कलकत्ता हाईकोर्ट ने भाजपा राष्ट्रीय महासचिव पर पार्टी कार्यकर्ता के यौन उत्पीड़न के आरोप में कार्यवाही पर रोक लगाई

Shahadat

7 Sept 2022 1:48 PM IST

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने भाजपा राष्ट्रीय महासचिव पर पार्टी कार्यकर्ता के यौन उत्पीड़न के आरोप में कार्यवाही पर रोक लगाई

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव संगठन शिव प्रकाश के खिलाफ दर्ज मामले की आगे की सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी। शिव प्रकाश पर पार्टी कार्यकर्ता का यौन उत्पीड़न/अपमान करने का आरोप लगाया गया है।

    जस्टिस कौशिक चंदा की पीठ ने कहा कि पीड़िता ने बाद में कई शिकायतें दीं, जिसमें उक्त राजनीतिक दल के विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य के नेताओं पर बलात्कार के बार-बार आरोप लगाए गए, जिसने उसकी विश्वसनीयता को काफी हद तक कम कर दिया, जिससे आरोपों की सच्चाई के बारे में गंभीर संदेह पैदा हो गया।

    इसके साथ ही पीठ ने आगामी पूजा अवकाश के बाद दो महीने की अवधि के लिए भाजपा नेता के खिलाफ मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।

    संक्षेप में मामला

    पीड़िता विधवा है और उसका बेटा है। वह वर्ष 2013 में राजनीतिक दल में शामिल हुईं और अक्सर कई भाजपा नेताओं अमलेंदु चट्टोपाध्याय, शिव प्रकाश (याचिकाकर्ता) और अन्य के साथ बातचीत की।

    उसके द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार, याचिकाकर्ता भाजपा का अखिल भारतीय संयुक्त सचिव (संगठन) था। उसने 19 जून, 2015 को उसके साथ अवैध संबंध विकसित करने का इरादा जाहिर किया। याचिकाकर्ता उसे होटलों में अलग-अलग बहाने से बैठकें आयोजित करने के लिए बुलाता था, लेकिन ऐसी कोई बैठक नहीं होती थी।

    आगे यह भी आरोप लगाया गया कि जून, 2016 के महीने में पीड़िता को एक होटल में बुलाया गया, जहां केवल याचिकाकर्ता और विद्युत मुखर्जी (भाजपा का एक अन्य नेता) मौजूद थे। वह होटल के कमरे से बाहर आना चाहती थी लेकिन विद्युत ने उसे रोका और याचिकाकर्ता ने विद्युत के साथ मिलकर उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की।

    उस समय अमलेंदु वहां पहुंच गया ताकि उसे और कोई नुकसान न हो और उसने उसे पुलिस के सामने घटना के बारे में कुछ भी न कहने की सलाह दी। उसका यह भी मामला है कि अमलेंदु ने शादी के झूठे वादे पर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और सबूत मिटाने के लिए उसका तीन बार गर्भपात कराया।

    याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में अस्पष्टीकृत देरी है। जैसा कि कथित घटना जून 2016 में हुई थी, जबकि एफआईआर 31 अगस्त, 2018 को दर्ज कराई गई।

    आगे यह तर्क दिया गया कि पीड़िता ने कई पुलिस थानों और विभिन्न अधिकारियों के समक्ष कई शिकायतें दर्ज कराई, जिसमें कई नेताओं द्वारा अलग-अलग समय पर उसके साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया। याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की मिथ्याता और बेतुकापन पीड़िता के असंगत आचरण से स्पष्ट है। वह लगातार अपनी शिकायतों का स्वरूप बदल रही है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    मामले के रिकॉर्ड को देखते हुए अदालत ने शुरू में इसे काफी चिंताजनक बताया कि शिकायत में पीड़ित ने याचिकाकर्ता-विद्युत के खिलाफ बलात्कार करने के प्रयास का सरल एक-पंक्ति का आरोप लगाया। लेकिन अन्य शिकायत उसी तारीख को उसने विस्तार से उस पर बार-बार सामूहिक बलात्कार के विशिष्ट आरोप लगाए।

    अदालत ने कहा,

    "यह समझना बेहद मुश्किल है कि कैसे प्रतिवादी नंबर दो (पीड़ित) ने एक ही तारीख जून, 2016 की कथित घटना के दो पूरी तरह से अलग-अलग संस्करणों के साथ पुलिस स्टेशन का दरवाजा खटखटाया, अपनी लिखावट में दो अलग-अलग शिकायतें लिखीं। मामला डायरी यह भी उचित या संकेत नहीं देती है कि पुलिस ने औपचारिक एफआईआर दर्ज करने के लिए उक्त दो शिकायतों में से एक को कैसे चुना।"

    अदालत ने आगे कहा कि चूंकि पीड़िता ने उक्त राजनीतिक दल के विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य नेताओं पर बलात्कार के बार-बार आरोप लगाने के लिए कई शिकायतें दर्ज कराई, इसलिए उसके द्वारा लगाए गए इस तरह के बार-बार के आरोपों ने उसकी विश्वसनीयता को कम कर दिया है।

    कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि पुलिस भी याचिकाकर्ता को फंसाने के लिए कोई विश्वसनीय सामग्री नहीं जुटा पाई। नतीजतन, अदालत ने सीमित अवधि के लिए आपराधिक मामले की आगे की सभी कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दिया।

    केस टाइटल- शिब प्रकाश बनाम पश्चिम बंगाल का राज्य और अन्य

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