कलकत्ता हाईकोर्ट  बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास करके नियमित सुनवाई में भाग लेने से किया इनकार, मुख्य न्यायाधीश से पांच जून की अधिसूचना वापस लेने का आग्रह

LiveLaw News Network

10 Jun 2020 11:58 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट  बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास करके नियमित सुनवाई में भाग लेने से किया इनकार, मुख्य न्यायाधीश से पांच जून की अधिसूचना वापस लेने का आग्रह

    "यह अधिवक्ताओं के जीवन व मृत्यु और उनकी आजीविका का मामला है।" यह कहते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सोमवार को विवश होकर यह प्रस्ताव'' पास किया कि उसके सदस्य किसी भी निर्धारित तारीख पर अदालत की नियमित सुनवाई या कामकाज में भाग नहीं लेंगे।

    साथ ही आग्रह किया है कि कोर्ट में सामान्य कामकाज को फिर से शुरू करने के लिए पांच जून को जारी की गई अधिसूचना को भी न्यायालय द्वारा वापस लिया जाए।

    यह माना गया कि उक्त अधिसूचना आमतौर पर बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं के हित को प्रभावित करती है, इसलिए एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं के बीच एक वेबिनार का आयोजन किया।

    'वास्तव में अधिवक्ताओं की एक सामान्य बैठक'' नामक इस वेबिनार में 500 से अधिक अधिवक्ताओं ने भाग लिया और बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं ने बैठक में बात की और अपने विचार व्यक्त किए।

    वकील निकाय का कहना है कि इस वेबिनार में सबका सामान्य रुख यह था कि परिवहन सेवाओं, विशेष रूप से उपनगरीय ट्रेनों और सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के फिर से शुरू होने के बाद ही कोर्ट में प्रतिबंधित रूप से नियमित कामकाज शुरू किया जा सकता है।

    कोर्ट को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि

    ,''अधिकांश वकील और अदालत के कर्मचारी अदालतों तक पहुंचने के लिए उपनगरीय ट्रेनों और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं। ऐसी सेवाओं को फिर से शुरू किए बिना यह उपयुक्त नहीं होगा कि अदालतों में नियमित कामकाज शुरू कर दिया जाए,भले ही वह कम स्तर पर शुरू किया जाए।''

    इस मामले में कोर्ट को फिर से विचार करने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि-

    ''एक बार लॉकडाउन में थोड़ी राहत दे दी जाएगी तो निश्चित तौर पर उपनगरीय ट्रेनों और सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को फिर से शुरू करने के बारे में घोषणा की जाएगी। वहीं अदालतों में फिर से नियमित कामकाज शुरू करने से पहले कम से कम एक सप्ताह का समय लगेगा। कोर्ट के कमरों को साफ करना होगा,इमारतों को सैनिटाइज करना होगा। वहीं नियमित सुनवाई शुरू करने से पहले अन्य जरूरी उपाय भी करने होंगे।''

    यह भी कहा गया कि कि इन सिफारिशों पर उनको कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई और बार को 2 जून को बंगाली अखबार इअई-समय में छपी एक खबर से पता चला कि हाईकोर्ट में जल्द ही कामकाज शुरू होने वाला है।

    ये भी कहा कि

    ''हमें यह भी पता चला कि रजिस्ट्रार जनरल ने एक जून 2020 को एक नोटिस जारी किया है। जिसमें हाईकोर्ट के कर्मचारियों को उनकी ड्यूटी फिर से शुरू करने के लिए निर्देश दिया गया है।''

    यहां तक​ कि जब एसोसिएशन ने इस संबंध में रजिस्ट्रार जनरल के साथ मिलकर एक बार फिर बात करने का प्रयास किया तो हाईकोर्ट ने नियमित सुनवाई फिर से शुरू करने के बारे में 5 जून को अधिसूचना प्रकाशित कर दी गई।

