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अधिग्रहण प्राधिकरण को देनी होगी कलर ब्लाइंड भूमि मालिक को उचित नौकरी : कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
23 April 2020 4:25 AM GMT
अधिग्रहण प्राधिकरण को देनी होगी कलर ब्लाइंड भूमि मालिक को उचित नौकरी : कलकत्ता हाईकोर्ट
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Calcutta High Court

कलकत्ता हाईकोर्ट ने को कहा है कि जब किसी परिवार की जमीन का अधिग्रहण करते समय उसे यह आवश्वासन दिया गया था कि भूमि वित्तीय मुआवजे के अलावा उस परिवार के एक सदस्य को रोजगार भी प्रदान किया जाएग तो अब यह कहते हुए उसको रोजगार देने से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह तो कलर ब्लाइंड से ग्रसित है।

याचिकाकर्ता का केस यह था कि वह उस परिवार से संबंध रखता है जिसकी बर्दवान जिले में स्थित 2.03 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा किया गया था। याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों ने इस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (जो लैंड लूज़र्स स्कीम के तहत सीआईएल की सहायक कंपनी है) में रोजगार के लिए उसको नामित किया था या उसका नाम कंपनी के पास भेजा गया था। उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था और संबंधित योजना के तहत ईसीएल में ग्रुप-डी पोस्ट के लिए उसकी नौकरी को विधिवत मंजूरी दे दी गई थी।

हालांक, मेडिकल बोर्ड ने उसे अनफिट घोषित कर दिया था क्योंकि वह कलर ब्लाइंडनेस से ग्रसित था। उसे एक नेत्र विशेषज्ञ के पास भेजा गया था और उसकी भी यही राय थी। याचिकाकर्ता ने एक ज्ञापन सौंप कर मांग की थी कि मेडिकल बोर्ड से उसकी फिर से जांच कराई जाए ,परंतु उस ज्ञापन का कोई जवाब नहीं दिया गया।

हाईकोर्ट ने कहा कि-

''यह बहुत स्पष्ट है कि वह भूमि जो एक परिवार कोयले की खान के लिए देता है, विशेष रूप से उस तरह के काम के लिए जिसके लिए इस मामले में भूमि के भूखंडों को लिया गया था। इस तरह की जमीन स्थानीय दृष्टिकोण से बहुत अच्छी और आधुनिक नहीं हो सकती।

इसका कारण स्पष्ट होता है, क्योंकि यह सभी भूखंड आमतौर पर सड़कों से दूर होते हैं, जिस कारण इन भूखंड का बाजार मूल्य उन भूखंड की तुलना में काफी कम होता है जो सड़कों के आस-पास स्थित होते हैं या लाभकारी लोकेशन पर स्थित हैं।''

न्यायमूर्ति संबुद्ध चक्रवर्ती ने सवाल किया कि

''एक व्यक्ति, जिसकी जमीन ली गई है और जो कलर ब्लाइंडनेस से ग्रसित है, क्या वो ऐसी जमीन के बाजार मूल्य से संतुष्ट होना चाहिए जो ऐसे नुकसानदेह वाले स्थान पर स्थित हो या ऐसी लोकेशन पर हो,जिसकी कीमत काफी कम होती है?''

न्यायालय ने कहा कि यदि पुनर्वास और स्थानांतरगमन नीति के तहत सीआईएल का यह नीतिगत निर्णय है कि लैंड लूजर्स या भूमि देने वाले व्यक्ति सिर्फ भूमिगत खदानों में ही काम करेंगे तो इसके बाद किसी अन्य संभावना की खोज के लिए कोई अवसर नहीं रह जाता, लेकिन नीतिगत निर्णय में ऐसा कोई संकेत नहीं है। इसलिए जमीनी धरातल पर रोजगार की संभावना पर विचार करना बहुत आवश्यक है।

न्यायालय ने फैसले में कहा कि-

''प्रतिवादी कंपनी के निदेशक (कार्मिक) को इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा गया है। चूंकि परिवार ने इस आश्वासन पर जमीन दी थी कि परिवार के एक सदस्य को रोजगार मिलेगा। वहीं जमीन लेते समय कभी भी यह संकेत नहीं दिया गया था कि ऐसे नामांकित सदस्य को भूमिगत खदान में ही काम करना होगा।''

न्यायालय ने आगे कहा कि यदि कोई ऐसी योजना थी जिसके तहत याचिकाकर्ता को केवल एक भूमिगत खदान में नियुक्त किया जा सकता था तो उसके बाद याचिकाकर्ता को कोई अन्य रोजगार देने पर विचार करने का कोई अवसर नहीं रह जाता।

पीठ ने कहा कि-

''चूंकि ऐसा कोई मामला यहां नहीं है, इसलिए यह अन्यायपूर्ण, असमान और अनुचित होगा कि यह न्यायालय याचिकाकर्ता को विचाराधीन भूमि के बाजार मूल्य से संतुष्ट होने के लिए मजबूर करे। विशेष रूप से ऊपर जो चर्चा की गई है और वह तरीके जिनके मद्देनजर प्रतिवादी उसके रोजगार में बाधा डालना चाहते हैं।''

नंद कुमार नारायण राव घोड़मारे बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य के मामले में वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला दिया गया। उस मामले में भी प्रतिवादियों ने कलर ब्लाइंडनेस के कारण अपीलकर्ता को कोई नियुक्ति या नौकरी नहीं दी थी।

शीर्ष अदालत ने यह पाया था कि संबंधित विभाग में 35 पद थे, जिनमें से केवल पांच पद ऐसे थे, जिनके लिए पूर्ण दृष्टि की आवश्यकता थी और कलर ब्लाइंडनेस वाला व्यक्ति उन पांच पद पर काम नहीं कर सकता था, इसलिए सरकार को निर्देश दिया था कि इन पांच पदों को छोड़कर संबंधित विभाग में अन्य किसी भी पद के लिए अपीलकर्ता के मामले पर विचार करे।

इसी सिद्धांत पर हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि-

''प्रतिवादी किसी भी ऐसे पद पर याचिकाकर्ता को नियुक्त करने पर विचार करे, जो उसकी योग्यता के अनुसार उपयुक्त हो और वह पात्रता के अन्य मानदंडों को पूरा करता हो। उसकी नियुक्ति प्रतिवादियों के किसी भी ऐसे विभाग में की जा सकती है, जहां पर भूमिगत काम करना आवश्यक ना हो और उसकी दृष्टि की कमी एक बांधा न बनें।''

यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस आदेश की सूचना प्राप्त होने के तीस दिन के भीतर निर्णय ले लिया जाए।

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