का आदेश अधिनियम की उप-धारा 37(3) और 135 के तहत जारी किया गया है जो केवल जुर्माने के साथ दंडनीय है।"

    फर्नांडिस ने कहा,

    "जब आरोप पत्र दायर किया गया था, तो उन पर 37 (3) और 135 के तहत मुकदमा चलाने के बजाय धारा 37 (1) के साथ धारा 135 को गलत तरीके से लागू किया गया।"

    एडवोकेट फर्नांडिस की दलीलों के बाद अदालत ने लोक अभियोजक से जवाब मांगा। लोक अभियोजक ने जवाब देने के लिए अदालत से समय मांगा।

    इससे पहले भी जब पिछले साल याचिका दायर की गई थी तब भई अभियोजक ने निर्देश लेने के लिए समय मांगा था।

    शिंदे ने अभियोजन पक्ष को आखिरी मौका देते हुए कहा,

    "वह अपने सबमिशन में सही है। आप आदेश में कुछ कैसे लागू कर सकते हैं? ... (अभियोजक द्वारा बाधित) हमें पढ़ना होगा कि किस प्रावधान के तहत आदेश जारी किया गया है और चार्जशीट में कौन सी धाराएं लागू की गई हैं।"

    तब याचिका को 11 अक्टूबर, 2021 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।

    महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम 1951 की धारा 37 और 135 इस प्रकार है-

    7. अव्यवस्था के निवारण के लिए कुछ निश्चित निषेध करने की शक्ति-

    37 (1) (च) हैरांग्स का वितरण, इशारों या नकल का उपयोग, चित्रों, प्रतीकों, पी 1 कार्ड या किसी अन्य वस्तु या चीज की तैयारी, प्रदर्शन या प्रसार जो ऐसे प्राधिकरण की राय में नैतिकता की शालीनता के खिलाफ हो सकता है या राज्य की सुरक्षा को कमजोर करने वाला हो सकता है।

    37 (3) उप-धारा (1) के तहत सशक्त प्राधिकारी किसी भी सभा या जुलूस को जब भी और जब तक सार्वजनिक व्यवस्था के संरक्षण के लिए आवश्यक मानते हैं, तब तक लिखित आदेश द्वारा भी रोक सकते हैं:

    135(i) यदि आदेश की अवहेलना की गई या जिसकी अवज्ञा के लिए उकसाया गया, अधिनियम की धारा 37 की उप-धारा (1) के तहत किया गया था। इसके तहत एक वर्ष की अवधिका का कारावास हो सकती है। मगर लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों को छोड़कर सजा की अवधि चार महीने से कम नहीं होगी। साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है।

    (iii) यदि उक्त आदेश धारा 37 की उप-धारा (3) के तहत किया गया है तो इसमें जुर्माने की राशि पांच सौ रुपये तक हो सकती है।

    याचिका में अन्य आधार

    याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।

    उन्होंने कहा कि प्रदर्शन की प्रकृति, उद्देश्य और इरादे ने यह स्पष्ट कर दिया कि सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन नहीं होगा।

    याचिका में आरोप लगाया गया कि चार्जशीट में सिर्फ एक गवाह के तौर पर एक सहायक पुलिस निरीक्षक शामिल है, जो निषेधाज्ञा के बारे में सार्वजनिक घोषणा करने का दावा करता है।

    हालांकि उसके बयान की पुष्टि करने के लिए कुछ भी नहीं है।

    याचिकाकर्ताओं ने लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाया, क्योंकि पुलिस अधिकारी का कहना है कि महिलाओं को जाने की इजाजत थी, लेकिन पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया गया।

    केस का शीर्षक: [विक्रम गुरबीर सिंह बनाम महाराष्ट्र राज्य] (सीनियर पीआई शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन के माध्यम से)

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