कलकत्ता हाईकोर्ट ने वादी से शादी करने का झूठा वादा करके बलात्कार करने के आरोपी न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार किया

Avanish Pathak

22 Nov 2022 1:21 PM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने वादी से शादी करने का झूठा वादा करके बलात्कार करने के आरोपी न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार किया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। उस पर एक वादी से शादी करने का झूठा वादा करके उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था।

    याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल न्यायिक सेवा का सदस्य था और उस समय अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पद पर था, जब शिकायतकर्ता का वैवाहिक विवाद उसके समक्ष लंबित था।

    उसने कथित तौर पर शिकायतकर्ता के साथ यौन संबंध बनाने के बाद उसे आश्वासन दिया था कि उसके तलाक के मामले की परिणति के बाद उससे शादी कर लेगा। हालांकि बाद में उसने अपना वादा पूरा नहीं किया।

    इस संदर्भ में ‌हाईकोर्ट ने कहा,

    "इसमें आपराधिक कार्यवाही विश्वास पर आधारित है। शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता पर अपना विश्वास रखा, जो न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण पद पर था। प्रभाव की स्थिति में होने के नाते (शिकायतकर्ता का मामला याचिकाकर्ता के समक्ष लंबित था), शिकायतकर्ता ने कहा उसका याचिकाकर्ता पर भरोसा और इस तरह के आश्वासन पर विश्वास करना इस उम्मीद में रिश्ते में जारी रहा कि इसका परिणाम शादी होगा।"

    याचिकाकर्ता ने सीजेएम तमलुक के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 417, 506, 166 और 120बी के तहत दायर चार्जशीट का संज्ञान लिया गया था।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि 2014 में उसने अपने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद उसने तलाक के लिए अर्जी दी थी। तलाक की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान ही वह मजिस्ट्रेट-अभियुक्त के संपर्क में आई, जो महिला और उसके पति के बीच तलाक की कार्यवाही की सुनवाई कर रहा था।

    शिकायतकर्ता का मामला यह था कि आरोपी-मजिस्ट्रेट ने उसका मोबाइल नंबर लिया, उससे बात करना शुरू किया और उससे कहा कि वह तलाक के निष्कर्ष के बाद उससे शादी करेगा। उसने उसे उसके तलाक तक इंतजार करने के लिए कहा था और उसे शिकायतकर्ता और उसके बेटे दोनों की शादी से जिम्मेदारी लेने का आश्वासन दिया था। उसने यह भी कहा कि आरोपी ने उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए, उसके खाते में पैसे ट्रांसफर करता था और उसे अपने घर भी ले जाता था। हालांकि, उसके तलाक को अंतिम रूप देने के बाद, याचिकाकर्ता अपने वादे से मुकर गया, उससे बचना शुरू कर दिया और उसे और उसके बेटे को जान से मारने की धमकी दी।

    शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा उसका शोषण किया गया जिसने अपने प्रभावशाली पद का दुरुपयोग किया। उसने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ विभिन्न एसएमएस संदेशों सहित पर्याप्त सबूत मौजूद थे, जिन्हें जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किया गया था। तदनुसार, उसने तर्क दिया कि पुनरीक्षण याचिका खारिज करने योग्य थी।

    दूसरी ओर याचिकाकर्ता-आरोपी-मजिस्ट्रेट ने तर्क दिया कि मामले का संज्ञान लेने वाले सीजेएम ने अपना दिमाग लगाने में विफल रहे। उन्होंने तर्क दिया कि एक महिला यह दावा नहीं कर सकती है कि शादी के झूठे वादे पर उसके साथ बलात्कार किया गया था अगर वह शादी की अनिश्चितता के बावजूद किसी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखती है।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शादी करने के झूठे वादे के साथ सहमति से यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।

    इसके अलावा, उसका मामला यह था कि उसने शिकायतकर्ता को कभी भी उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं किया। तदनुसार, उन्होंने तर्क दिया कि कथित अपराधों की कोई सामग्री नहीं बनाई जा रही थी और इसलिए, लिया गया संज्ञान कानून में खराब था।

    जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) की एकल पीठ ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ कार्यवाही को इस आधार पर रद्द करने से इनकार कर दिया कि उनके खिलाफ कथित अपराधों के लिए एक प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है। इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने बदनीयती से काम किया या नहीं, इसका फैसला ट्रायल के चरण में ही होना है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह पाया गया है कि इस मामले में जांच व्यापक थी और जांच अधिकारी द्वारा कई महत्वपूर्ण/आपत्तिजनक साक्ष्य एकत्र किए गए हैं, जिसमें एसएमएस, संदेश, सीआरपीसी की धारा 161 के तहत रिकॉर्ड किए गए बयान, उन जगहों का विवरण शामिल है जहां शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता ने शारीरिक संबंध बनाए थे... आरोपों में दम है और सामग्री प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध में आवेदक/ याचिकाकर्ता की मिलीभगत को दर्शाती है, जो सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है और इसलिए इस मामले में कार्यवाही को खारिज नहीं किया जाना चाहिए और यह एक उपयुक्त मामला है जहां न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: श्री विश्वज्योति चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

    साइटेशन: सीआरआर 1550/2020

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