पर्यूषण पर्व के दौरान बूचड़खानों पर एक सप्ताह प्रतिबंध लगाने की मांग, जैन समुदाय ने कहा- बादशाह अकबर को मनाना आसान, BMC को नहीं
Amir Ahmad
20 Aug 2025 4:17 PM IST

जैन समुदाय ने बुधवार (20 अगस्त) को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि मुगल बादशाह अकबर को पर्यूषण पर्व के दौरान बूचड़खानों को बंद करने के लिए राजी करना आसान था लेकिन राज्य सरकार और बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) को ऐसा करने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल है।
चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मार्ने की खंडपीठ ने BMC आयुक्त के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें पूरे एक सप्ताह तक चलने वाले पर्यूषण पर्व के दौरान केवल दो दिनों के लिए बूचड़खानों को बंद करने का आदेश दिया गया था।
BMC आयुक्त ने 14 अगस्त, 2025 के आदेश द्वारा पर्यूषण पर्व के दौरान यानी 24 अगस्त और 27 अगस्त (गणेश चतुर्थी) को मुंबई शहर में बूचड़खानों को दो दिनों के लिए बंद करने का फैसला किया था। जैन समुदाय का यह पवित्र पर्व एक सप्ताह तक यानी 20 अगस्त से 27 अगस्त के बीच मनाया जाता है।
सुनवाई के दौरान जैन समुदाय के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने दलील दी कि BMC प्रमुख इस तथ्य पर विचार करने में विफल रहे कि जैनियों की आबादी अहमदाबाद की तुलना में मुंबई में अधिक है। उन्होंने बताया कि अहमदाबाद ने पर्यूषण पर्व के दौरान शहर में सभी दिनों के लिए बूचड़खाने बंद करने का फैसला पहले ही कर लिया।
इस बीच समुदाय की ओर से सीनियर वकील प्रसाद ढकेफालकर ने दलील दी कि BMC आयुक्त ने अपने आदेश में कहा कि मुंबई में जैनियों की आबादी शहर की पूरी आबादी की तुलना में बहुत कम है।
ढकेफालकर ने कहा,
"नगर निगम ने मुंबई की कुल आबादी पर गलत विचार किया। उन्होंने जैनियों की आबादी की तुलना केवल मांसाहारियों से की होगी। उन्होंने शाकाहारियों को भी जैनियों के साथ गिना है। दरअसल, महाराष्ट्र में श्रावण मास भी चल रहा है, इसलिए आधे मांसाहारी लोग मांसाहार नहीं कर रहे हैं।"
इस पर चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा,
"लेकिन इसके लिए आपको उन्हें (BMC को) मनाना होगा।"
ढकेफालकर ने इस बीच तर्क दिया,
"समुदाय सम्राट अकबर को आसानी से मना सकता था, जिन्होंने उस समय गुजरात में बूचड़खानों को बंद करने का आदेश दिया था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी को मनाना वाकई मुश्किल है।"
चंद्रचूड़ और ढकेफालकर की दलीलों पर चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि क्या समुदाय को पर्यूषण काल के दौरान वध गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने का कोई वैधानिक अधिकार है।
चीफ जस्टिस ने कहा,
"अहमदाबाद मामले में एक चुनौती सुप्रीम कोर्ट तक गई थी। ऐसा कोई कानूनी अधिकार नहीं दिया गया। ऐसा कोई कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार नहीं बनाया गया कि उन्हें इसे बंद करना ही होगा , इस पहलू पर कोई वैधानिक प्रावधान या कानून भी नहीं है, जानवरों के प्रति दया आदि के संबंध में मौलिक कर्तव्य है, हम इसे समझते हैं। लेकिन आप हमें बताइए कि कौन-सा कानून कहता है कि उन्हें इसे पूरे 10 दिनों के लिए बंद करना होगा। आपके पास एक ऐसा अधिकार होना चाहिए, जिसे अदालत के माध्यम से लागू किया जा सके।”
अदालत ने आगे मौखिक रूप से कहा,
"हम विवेक का प्रयोग न करने के आधार पर आदेश को रद्द कर सकते हैं, लेकिन आप एक कदम आगे जाकर सभी दिनों के प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं, यह अधिकार कहां से आता है?"
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि अदालत नगर निगम अधिकारियों और राज्य को सुने बिना BMC प्रमुख के आदेश को यह कहकर रद्द नहीं कर सकती कि यह मनमाना है। जस्टिस मार्ने ने बताया कि इस आदेश को चुनौती देने के आधार ठोस नहीं हैं।
इस अवसर पर ढकेफालकर ने दोहराया कि जैन लोग बादशाह अकबर को आसानी से मना सकते हैं, लेकिन राज्य और BMC को नहीं।
अदालत ने कहा,
"अगर यह हम पर छोड़ दिया जाए और लोग हमारी बात मान लें तो हम सभी से शाकाहारी बनने का अनुरोध करेंगे। लेकिन यह आदेश कानून के दायरे में होना चाहिए। हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं लेकिन आपको BMC को भी मनाना होगा।"
अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे पर अगले साल फैसला करेगी। इसके साथ ही राज्य तथा BMC को नोटिस जारी किया।
मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी गई।

