"बैंक को धोखा देने का प्रयास": बॉम्बे हाईकोर्ट ने फर्जी मेडिकल बिलों के द्वारा प्रतिपूर्ति का दावा करने वाले कर्मचारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी

Shahadat

7 Dec 2022 5:07 AM GMT

  • बैंक को धोखा देने का प्रयास: बॉम्बे हाईकोर्ट ने फर्जी मेडिकल बिलों के द्वारा प्रतिपूर्ति का दावा करने वाले कर्मचारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि बर्खास्तगी बैंक को धोखा देने के उसके प्रयास के लिए आनुपातिक सजा है, नॉन ऑपरेटिंग मेडिकल शॉप से मेडिकल बिलों के लिए प्रतिपूर्ति के रूप में 6 लाख से अधिक का दावा करने और प्राप्त करने के लिए सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के चपरासी की बर्खास्तगी बरकरार रखी।

    औरंगाबाद पीठ के जस्टिस संदीप वी. मार्ने ने बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली रिट याचिका में कहा,

    "याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित कदाचार गंभीर प्रकृति का है। उसने 6,12,870/- रुपये की प्रतिपूर्ति का दावा करके और प्राप्त करके प्रतिवादी-बैंक को वित्तीय नुकसान पहुंचाया है, जो उसे देय नहीं था। उसने बैंक को धोखा देने के प्रयास में 3,24,729/- रुपये के और बिल प्रस्तुत किए। इस तरह के सिद्ध कदाचार के लिए याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने की सजा, मेरे विचार में है आनुपातिक है।"

    याचिकाकर्ता को 2008 में हेपेटाइटिस बी का पता चला। 2014 में उसे मेडिकल दुकान से नकली बिल जमा करने के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जो बंद हो गया था। उसने अपीलीय प्राधिकारी से संपर्क किया लेकिन उसे बहाल नहीं किया गया। सुलह न होने पर केंद्र सरकार ने मामले को लेबर कोर्ट में रेफर कर दिया।

    श्रम न्यायालय ने बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए अवार्ड I पारित किया। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष अवार्ड को चुनौती दी और मामला नए सिरे से सुनवाई के लिए श्रम न्यायालय को वापस भेज दिया गया। श्रम न्यायालय ने याचिकाकर्ता को कोई राहत देने से इनकार करते हुए अवार्ड II दिया। इसलिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता के वकील उदय वी. खोंडे ने प्रस्तुत किया कि उन्हें पूछताछ में अपना बचाव करने के लिए वकील को शामिल करने के अवसर से वंचित कर दिया गया। याचिकाकर्ता को उचित अवसर से वंचित करते हुए प्रतिवादी ने सीधे श्रम न्यायालय के समक्ष अतिरिक्त दस्तावेज पेश किए। उन्होंने आगे कहा कि जुर्माना कदाचार के अनुपात में नहीं है और याचिकाकर्ता की ग्रेच्युटी राशि और पेंशन अवैध रूप से रोकी जा रही है।

    प्रतिवादी-बैंक के लिए एडवोकेट एस.एस. विदवान्स ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कदाचार गंभीर प्रकृति का है, जिसमें गबन और वित्तीय अनियमितताएं शामिल हैं और सेवा से बर्खास्तगी की सजा का वारंट करता है। इसके अलावा, श्रम न्यायालय को प्रस्तुत दस्तावेज केवल घरेलू जांच के रिकॉर्ड है, जो याचिकाकर्ता को पहले ही प्रदान किए जा चुके है।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का निष्क्रिय मेडिकल दुकान से बिल खरीदने का आचरण याचिकाकर्ता द्वारा गोलियों की वास्तविक खपत पर संदेह करता है।

    अदालत ने दोहराया कि यदि प्रस्तुतकर्ता अधिकारी या जांच अधिकारी लॉ ग्रेजुएट नहीं हैं तो कर्मचारी को घरेलू पूछताछ के दौरान एक वकील द्वारा सहायता नहीं दी जा सकती।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जांच की कार्यवाही में पूरी तरह से भाग लिया और उसे अपना बचाव करने का पूरा मौका दिया गया।

    अदालत ने कहा,

    "यह घिसी-पिटी बात है कि यदि प्रस्तुतकर्ता अधिकारी या जांच अधिकारी लॉ ग्रेजुएट नहीं हैं तो अपराधी-कर्मचारी को घरेलू जांच के दौरान वकील की सहायता प्रदान नहीं की जा सकती।"

    अदालत ने आगे पाया कि 29 अगस्त, 2018 को आवेदन के माध्यम से श्रम अदालत के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेज केवल जांच की कार्यवाही है, जो याचिकाकर्ता को पहले ही प्रदान किए जा चुके हैं। इसलिए याचिकाकर्ता को कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने श्रम अदालत के इस निष्कर्ष पर विवाद नहीं किया कि संबंधित मेडिकल स्टोर का लाइसेंस 2010 में सरेंडर कर दिया गया, लेकिन वह अगस्त, 2013 तक उस स्टोर से बिल पेश करता रहा। अदालत ने याचिकाकर्ता के बचाव को स्वीकार नहीं किया कि स्टोर से उसे घर पर दवा पहुंचाना है, क्योंकि इस आशय का कोई सबूत नहीं है।

    ग्रेच्युटी और पेंशन का भुगतान न करने के मुद्दे के बारे में अदालत ने कहा कि यह श्रम अदालत के समक्ष कोई विषय नहीं है और याचिकाकर्ता को इस संबंध में कोई भी उपाय अपनाने की स्वतंत्रता है, जो उसके लिए उपलब्ध हो सकता है।

    इसलिए अदालत ने अवार्ड I और अवार्ड II में कोई विकृति नहीं पाई और याचिका खारिज कर दी।

    केस नंबर- रिट याचिका नंबर 6269/2022

    केस टाइटल- अजीत कुमार पुत्र मोतीलाल कासलीवाल बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया

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