क्या एनटीपीसी यह शर्त रख सकता है कि लॉ ऑफिसर की पोस्ट के उम्मीदवारों को CLAT-PG पास करना आवश्यक है? सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा

Sharafat

3 Jan 2023 2:56 PM GMT

  • क्या एनटीपीसी यह शर्त रख सकता है कि लॉ ऑफिसर की पोस्ट के उम्मीदवारों को CLAT-PG पास करना आवश्यक है? सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NTPC) में सहायक विधि अधिकारी (Assistant Law Officer) के पद पर आवेदन करने वाले आवेदकों के लिए CLAT को पास करना अनिवार्य करने वाली शर्त को गैरकानूनी, अवैध और संविधान के दायरे से बाहर घोषित करने की याचिका पर नोटिस जारी किया।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ याचिकाकर्ता ऐश्वर्या मोहन द्वारा दायर एक विशेष अवकाश याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो एनटीपीसी में ईओ लेवल पर सहायक विधि अधिकारी के पद के उमीदवार हैं और कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीयूएसएटी) में एलएलएम के छात्र हैं। याचिकाकर्ता ने केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले के खिलाफ यह एसएलपी दायर की थी, जिसमें यह माना गया था कि नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) में सहायक विधि अधिकारी के पद पर आवेदन करने के लिए आवेदकों को CLAT पास करने की शर्त वैध है।

    केरल हाईकोर्ट के जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें CLAT की मंजूरी की शर्त को अमान्य कर दिया गया था।

    वर्तमान एसएलपी में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 16 (1) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति "समान अवसर" के दायरे और दायरे को परिभाषित करने के लिए शीर्ष अदालत की कृपा की मांग करती है। हाईकोर्ट आक्षेपित निर्णय में 'मूल समानता परीक्षण' के आधार पर चयन प्रक्रिया का परीक्षण करने में विफल रहा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐतिहासिक निर्णयों में बरकरार रखा है।

    याचिका में आगे तर्क दिया गया कि किसी भी कार्यकारी कार्रवाई को गैर-भेदभावपूर्ण होने के लिए उसे केवल अनुच्छेद 16(2) के तहत ही नहीं बल्कि अनुच्छेद 16(1) के तहत भी परीक्षा पास करनी चाहिए क्योंकि बाद में भेदभाव की एक विस्तृत श्रृंखला इसके इसके दायरे में है।

    एसएलपी में कहा गया कि हाईकोर्ट ने यह कहकर गलती की है कि अनुच्छेद 16 केवल 'अवसर की समानता' की बात करता है न कि 'समानता प्राप्त करने का अवसर' जबकि प्रस्तावना में उक्त आकांक्षा स्पष्ट रूप से रखी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि हाईकोर्ट संविधान की प्रस्तावना और भाग III के बीच के अविभाज्य बंधन को अलग नहीं कर सकता, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी कई ऐतिहासिक फैसलों में बरकरार रखा है।

    याचिका में आगे कहा गया कि सीएलएटी को प्रतिवादी इकाई/संगठन में भर्ती के लिए योग्यता परीक्षा के रूप में बनाकर, प्राधिकरण ने एक अवैध वर्गीकरण बनाया है जिससे नौकरियों के इच्छुक लोगों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है - 1) वे व्यक्ति जो एलएलएम में आगे बढ़ना चाहते हैं। CLAT 2 के अंतर्गत आने वाले कॉलेज) वे व्यक्ति जो CLAT के अंतर्गत आने वाले कॉलेजों में LLM नहीं करना चाहते।

    याचिकाकर्ता ने तब प्रस्तुत किया कि विवादित अधिसूचना इसलिए "अनिवार्य रूप से CLAT-PG के रजिस्ट्रेशन की फीस के लिए खर्च करने की क्षमता पर आधारित है। वर्गीकरण का उस उद्देश्य से कोई संबंध नहीं है जिसे प्राप्त करने की मांग की गई है, जो अधिसूचना के अनुसार नियुक्तियां कर रहा है और सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार का चयन कर रहा है।"

    एसएलपी का यह भी तर्क है कि प्रतिवादी प्राधिकरण यानी एनटीपीसी द्वारा निर्धारित नियुक्ति की पद्धति 'अप्रत्यक्ष भेदभाव' से प्रभावित है, जैसा कि लेफ्टिनेंट कर्नल नितिशा और अन्य बनाम भारत संघ (2021) एससीसी ऑनलाइन एससी 261 में सुप्रीम कोर्ट ने समझाया है।

    याचिका एडवोकेट मोहम्मद सादिक के माध्यम से दायर की गई। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट मैत्रेयी हेगड़े पेश हुईं।

    केस टाइटल : ऐश्वर्या मोहन बनाम भारत संघ व अन्य। डायरी नंबर 34962-2022

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