[टूटी खिड़कियों का सिद्धांत] छोटे अपराधों को यदि शुरुआती अवस्था में समाप्त कर दिया जाए तो नागरिक जघन्य अपराध करने से बचेंगे: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

SPARSH UPADHYAY

7 Aug 2020 1:52 PM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बीते बुधवार (5 अगस्त) को एक अग्रिम जमानत आवेदन के मामले में टूटी खिड़कियों का सिद्धांत (Broken Windows Theory) के आधार पर एक शिक्षक को जिस पर अपनी छात्रा के लैंगिक उत्पीडन करने, पीछा करने इत्यादि का आरोप है, अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

    न्यायमूर्ति आनंद पाठक की एकल पीठ के समक्ष शिक्षक/आवेदक ने अपनी गिरफ्तारी की आशंका के चलते दूसरी जमानत अर्जी (S. 438, Cr.P.C के अंतर्गत) दायर की थी। उस पर IPC की धारा 341, 354-A (ए) (iv), 354 (डी) और 506 के अलावा POCSO अधिनियम की धारा 7/8 के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में पुलिस थाना भितरवार, जिला ग्वालियर में मामला दर्ज हुआ है।

    आवेदक और राज्य की दलील

    आवेदक द्वारा अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया है कि आवेदक ने केवल लड़की को उससे शादी करने का प्रस्ताव दिया था और यह आईपीसी की धारा 354 (ए) या धारा 354 (बी) या POCSO अधिनियम की 7/8 के तहत कोई अपराध नहीं बनाता है।

    उसके यह दलील दी की दोनों प्रेम संबंध में थे, इसलिए आवेदक को झूठे तरीके से इस जाल में फंसाया गया। वह एक छात्र है और इसलिए अग्रिम जमानत के लिए उसकी प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है।

    वहीँ, राज्य की ओर से पेश वकील ने इस तथ्य के आधार पर आवेदक की अग्रिम जमानत प्रार्थना का विरोध किया कि आवेदक अभियोजन पक्ष को बार-बार परेशान करता था और अश्लील टिप्पणी करता था। वह उसका पीछा भी करता था।

    अभियोजन पक्ष/पीडिता के बयान के अनुसार, आवेदक उसका शिक्षक था और वह 15 वर्ष की लड़की है और जब पीड़िता के प्रति आवेदक का व्यवहार असहनीय और अश्लील हो गया था, तब पीड़िता ने उसकी कक्षाएं छोड़ दीं और ट्यूटोरियल प्राप्त करने के लिए कहीं और जाने लगी, लेकिन उसने (आवेदक) पीड़िता का पीछा करना जारी रखा।

    अदालत का मत

    अदालत ने अपने आदेश में यह देखा कि यह वह मामला है जहां आवेदक आईपीसी की धारा 354 (ए) (1) (iv) के तहत लैंगिक आभासी टिप्पणी करने एवं लैंगिक उत्पीडन करने का आरोपित है, इसके अलावा वह आईपीसी की धारा 354 (डी) के तहत भी आरोपी है, जो धारा यौन उत्पीड़न के लिए एक अलग तरीके का उल्लेख करती है और POCSO अधिनियम की धारा 7 और 8 की धाराएं भी उसके खिलाफ लगायी गयी है और इस मोड़ पर इंगित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं कि पीड़िता का आवेदक द्वारा लगातार यौन उत्पीड़न किया गया था।

    अदालत ने अपने आदेश में इस बात को भी मुख्य रूप से रेखांकित किया कि पीडिता 15 साल की लड़की है और आवेदक/याचिकाकर्ता उसका शिक्षक था, इसलिए, यह सब स्वभाव से सब से अधिक जघन्य और कामुक है।

    इसके बाद अदालत ने मिस एक्स बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (CRA. No. 6326/2019 - ऑर्डर डेटेड 12/12/2019) का जिक्र करते हुए टूटी खिड़कियों के सिद्धांत (Broken Windows Theory) की चर्चा की।

    अदालत ने कहा कि

    "(मिस एक्स बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य) मामले में, इस न्यायालय ने विशेष रूप से इस तथ्य का उल्लेख किया है कि यदि नवोदित (शुरूआती) अवस्था में छोटे अपराधों को समाप्त किया जाता है, तो यह नागरिकों के लिए जघन्य अपराध करने के लिए एक डेटरेंट (Deterrent) के रूप में कार्य करेगा।"

    अदालत ने आगे कहा कि

    "कुछ अपराध मानसिक लाभ देते हैं और कुछ अपराध मौद्रिक लाभ देते हैं और यहां आवेदक, पीड़िता के ऊपर मानसिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था और इसे निर्धारित नहीं किया जा सकता है, लेकिन पीड़ित के बयान से और अन्य उपस्थित परिस्थितियों के से उसका गुणात्मक रूप से मूल्यांकन किया जा सकता है। जांच (पुलिस), अभियोजन (लोक अभियोजक) और अधिनिर्णय (न्यायालय), कानून के मद्देनजर ऐसे आरोपों को देखने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, जिसकी चर्चा मिस एक्स के मामले में पारित निर्णय में की गयी है।"

    दरअसल 'मिस एक्स बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (CRA. No. 6326/2019)' में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया था कि वास्तव में सड़क पर उत्पीड़न, शारीरिक यौन उत्पीड़न के खतरे की तुलना में अधिक व्यापक और अपमानजनक है, इसलिए, यह जरूरी है कि जांच (पुलिस प्राधिकरण), अभियोजन (लोक अभियोजक) और न्यायपालिका (न्यायाधीश) को यह ध्यान में रखना चाहिए कि अपराध और विकार दृढ़ता से एक दूसरे से जुड़े हुए.

    टूटी खिड़कियों का सिद्धांत (Broken Windows Theory), एक आपराधिक सिद्धांत है जोकि मुख्य रूप से पुलिस और कानून प्रवर्तन को प्रभावित करता है, लेकिन अभियोजन और न्यायालय के दायरे में इसका असर होता है।

    वास्तव में, इस सिद्धांत [टूटी खिड़कियों का सिद्धांत (Broken Windows Theory)] के अनुसार, मामूली विकार को लक्षित करके अधिक गंभीर अपराध की घटना को कम करने की उम्मीद की जाती है। इसके पीछे के उद्देश्य को अगर संक्षेप में प्रस्तुत किया जाए तो वह यह होगा कि अगर किसी इमारत में एक खिड़की टूटी हुई है और उसे बिना सही कराये छोड़ दिया जाए, तो जल्द ही सभी खिड़कियां टूट जाएंगी।

    इसलिए, यह एक ऑर्डर मेन्टेनेंस पुलिस का सिद्धांत है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता अभियोजन और न्यायालय के लिए भी है, जैसा कि ऊपर बताया गया है क्योंकि छोटे अपराधों के लिए सजा देने के चलते अधिक हानिकारक/जघन्य कृत्यों पर निवारक प्रभाव होना चाहिए और इसलिए, यदि दहलीज पर मामूली अपराध की जाँच की जाती है या उसपर आपत्ति जताई गई तो इससे गंभीर अपराधों पर रोक लग सकती है।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करेंं



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