कलकत्ता हाईकोर्ट ने धारा 39 (7) बीमा अधिनियम के तहत 'लाभार्थी नॉमिनी' की अवधारणा के ‌खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

23 Aug 2021 9:26 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने धारा 39 (7) बीमा अधिनियम के तहत लाभार्थी नॉमिनी की अवधारणा के ‌खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

    कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गुरुवार को बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 39 (7) की संवैधानिक वैधता के खिलाफ दायर एक याचिका पर नोटिस जारी किया। उक्त अधिनियम 26 दिसंबर, 2014 बीमा कानून (संशोधन) अधिनियम, 2015 के जर‌िए अस्‍तित्व में आया था। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल वाईजे दस्तूर को नोटिस जारी कर इस संबंध में केंद्र से जवाब मांगा गया।

    संशोधन के बाद, 'लाभार्थी नॉमिनी ' की अवधारणा को प्रावधान में शामिल किया गया था, जिसके तहत यदि बीमा पॉलिसी धारक अपने जीवनकाल में अपने माता-पिता या पति या पत्नी या बच्चों या परिवार के किसी अन्य सदस्य को नामित करता है, तो संबंधित नामांकित व्यक्ति बीमाकर्ता को देय राशि का हकदार होगा, जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता है कि पॉलिसी धारक नामांकित व्यक्ति को इस प्रकार का कोई लाभकारी टाइटिल प्रदान नहीं कर सकता है।

    वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता 2015 के संशोधन अधिनियम से व्यथित है, क्योंकि यह बीमाधारक के परिवार के सदस्यों को, जिन्हें नॉमिनी के रूप में नामांकित किया गया था, उन्हें 'लाभार्थी मालिक' की स्थिति में रखता था। याचिकाकर्ता ने संबंधित बीमा कंपनी को उसके मृत पति द्वारा ली गई दो जीवन बीमा पॉलिसियों के एवज में अपनी सास को किसी भी राशि का वितरण करने से रोकने के लिए अदालत से अनुमति मांगी है।

    जस्टिस राजशेखर मंथा ने हालांकि कहा कि इस संबंध में कानून की स्थापित स्थिति को देखते हुए, याचिकाकर्ता की सास को संबंधित बीमा पॉलिसी की आय का हकदार होना चाहिए।

    " इस न्यायालय का प्रथम दृष्टया विचार है कि कानून को देखते हुए, जैसा कि यह निम्नलिखित निर्णयों में निर्धारित है-इंद्राणी वाही बनाम सहकारी समिति के रजिस्ट्रार और अन्य। (2016) 6 एससीसी 440 और सरबती ​​देवी बनाम उषा देवी एआईआर 1984 एससी 346 में रिपोर्ट की गई, एक नामित व्यक्ति अन्यथा भी, मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए और उनकी ओर से बीमा पॉलिसी की आय रखने वाला ट्रस्टी बना रहता है।"

    तदनुसार, कोर्ट ने बीमा कंपनी को बीमा पॉलिसी की आय को याचिकाकर्ता की सास को 'आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 10 दिनों की अवधि के भीतर' देने का निर्देश दिया। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता संबंधित बीमा पॉलिसी के संबंध में अपनी सास पर अपने अधिकारों को प्रदर्शित करने में सक्षम रहता है, तो धन वितरण के आदेश में बदलाव किया जा सकता है।

    कोर्ट ने केंद्र को 6 हफ्ते के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, उत्तर, यदि कोई हो, उसके बाद 4 सप्ताह के भीतर दाखिल करने का आदेश दिया गया।

    केस का शीर्षक: मालबिका घोष बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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