अधिवक्ताओं को मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रैक्टिस करने का अधिकारः दिल्ली हाईकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 17 को एडवोकेट एक्ट की धारा 30 के समक्ष अधिकारातीत घोषित किया

LiveLaw News Network

22 July 2021 3:00 PM GMT

  • अधिवक्ताओं को मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रैक्टिस करने का अधिकारः दिल्ली हाईकोर्ट  ने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 17 को एडवोकेट एक्ट की धारा 30 के समक्ष अधिकारातीत घोषित किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 की धारा 17 को अधिकारातीत (Ultra vires) घोषित किया है, क्योंकि यह धारा वकीलों को मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के समक्ष चल रहे मामलों में पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने से रोकती है।

    यह आदेश इस साल अप्रैल में केरल हाईकोर्ट की एक दो सदस्यीय खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले के अनुरूप है, जिसमें कहा गया था कि यह प्रावधान अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 30 के अल्ट्रा-वायर्स हैं।

    केरल हाईकोर्ट के उक्त निर्णय पर भरोसा करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा,

    ''चूंकि धारा 17 को अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 30 के समक्ष अल्ट्रा-वायर्स घोषित किया गया है, इसका स्पष्ट रूप से मतलब होगा कि एक वकील को अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के समक्ष पार्टियों का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार होगा। तदनुसार आदेश दिया।''

    अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 एक अधिवक्ता को सभी न्यायालयों और ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रैक्टिस करने का अधिकार देती है। इसके मद्देनजर, केरल हाईकोर्ट ने माना था कि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 वकीलों की उपस्थिति पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाती है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 19 पर भी भरोसा किया था जो किसी भी प्रोफेशन की प्रैक्टिस करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, इस प्रकार यह अधिवक्ताओं को सभी न्यायालयों और ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश होने में सक्षम बनाता है।

    तत्काल याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट को यह भी बताया था कि रखरखाव न्यायाधिकरण/मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के समक्ष सबूत पेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।

    इस संबंध में, यह स्पष्ट किया गया कि चूंकि मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल समरी प्रोसीजर का पालन करते हैं, इसलिए यह साक्ष्य दर्ज करने के मामलों में विवेकाधिकार का प्रयोग करने की शक्ति के साथ निहित हैं।

    कोर्ट ने माना कि,

    ''किसी विशेष मामले में, यदि ट्रिब्यूनल की राय है कि गवाहों की उपस्थिति और दस्तावेजों को साबित करना आवश्यक है, तो इसे रिकॉर्ड पर साक्ष्य लेने और गवाहों की उपस्थिति लागू करने के उद्देश्य से सिविल कोर्ट की धारा 8 (2) के तहत शक्ति मिली हुई है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं होगा कि हर मामले में ट्रिब्यूनल को मौखिक साक्ष्य दर्ज करना होगा या रिकॉर्ड पर दस्तावेजी साक्ष्य को लेना होगा। कार्यवाही की प्रकृति ही संक्षेप में है, इसलिए प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के लिए उपयुक्त प्रक्रिया अपनाने के लिए ट्रिब्यूनल के पास विवेकाधिकार निहित है।''

    हाईकोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि यद्यपि वकीलों को वादियों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति है, परंतु संक्षिप्त प्रक्रिया/समरी प्रोसीजर को लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे और न्यायिक निर्णय में बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है,ताकि कानून के मूल उद्देश्य को ही विफल किया जा सके।

    केस का शीर्षकः तरुण सक्सेना बनाम भारत संघ व अन्य

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