क्या व्यभिचार के आरोपों को साबित करने के लिए सबूत जुटाने के पत्नी के अधिकार पर पति का निजता का अधिकार हावी हो सकता है? दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया जवाब

Manisha Khatri

11 May 2023 5:15 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    क्या हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत पति के निजता के अधिकार को उसकी पत्नी के निवारण चाहने के अधिकार पर हावी होने की अनुमति दी जा सकती है?

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि चूंकि हिंदू विवाह अधिनियम विशेष रूप से व्यभिचार को तलाक के लिए एक आधार के रूप में मान्यता देता है, इसलिए यह बिल्कुल भी सार्वजनिक हित में नहीं होगा कि अदालत को निजता के अधिकार के आधार पर उस विवाहित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए,जिस पर अपनी शादी के निर्वाह के दौरान, अपनी शादी के इतर यौन संबंधों में लिप्त होने का आरोप है।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि के.एस. पुटुस्वामी बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि निजता का अधिकार, हालांकि संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, पर यह एक पूर्ण अधिकार नहीं है।

    मामला क्या था?

    ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित तलाक की कार्यवाही के संबंध में, पति ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया। फैमिली कोर्ट ने पत्नी के उन आवेदनों को अनुमति दी थी,जिसमें उस होटल के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने की मांग की गई थी, जहां उसका पति कथित रूप से एक महिला के साथ व्यभिचार में लिप्त था और होटल के कमरे के रिकॉर्ड को समन किया गया था।

    पक्षकारों की शादी 1998 में हुई थी। हालांकि, पिछले साल पत्नी ने फैमिली कोर्ट के सामने एक याचिका दायर की थी, जिसमें पति के खिलाफ व्यभिचार और क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की गई थी। उसने आगे आरोप लगाया कि पति का इस व्यभिचारी रिश्ते से एक नाजायज बच्चा भी है।

    पत्नी का कहना था कि जब तक कि फैमिली कोर्ट द्वारा निर्देशित जानकारी को रिकॉर्ड पर नहीं लाया जाता है, तब तक वह अपने पति के खिलाफ आरोप साबित करने में सक्षम नहीं हो सकती है। जबकि पति के वकील ने व्यभिचार और क्रूरता के आरोपों का विरोध किया और कहा कि वह केवल अपनी एक दोस्त से मिला था, जो अपनी बेटी के साथ उस समय संयोग से उसी होटल में रूकी थी।

    पति ने प्रस्तुत किया कि फैमिली कोर्ट पत्नी के लिए सबूत एकत्र करने के लिए फिशिंग जांच और पूछताछ का निर्देश नहीं दे सकती थी। पति ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा मांगी गई जानकारी का प्रकटीकरण उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा और इससे उस महिला और उसके नाबालिग बच्ची की भी निजता का उल्लंघन होगा।

    कोर्ट ने क्या कहा?

    अदालत ने पति की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि एक पत्नी फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक की याचिका में पति के खिलाफ उसके द्वारा लगाए गए व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए सबूत या दस्तावेज पेश करने की मांग कर सकती है और यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा।

    जस्टिस पल्ली ने यह भी कहा कि पत्नी पति के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला बनाने में सक्षम रही है और वह जो जानकारी मांग रही है वह व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए प्रासंगिक होगी।

    फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेशों को बरकरार रखा गया क्योंकि यह केवल कुछ रिकॉर्ड को पेश करने से संबंधित हैं और इस सवाल पर विचार नहीं करते हैं कि क्या रिकॉर्ड अपने आप में पति के खिलाफ व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त होगा?

    पति के निजता के अधिकार बनाम पत्नी के सबूत जुटाने के अधिकार पर कोर्ट ने क्या कहा?

    जस्टिस पल्ली ने कहा कि फैमिली कोर्ट के समक्ष सबूत जुटाने का पत्नी का अधिकार पति के निजता के अधिकार पर हावी होना चाहिए और कहा कि अदालत को विवादित आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला है।

    कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पत्नी होटल में ठहरे किसी अजनबी के बारे में जानकारी मांग रही थी। कोर्ट ने कहा कि उसकी याचिका केवल उसके कानूनी रूप से विवाहित पति से संबंधित रिकॉर्ड के लिए थी, जिस पर वह एक होटल के कमरे में एक महिला के साथ व्यभिचार में लिप्त होने का आरोप लगा रही थी।

    अदालत ने कहा कि पति का यह तर्क सही हो सकता है कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी को भी अपने पति के बारे में हर छोटी-छोटी जानकारी जानने या यह जानने का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह किसके साथ बात करता है, हालांकि यह माना गया कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी को उचित आशंका है कि उसका पति व्यभिचार में लिप्त था, जिसके लिए उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i) के तहत तलाक याचिका दायर की थी।

    कोर्ट ने कहा,

    ‘‘इसलिए मेरी यह सुविचारित राय है कि जब वर्तमान जैसे मामले में, जब एक पत्नी ऐसे सबूतों को जुटाने के लिए अदालत की मदद लेती है, जो उसके पति की ओर से व्यभिचार को साबित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेंगे, तो अदालत को कदम उठाना चाहिए; यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा, जो अदालत को एक ऐसे सबूत पर विचार करने के लिए एक मार्ग देता है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य या प्रासंगिक नहीं हो सकता है।”

    यह देखते हुए कि पति, जो अपने निजता के अधिकार पर भरोसा कर रहा था और पत्नी के साथ ‘‘वैवाहिक संबंध’’ में बना रहा, अदालत ने कहा कि निजता का अधिकार एक पूर्ण अधिकार नहीं है और अदालत को पति व पत्नी के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच आवश्यक रूप से एक संतुलन बनाना होगा।

    ‘‘... याचिकाकर्ता का दावा पूरी तरह से निजता के अधिकार पर आधारित है, जैसा कि के.एस. पुटुस्वामी (सुप्रा) और जोसेफ शाइन (सुप्रा) में माना गया है,जो एक पूर्ण अधिकार नहीं है; दूसरी ओर, प्रतिवादी की प्रार्थना न केवल नैतिकता पर आधारित है, बल्कि हिंदू विवाह अधिनियम और फैमिली कोर्ट्स एक्ट के तहत दिए गए विशिष्ट अधिकारों पर भी आधारित है। इसलिए, मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि प्रतिवादी का अधिकार प्रबल होना चाहिए और इसलिए, उपरोक्त आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।’’

    तीसरे व्यक्ति की निजता के अधिकार पर कोर्ट ने क्या कहा?

    जस्टिस पल्ली ने कहा कि उस महिला (और उसकी बच्ची) के निजता के अधिकार के उल्लंघन का कोई सवाल ही नहीं था, जिसके साथ पति कथित रूप से व्यभिचार में रह रहा था क्योंकि फैमिली कोर्ट ने केवल पति से संबंधित रिकॉर्ड मांगे थे।

    कोर्ट ने कहा,

    “लगाए गए आदेशों के माध्यम से फैमिली कोर्ट ने ऐसे रिकॉर्ड मांगे हैं जो केवल प्रतिवादी के पति से संबंधित हैं, न कि उसकी दोस्त या उसकी बेटी से संबंधित हैं। इसलिए, किसी भी तरीके से उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन किए जाने का कोई सवाल नहीं है।’’

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