अगर कोई राज्य अच्छा नहीं कर पाता है तो क्या केंद्र उसमें दखल दे सकता है? गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में COVID-19 की स्थिति को लेकर पूछा
LiveLaw News Network
13 April 2021 6:01 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में COVID-19 स्थिति को गुजरात सरकार के संभालने के तरीके के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को ने कहा कि "सरकार जो दावा करती है, स्थिति उसके विपरीत है।"
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति भार्गव करिया की खंडपीठ ने COVID-19 नियंत्रण के संबंध में राज्य द्वारा आगे उठाए गए कदमों पर महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी से एक हलफनामा मांगा है। हलफनामे में राज्य में गंभीर महामारी की स्थिति के बारे में समाचार रिपोर्टों की सटीकता को विवादित करने वाले महाधिवक्ता के रिकॉर्ड को भी प्रस्तुत किया गया था, जिसने हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेने के लिए प्रेरित किया था।
सीजे विक्रम नाथ ने मौखिक रूप से महाधिवक्ता को बताया,
"हम यह नहीं कह सकते हैं कि ये सभी समाचार रिपोर्ट कचरा हैं, उनके पास कुछ तथ्य हैं।"
पीठ ने कहा,
"हम सरकार की कुछ नीतियों से खुश नहीं हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन कुछ चीजों को सुधारने की जरूरत है।"
पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा कि क्या केंद्र हस्तक्षेप कर सकता है, अगर उसे लगता है कि राज्य अच्छा नहीं कर रहा है।
सीजे नाथ ने केंद्र के लिए उपस्थित एएसजी देवांग व्यास से पूछा,
"जब केंद्र को लगता है कि कोई राज्य अच्छा नहीं कर रहा है, तो वह हस्तक्षेप क्यों नहीं कर सकता है?"
बेंच ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा,
"लोग अब सोचते हैं कि वे भगवान की दया पर हैं।"
महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने हाईकोर्ट को COVID-19 की स्थिति से निपटने के लिए गुजरात सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में बताया। अदालत ने कहा कि वास्तविकता सरकार के दावों से काफी अलग है।
हाईकोर्ट ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के दौरान कहा,
"आप जो दावा कर रहे हैं, उससे यह स्थिति बिल्कुल अलग है। आप कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक है। लेकिन, वास्तविकता इसके विपरीत है।"
लोगों में "विश्वास की कमी" को देखा गया है।
हाई कोर्ट ने COVID-19 मरीजों के लिए रेमेडिसविर इंजेक्शन की कमी की शिकायत पर कहा,
"रेमेडिसीवर (एक प्रमुख एंटी-वायरल ड्रग) की कोई कमी नहीं है। आपके पास सब कुछ उपलब्ध है। हम परिणाम चाहते हैं, कारण नहीं।"
सीजे नाथ ने एजी त्रिवेदी से कहा,
"हमें बताया गया है कि गुजरात में रेमेडिसीवर की पर्याप्त आपूर्ति है। केवल वही नहीं, जिसका आपको ब्रीफ किया गया है, आप पहले कोर्ट के एक अधिकारी हैं।"
कोर्ट ने कहा कि आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए अब किसी व्यक्ति को "लगभग पांच दिन" लगते हैं।
पीठ ने कहा,
"जब आपके पास समय था, तो आपने टोस्ट सुविधाओं को नहीं बढ़ाया।"
सीजे नाथ ने कहा,
"दुनिया भर में चल रही कोरोनावायरस की दूसरी और तीसरी लहरों से अनजान सरकार ने COVID-19 अस्पतालों के रूप में अस्पतालों को नामित करना बंद कर दिया है। आप अस्पतालों में सभी COVID-19 पॉजीटिव रोगियों को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि कोई बेड नहीं हैं। मुझे बताया गया है कि अगर अस्पताल में बेड़ हैं भी, तो भी मरीजों को प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया है।"
सीजेआई के साथी जज जस्टिस करिया ने कहा कि,
"रेमेडिसीवर को पेरासिटामोल के रूप में आसानी से उपलब्ध होना चाहिए।"
पीठ ने कहा कि राज्य को होर्डिंग रेमेडिसीवर दवा के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
न्यायालय ने सुझाव दिया कि राज्य को विवाह और अंतिम संस्कार को छोड़कर सभी सार्वजनिक समारोहों और कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए।
गुजरात हाईकोर्ट ने रविवार को राज्य में कोरोनोवायरस स्थिति को लेकर एक स्वतः संज्ञान लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू की है, जिसमें कहा गया है कि महामारी पर मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि राज्य "स्वास्थ्य आपातकाल" की ओर बढ़ रहा है।
महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार पूरी कोशिश कर रही है और पर्याप्त देखभाल न करने के लिए लोगों को दोषी ठहराया है।
एजी ने कहा,
"लड़ाई लोगों और COVID-19 के बीच बड़े पैमाने पर है और सरकार अपनी पूरी कोशिश कर रही है। हालांकि, लोगों को भी जिम्मेदार होना चाहिए। लोगों को रेमेडिसीवर इंजेक्शन स्टोर (इक्ट्ठा) नहीं करना चाहिए।"
एजी ने यह भी कहा कि राज्य में पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति है। एजी ने आगे कहा कि लॉकडाउन एक समाधान नहीं हो सकता है, क्योंकि यह प्रवासियों सहित कई लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा।
एजी ने कहा,
"गुजरात राज्य वह सब कर रहा है जो वह कर सकता है। कई अन्य राज्य गुजरात की तुलना में कहीं अधिक खराब हैं, उदाहरण के लिए दिल्ली। उत्तर प्रदेश में रेमेडिसीवर इंजेक्शनों की भारी कमी है, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है।"
राज्य सरकार के शीर्ष विधि अधिकारी ने यह कहकर मीडिया पर दोषारोपण किया कि वह जिम्मेदारी से मामले की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर रहा है।
पीठ ने एजी को निर्देश दिया है कि वह 14 अप्रैल तक अपने हलफनामे को रिकॉर्ड में रखे। इस मामले पर अगली सुनवाई 15 अप्रैल को होगी।
रविवार को बेंच द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के लिए पारित आदेश में इसने समाचार पत्रों की रिपोर्टों में "लोगों को परेशान करने वाली कहानियों" का उल्लेख किया।
पीठ ने कहा,
"अखबारों, समाचार चैनलों की रिपोर्ट्स मरीजों की दुर्भाग्यपूर्ण और अकल्पनीय कठिनाइयों, बुनियादी ढांचे की असहनीय कमी और न केवल टेस्ट, रेमेडिसीवर, बेड की उपलब्धता, आईसीयू, बल्कि ऑक्सीजन और बुनियादी दवाओं की आपूर्ति की कमी से भरी हुई है।
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने आगे कहा कि ये इधर-उधर की भटकी हुई खबरें हो सकती हैं, जिन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है। मगर देश भर में प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्रों में रिपोर्ट की मात्रा को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा,
"इस एक नंगे इनकार से संकेत मिलता है कि राज्य स्वास्थ्य आपातकाल की ओर बढ़ रहा है।"