बैलगाड़ी दौड़: बॉम्बे हाईकोर्ट में आयोजकों के खिलाफ मामलों को वापस लेने की चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर

Shahadat

1 Dec 2022 4:41 AM GMT

  • बैलगाड़ी दौड़: बॉम्बे हाईकोर्ट में आयोजकों के खिलाफ मामलों को वापस लेने की चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर

    बॉम्बे हाईकोर्ट में राज्य में बैलगाड़ी दौड़ आयोजित करने या उसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के सरकारी संकल्प (जीआर) को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई।

    चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस अभय आहूजा की खंडपीठ ने बुधवार को मामले को 12 जनवरी, 2023 को सुनवाई के लिए पोस्ट किया।

    13 अप्रैल 2022 को, राज्य सरकार ने राज्य में बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन या भाग लेने वाले व्यक्तियों के खिलाफ दायर अपराधों को वापस लेने की मंजूरी देते हुए जीआर जारी किया।

    जीआर में प्रावधान है कि एक बार इसके तहत गठित समिति निश्चित मामले में अभियोजन को वापस लेने की सिफारिश करती है तो सरकारी वकील को इसके लिए संबंधित अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।

    यह सीआरपीसी की धारा 321 का उल्लंघन करता है। एडवोकेट प्रीत फंसे के माध्यम से दायर याचिका में केरल राज्य बनाम के. अजीत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मापदंडों का विरोध किया गया।

    याचिका के अनुसार, अभियोजन पक्ष को वापस लेने का निर्णय लेने से पहले अभियोजक को अपराध की गंभीरता और समाज पर इसके प्रभाव जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर मामला-दर-मामला आधार पर निर्णय लेना होता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकारी वकील की भूमिका अदालत से निर्देश मांगने और बिना विवेक के यांत्रिक तरीके तक सीमित नहीं है।

    इस जनहित याचिका के दाखिल होने के बाद राज्य सरकार ने जीआर के लिए शुद्धिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि अभियोजक को 'दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 321 के अनुसार उचित निर्णय लेना होगा और आगे की कार्रवाई करनी होगी'।

    याचिका के मुताबिक, राज्य सरकार के पास इस तरह का जीआर जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। सीआरपीसी की धारा 321 के तहत निश्चित मामले के प्रभारी लोक अभियोजक अभियोजन को वापस लेने का निर्णय ले सकते हैं। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन को वापस लेने के लिए सामान्य नीति पर विचार नहीं किया जा सकता।

    याचिका में यह भी कहा गया कि चूंकि पीसीए अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया और समवर्ती सूची से संबंधित है, इसलिए केंद्र सरकार की पूर्व सहमति के बिना इस अधिनियम के तहत मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकता।

    याचिका में कहा गया कि सरकार द्वारा जीआर जारी करने से पहले गृह मंत्री ने घोषणा की कि बैलगाड़ी दौड़ से संबंधित सभी अपराधों को वापस ले लिया जाएगा। इससे बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन, संचालन या इसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों पर नए अपराध दर्ज नहीं हो रहे हैं। याचिका के अनुसार, अगर अपराधी बच जाते हैं और पीसीए अधिनियम और नियमों के उद्देश्य को विफल करते हैं तो जानवरों के खिलाफ क्रूरता की घटनाएं बढ़ेंगी।

    याचिका में कहा गया कि बैलगाड़ी दौड़ की आड़ में सांडों की लड़ाई जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। इसने दावा किया कि इस तरह की एक घटना हिंदूदुर्ग जिले में आयोजित की गई, जिससे लड़ाई में भाग लेने वाले बैल की मौत हो गई। याचिका में कहा गया कि बैलगाड़ी दौड़ के दौरान सांडों के साथ क्रूरता की कई घटनाएं हुईं। याचिका में बैलगाड़ी दौड़ के संबंध में कुछ एफआईआर संलग्न की गईं।

    याचिका में कहा गया कि राज्य में अभी बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन पर रोक नहीं है, लेकिन पीसीए अधिनियम और नियमों के विपरीत दौड़ का आयोजन नहीं किया जा सकता। उन मामलों में अभियोजन वापस लेना जहां दौड़ का आयोजन बिना अनुमति के या दी गई अनुमति के उल्लंघन में किया जाता है तो उसे पीसीए अधिनियम में दंडात्मक प्रावधानों को विफल कर देगा। याचिका में दावा किया गया कि बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन के दौरान पीसीए महाराष्ट्र संशोधन अधिनियम, 2017 और इसके तहत आने वाले नियमों को लागू नहीं किया जा रहा है।

    2011 में राज्य सरकार ने महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, खेल, प्रशिक्षण और प्रदर्शनी पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी की।

    राज्य सरकार ने बाद में स्पष्ट किया कि बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध केवल गैर-नपुंसक सांडों पर लागू होता है और बधिया किए गए सांडों को बैलगाड़ी दौड़ के लिए उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। 2012 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने जनहित याचिका में इस शुद्धिपत्र रद्द कर दिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने ए. नागराज बनाम एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के मामले में कहा कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (पीसीए अधिनियम) के तहत बैलगाड़ी दौड़ और जल्लीकट्टू क्रूरता के बराबर है।

    2017 में राज्य ने राज्य सरकार में बैलगाड़ी दौड़ के संचालन की अनुमति देते हुए पीसीए अधिनियम में संशोधन किया। इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पीसीए महाराष्ट्र (संशोधन) अधिनियम 2014 और इसके तहत नियम लागू होने के बाद भी बैलगाड़ी दौड़ के लिए कोई अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया।

    इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दिसंबर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपील के लंबित रहने के दौरान राज्य के संशोधन और नियम प्रभावी रहेंगे।

    याचिका में प्रार्थना की गई कि अदालत जीआर को अलग रखे और यह घोषित करे कि यह सीआरपीसी की धारा 321 का उल्लंघन है। साथ ही साथ केरल राज्य बनाम के. अजित में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया। याचिका में जनहित याचिका के लंबित रहने के दौरान जीआर पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई।

    केस टाइटल- अजय मधुसूदन मराठे बनाम महाराष्ट्र राज्य

    मामला नंबर- जनहित याचिका नंबर 74/2022

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