क्या पक्षकारों के आपस में समझौते करने पर नाबालिग के खिलाफ POCSO मामला रद्द किया जा सकता है? कर्नाटक हाईकोर्ट विचार करेगा

LiveLaw News Network

25 April 2022 10:06 AM GMT

  • क्या पक्षकारों के आपस में समझौते करने पर नाबालिग के खिलाफ POCSO मामला रद्द किया जा सकता है? कर्नाटक हाईकोर्ट विचार करेगा

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़के के खिलाफ मामले में आगे की जांच पर रोक लगा दी है। उक्त लड़के पर नाबालिग लड़की का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत आरोप लगाया गया है।

    पक्षकारों के बीच आपसी समझौता होने पर अभियोजन को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,

    "23.05.2022 तक मामले में आगे की जांच पर रोक रहेगी, जो आगे के आदेश पारित होने के परिणाम के अधीन होगी।"

    याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता की बेटी अभी भी नाबालिग हैं और एक रिश्ते में है, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान अपराध दर्ज किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट प्रतीक चंद्रमौली और विद्याश्री केएस ने प्रस्तुत किया कि पक्षकारों ने इस मुद्दे को सुलझा लिया है और इस तरह के समझौते के कारण कार्यवाही को समाप्त करने की मांग की है।

    हालांकि, अभियोजन पक्ष ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अपराध पोक्सो अधिनियम के तहत है और उक्त निपटान को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    इस पर अदालत ने कहा,

    "इस पर विचार करने की आवश्यकता होगी और यह आगामी गर्मी की छुट्टियों के बाद ही हो सकता है।"

    मामले का विवरण:

    21 नवंबर, 2021 को नाबालिग लड़की के पिता द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी कि उसकी नाबालिग बेटी कॉलेज से घर नहीं लौटी है। पुलिस ने आरोपियों और पीड़िता के फोन को ट्रेस कर उन्हें ट्रैक किया। आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, 363 और पोक्सो की धारा 5 और 6 के तहत आरोप लगाए गए।

    याचिका में कहा गया कि आरोपी और पीड़िता दोनों नाबालिग हैं और दोनों अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। पूरा मामला दो किशोरों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिनकी दोस्ती में खटास आ गई और वे कानूनी परिणामों में उलझ गए हैं।

    आगे यह भी कहा गया कि दोनों परिवारों के बुजुर्गों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद उन्होंने नाबालिग बच्चों के व्यापक हित में मामले को आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया है। नाबालिग बच्चों ने भी अपने मतभेदों को सुलझा लिया है।

    याचिका विजयलक्ष्मी बनाम राज्य के मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर निर्भर है, जिसमें इस आधार पर मामले को खारिज कर दिया गया था कि पॉक्सो अधिनियम का इरादा किशोर लड़के को दंडित करना नहीं है, जो किशोर लड़की के साथ रिश्ते में है।

    यह तर्क दिया जाता है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता अच्छे दोस्त थे और याचिकाकर्ता का नाबालिग पीड़िता का अपहरण करने या पोक्सो अधिनियम के तहत परिकल्पित कोई भी यौन अपराध करने का कोई इरादा नहीं था। इसके अलावा, यह कहा गया कि पोक्सो अधिनियम का उद्देश्य किशोरों के बीच रोमांटिक रिलेशन को अपने दायरे में लाना नहीं है। फिर भी कई युवाओं पर कानून के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है और यह एक ऐसा उदाहरण है।

    यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता स्वयं मामले पर मुकदमा चलाने की इच्छा नहीं रखता है और इसकी अनुमति देना केवल न्याय के साथ खिलवाड़ होगा। मामले को जारी रखने की अनुमति देना नाबालिग लड़के के भविष्य को बर्बाद कर देगा। साथ ही व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन की उनकी भविष्य की संभावनाएं को भी खत्म कर देगा।

    याचिका में पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द करने की प्रार्थना की गई है।

    केस शीर्षक: आरुष जैन बनाम कर्नाटक राज्य

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