बॉम्बे हाईकोर्ट ने विदेशी मुद्रा नियमों के कथित उल्लंघन पर स्टरलाइट इंडस्ट्रीज और उसके निदेशकों पर 25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाने का ईडी का आदेश रद्द किया

Shahadat

21 July 2022 2:19 PM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने पब्लिक लिमिटेड कंपनी स्टरलाइट इंडस्ट्रीज और उसके निदेशकों को राहत देते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) के विशेष निदेशक द्वारा पारित लगभग 14 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें कंपनी पर 20 करोड़ रुपये और इसके प्रमोटर अनिल अग्रवाल और तीन अन्य निदेशकों पर 5.20 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

    ईडी ने 21 नवंबर, 2008 को पारित इस आदेश से नीदरलैंड स्थित मोंटे सेलो बीवी में 100% हिस्सेदारी हासिल करते हुए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) के तहत उल्लंघन का आरोप लगाया था, जिसके पास ऑस्ट्रेलिया में दो तांबे की खदानें थीं।

    जस्टिस केआर श्रीराम और जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने 14 जुलाई को फैसले में नवंबर, 2008 के आदेश को रद्द करते हुए कहा,

    "अपराध के बाद फैसले के आदेश को पारित करना, इस प्रकार यहां ऊपर चर्चा किए गए वैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। इस प्रकार अधिकार क्षेत्र के बाहर है और यह सुनवाई योग्य नहीं है।"

    स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, इसके प्रमोटर अनिल अग्रवाल और निदेशक तरुण जैन, सोमनाथ पाटिल और ललित सिंघवी ने याचिका के माध्यम से ईडी के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसमें कहा गया कि कथित उल्लंघन को कंपाउंडिंग अथॉरिटी-मुख्य महाप्रबंधक, रिजर्व बैंक द्वारा पहले ही कंपाउंड किया जा चुका है।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संबंधित प्राधिकरण ने 20 नवंबर, 2008 को उल्लंघन की कंपाउंडिंग करते हुए कंपनी द्वारा 25 लाख रुपये और चार निदेशकों द्वारा प्रत्येक को एक लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था, जो कि उल्लंघन की कंपाउंडिंग के लिए शर्त थी। इन शुल्कों का भुगतान अगले ही दिन डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से किया गया। हालांकि, उस दिन ही ईडी ने उल्लंघन का फैसला सुनाया और कंपनी और उसके निदेशकों पर कुल 25.20 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि फेमा की धारा 15(2) के तहत इस तरह का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्यवाही या आगे की कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जा सकती है, जब उस प्रावधान की उप-धारा (1) के तहत इसे कंपाउंड किया गया है।

    ईडी द्वारा मूल नोटिस 11 जून, 2008 को जारी किया गया, जिसमें 9 वर्ष 2000 में अधिग्रहण के लिए 43.50 मिलियन अमरीकी डालर (उस समय 203.82 करोड़ रुपये) का भुगतान करते हुए फेमा की धारा 6(3)(ए) सपठित धारा 42(1) और 42(2) सपठित विनियम 2, 3, 5, 6 और के उल्लंघन का आरोप लगाया गया।

    हाईकोर्ट के समक्ष ईडी ने दलील दी कि उसे कभी सूचित नहीं किया गया कि कंपाउंडिंग प्राधिकरण के समक्ष कंपाउंडिंग आवेदन दायर किए गए, जबकि याचिकाकर्ता न्यायिक कार्यवाही के दौरान कई तारीखों पर ईडी के सामने पेश हुए थे। इसने यह भी कहा कि कंपाउंडिंग की कार्यवाही में ईडी को कंपाउंडिंग अथॉरिटी के समक्ष पक्षकार के रूप में शामिल नहीं किया गया था। ईडी ने तर्क दिया कि चूंकि कंपाउंडिंग आदेश ईडी को सुने बिना कंपाउंडिंग अथॉरिटी द्वारा पारित किए गए हैं, इसलिए आदेश टिकाऊ नहीं हैं।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह कंपाउंडिंग अथॉरिटी का कर्तव्य है कि वह कंपाउंडिंग ऑर्डर के बारे में एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी (विशेष निदेशक, ईडी) को सूचित करे ताकि आगे की कार्यवाही जारी न रखी जा सके।

    अदालत ने अधिनियम की सभी संबंधित धाराओं के साथ-साथ विनियमों के माध्यम से देखा कि जिस प्राधिकारी ने कंपाउंडिंग आदेश पारित किया था, वह सही प्राधिकारी था और कंपाउंडिंग प्राधिकरण को न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के ध्यान में उल्लंघन के कंपाउंडिंग का तथ्य का लाना आवश्यक था।

    पीठ ने कहा,

    "भारतीय रिजर्व बैंक ने बदले में याचिकाकर्ताओं को प्रत्येक कंपाउंडिंग आदेश (सभी में पांच) के संबंध में याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए भुगतान को स्वीकार करते हुए प्रमाण पत्र जारी किए हैं और पांच अलग-अलग प्रमाण पत्र जारी किए हैं। सभी प्रमाण पत्र प्रमाणित करते हैं कि याचिकाकर्ताओं ने उक्त नियमों सपठित उक्त अधिनियम की धारा 15 के तहत कंपाउंडिंग प्राधिकरण द्वारा पारित कंपाउंडिंग आदेशों के अनुपालन में कंपाउंडिंग शुल्क का भुगतान किया।"

    सभी पांच याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए अदालत ने आगे कहा,

    "इन परिस्थितियों में हम कंपाउंडिंग आदेश पारित होने के बाद याचिकाकर्ताओं को उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। हमने देखा कि आदेशों के दो सेटों में अर्थात् कंपाउंडिंग आदेश और न्यायनिर्णयन आदेश पारित होने के बीच "एक दिन" का अंतर है। जैसा भी हो, याचिकाकर्ताओं को दोष नहीं दिया जा सकता है और कंपाउंडिंग प्राधिकरण द्वारा कंपाउंडिंग आदेश पारित किए जाने के बाद उल्लंघन के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। यह क़ानून का जनादेश है।"

    केस टाइटल: स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (इंडिया) लिमिटेड और अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशक और अन्य

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