क्या पैटर्निटी डिस्प्यूट के मामले में बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है? केरल हाईकोर्ट जांच करेगा

Sharafat

26 July 2022 2:46 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कानूनी मुद्दे की जांच करेगा कि क्या पितृत्व विवाद (paternity dispute) के मामले में किसी बच्चे के डीएनए टेस्ट के लिए आदेश पारित किया जा सकता है?

    कोर्ट इस बात की जांच करेगा कि क्या इस तरह के निर्देश को पारित करने से बच्चे के निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा, जिसे केएस पुट्टास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया गया है।

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 112 का प्रभाव, जो एक वैध विवाह के निर्वाह के दौरान पैदा हुए बच्चे की वैधता का एक निर्णायक अनुमान निर्मित करता है, वह इस मामले में उत्पन्न होता है।

    जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने इस मामले में सहायता के लिए एडवोकेट अशोक एम किनी को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया है।

    पीठ परिवार न्यायालय द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसने बच्चे के डीएनए परीक्षण के लिए एक व्यक्ति के आवेदन को खारिज कर दिया था। उस व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष एक मूल याचिका दायर कर यह घोषणा करने की मांग की थी कि वह अपनी पत्नी के साथ शादी में पैदा हुए बच्चे का जैविक पिता नहीं है। उस व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध था और उसके बेटे के पितृत्व पर विवाद है।

    फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि डीएनए टेस्ट का आदेश देने का कोई आधार नहीं है।

    फैमिली कोर्ट ने आदेश में कहा,

    "... डीएनए टेस्ट को एक नियमित प्रक्रिया के रूप में लेकर आदेश नहीं दिया जा सकता। बच्चे के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई मामला नहीं है कि जब बच्चा पैदा हुआ था तब उसकी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने की उसकी पहुंच नहीं थी ..... डीएनए टेस्ट का आदेश केवल इसलिए नहीं दिया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता को कुछ संदेह है।"

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