    इस पत्र में यह भी कहा गया है कि-

    ''7 जून 2020 को आयोजित वेबिनार के जरिए आयोजित आम बैठक में, बहुत बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं ने पांच जून 2020 को जारी अधिसूचना के संबंध में अपनी आशंका और डर व्यक्त किया है। जिसमें कहा गया है कि अधिसूचना न केवल वकीलों की रक्षा व सुरक्षा को प्रभावित करेगी बल्कि Covid 19 के दौरान अधिवक्ताओं के जीवन को भी खतरे में ड़ाल देगी। वहीं कलकत्ता में हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले 80 प्रतिशत अधिवक्ताओं के प्रोफेशनल कैरियर पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।''

    इसके अलावा, यह भी कहा गया यद्यपि उक्त अधिसूचना में कहा गया है कि मामलों को प्रभावित पक्षों की सहमति से ही सुना जाएगा परंतु उक्त अधिसूचना की भाषा मुविक्कलों के बीच नियत तारीख पर उपस्थित न होने के प्रभाव के बारे में एक भय पैदा कर सकती है।

    ''एक बहुत ही मजबूत और वास्तविक आशंका है कि मुविक्कल हजारों मामलों में अपने अधिवक्ताओं को बदलने का प्रयास करेंगे क्योंकि जिन मुविक्कलों के अधिवक्ता अपने-अपने जिलो में है,वो परिवहन सेवा शुरू न होने के कारण कोलकाता नहीं आ सकते हैं।''

    इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि पश्चिम बंगाल में समाचार पत्र की रिपोर्टों के अनुसार, नए COVID 19 मामलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।

    पुरजोर तरीके से यह भी तर्क दिया गया क पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में अधिवक्ता अपने संबंधित परिवारों के लिए एकमात्र रोटी कमाने वाले हैं।

    अधिवक्ताओं के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। अधिकांश अधिवक्ताओं के पास मेडिकल पाॅलिसी और बीमा भी नहीं हैं।

    ''यह भी बताया गया कि अधिवक्ताओं के लिए अस्पतालों में 5 बिस्तर रिजर्व करवाने और कोरोना से प्रभावित अधिवक्ताओं के इलाज की निगरानी करने के लिए हाईकोर्ट द्वारा एक समिति का गठन करने की मांग को भी माननीय न्यायाधीश समिति ने स्वीकार नहीं किया है।

    आजकल एक COVID 19 रोगी के लिए सामान्य अस्पताल में भी इलाज कराने के लिए लगभग 10 से 15 लाख रुपये की आवश्यकता होती है। इसलिए वर्तमान परिदृश्य में COVID 19 से पीड़ित एक वकील उचित उपचार के बिना अपना जीवन खो सकता है।''

    एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश से प्रार्थना की है कि वह इस अधिसूचना को लागू न करें। बार से साफ किया है कि-

    ''हम सम्मानपूर्वक यह प्रस्तुत करते हुए अनुरोध कर रहे हैं कि हमने न तो माननीय न्यायालय के बहिष्कार की घोषणा की है और न ही हाईकोर्ट की कार्यवाही में भाग लेने से पूरी तरह से परहेज करने का फैसला किया है। हमारा एकमात्र निर्णय यह है कि हमारे सदस्य हाईकोर्ट की नियमित सुनवाई में भाग नहीं लेंगे। हम अपने सदस्यों को कलकत्ता में माननीय हाईकोर्ट की वर्चुअल सुनवाई में भाग लेने से नहीं रोक रहे हैं।''

    इस बात पर ध्यान दिय जाना चाहिए कि पश्चिम बंगाल राज्य में मुख्यमंत्री के कहने पर लाॅकडाउन की अवधि को तीस जून तक बढ़ा दिया गया है।

    इसके अलावा इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार बीसीआई की तरफ से बार-बार आग्रह किए जाने के बाद भी एससीबीए और एससीएओआरए और सुप्रीम कोर्ट की एक सात-न्यायाधीश समिति ,इस महामारी के दौरान फिर से नियमित सुनवाई शुरू करने के पक्ष में नहीं है।

    वहीं पिछले हफ्ते, मद्रास हाईकोर्ट ने भी अपने तीन न्यायाधीशों के COVID 19 पाॅजिटिव टेस्ट आने के बाद फिर से वर्चुअल कोर्ट में सुनवाई शुरू कर दी है।

    Next Story