कोलकाता हाईकोर्ट ने सीबीआई को पश्चिम बंगाल कोयला घोटाले की जांच में पेश होने के दौरान टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के सचिव को गिरफ्तार नहीं करने के निर्देश दिए

LiveLaw News Network

2 Feb 2022 6:08 AM GMT

  • कोलकाता हाईकोर्ट ने सीबीआई को पश्चिम बंगाल कोयला घोटाले की जांच में पेश होने के दौरान टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के सचिव को गिरफ्तार नहीं करने के निर्देश दिए

    कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta high Court) ने मंगलवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को पश्चिम बंगाल में कथित कोयला घोटाले की चल रही जांच में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद अभिषेक बनर्जी के सचिव सुमित रॉय को एजेंसी के समक्ष पेश होने के दौरान गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया।

    सीबीआई ने राय को 25 जनवरी, 2022 को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें उन्हें 1 फरवरी को सुबह 11 बजे जांच अधिकारियों के सामने पेश होने का निर्देश दिया गया था।

    न्यायमूर्ति रवि कृष्ण कपूर ने कहा,

    "याचिकाकर्ता द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो के समक्ष पेश होने और आक्षेपित नोटिस के संदर्भ में जांच अधिकारियों के साथ सहयोग करने पर, याचिकाकर्ता को 1 फरवरी, 2022 को पेश होने का अनुरोध करने वाले आक्षेपित नोटिस के संदर्भ में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। मैं यह स्पष्ट करता हूं कि इस याचिका में किसी अन्य मुद्दे पर निर्णय नहीं लिया जा रहा है। इस तथ्य को देखते हुए कि मामले की सुनवाई देरी से हुई है, यह सीमित आदेश केवल 25 जनवरी, 2022 के आक्षेपित नोटिस के संबंध में पारित किया जाता है।"

    आगे यह विचार करते हुए कि याचिकाकर्ता द्वारा नोटिस का व्यावहारिक रूप से अनुपालन करने के बाद मामले की सुनवाई की जा रही है, न्यायालय ने कहा कि नोटिस के संदर्भ में याचिकाकर्ता को मंगलवार को गिरफ्तार किए जाने का कोई तत्काल खतरा या आशंका प्रतीत नहीं होती है।

    तर्क

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि नोटिस अधिकार क्षेत्र के बिना जारी किया गया है और कानून के तहत सही नहीं है।

    आगे प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता का नाम प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में नहीं है और इस प्रकार याचिकाकर्ता को नोटिस जारी नहीं किया जाना चाहिए।

    अदालत को यह भी बताया गया कि रॉय मंगलवार सुबह सीबीआई कार्यालय गए थे और उनसे दोपहर के भोजन के बाद लौटने का अनुरोध किया गया था।

    दूसरी ओर, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल वाई जे दस्तूर ने तर्क दिया कि अब व्यक्तियों के लिए यह फैशनेबल हो गया है कि वे जांच में शामिल होने का अनुरोध करते हुए एक नोटिस प्राप्त होने पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं।

    उन्होंने आगे तर्क दिया कि एक रिट कोर्ट के पास कार्यवाही के इस चरण में हस्तक्षेप करने की शक्ति नहीं है, जब याचिकाकर्ता पहले दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत उपलब्ध सभी उपायों को समाप्त कर देता है। इस संबंध में निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा जताया गया है।

    उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने राय को पूछताछ के लिए कोलकाता के बजाय नई दिल्ली में पेश होने के लिए तलब करने के सीबीआई के आचरण पर नाराजगी व्यक्त की थी।

    अदालत ने कहा था,

    "यह अदालत इस बात को समझने में असमर्थ है कि कोलकाता में पूछताछ क्यों नहीं की जा सकती है।"

    केस का शीर्षक: सुमित रॉय बनाम भारत संघ


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