बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने योग्य कैदियों को आपातकालीन पैरोल से इनकार करने पर जेल अधीक्षक को 7 दिन की जेल का आदेश दिया

LiveLaw News Network

5 April 2022 1:30 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने नागपुर के केंद्रीय कारागार के अधीक्षक अनूपकुमार एम कुमरे को अवमानना ​​का दोषी ठहराया है। उन्हें COVID महामारी के दौरान चुनिंदा रूप से कैदियों को आपातकालीन पैरोल से वंचित करने के लिए सात दिनों के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई है।

    कोर्ट ने कहा, "यदि न्यायालय को पता चलता है कि सरकार (अधिकारियों) द्वारा किसी कैदी को पैरोल देने को अस्वीकार करने की कार्रवाई से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का दम घुटता है, तो उस स्थिति में न्यायालय को कानून के शासन को बहाल करने के लिए कार्य करना चाहिए और कैदियों के अवशिष्ट मौलिक अधिकारों का सम्मान करना ‌चाहिए।"

    जस्टिस वीएम देशपांडे और अमित बोरकर की खंडपीठ ने कुमरे की माफी को मानने से इनकार कर दिया, उन पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया और 10 सप्ताह के लिए सजा को निलंबित कर दिया। उन्हें राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करने की अनुमति दी।

    अदालत ने कहा कि अगर दूसरों से अदालत के आदेशों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है, तो कैदियों के अधिकारों का फैसला करने वालों को इसका उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    अधीक्षक ने 35 गरीब कैदियों को आपातकालीन पैरोल के उनके अवशिष्ट मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया था, जिनमें से अधिकांश इनकार को चुनौती देने का जोखिम नहीं उठा सकते थे। दूसरी ओर, छह अपात्र कैदियों को आपातकालीन पैरोल पर रिहा कर दिया गया।

    पीठ ने कहा, "एक कैदी को पैरोल या फरलो पर रिहा करने का उद्देश्य उसे सुधारना है.. कैदी को अपने परिवार और समाज के सदस्यों के साथ घुलने-मिलने का अवसर देना ताकि उसे लगे कि वह भी सोसाइटी का सदस्य है। इसलिए पैरोल से इनकार निश्चित कारणों पर आधारित होना चाहिए। मनमानी शक्ति का अभाव संविधान का एक अनिवार्य घटक है।"

    अधीक्षक ने जानबूझकर मिलिंद अशोक पाटिल और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य में अदालत की बाध्यकारी मिसाल का 41 बार उल्लंघन किया था। फैसले में अदालत ने कहा कि एक कैदी आपातकालीन पैरोल पर रिहा होने का हकदार था, भले ही उसे दो बार पहले पैरोल पर रिहा न किया गया हो।

    मामले के तथ्य

    कुमरे द्वारा आपातकालीन पैरोल से इनकार करने के खिलाफ कैदी हनुमान पेंडम ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कुमरे ने शुरू में दावा किया था कि पेंडम के अनुरोध को पहले रिहा किए जाने पर आत्मसमर्पण करने में विफल रहने के कारण खारिज कर दिया गया था। हालांकि कुछ दिनों बाद यह कहा गया कि कैदी को COVID-परीक्षण के लिए भेजा गया था।

    अदालत को सूचित किए जाने के बाद कि कई अयोग्य जेल कैदियों को आपातकालीन पैरोल दी गई थी, एडवोकेट एफटी मिर्जा को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया गया था। पूर्ण विवरण मांगने के बाद, पीठ ने कुमरे द्वारा दायर हलफनामों में कई विसंगतियां पाईं। सरेंडर करने और समय पर सरेंडर न करने की दोनों सूचियों में एक-एक कैदी का नाम मिला।

    अंत में, 8 अक्टूबर, 2021 को पीठ ने न्यायालयों की अवमानना ​​(बॉम्बे हाईकोर्ट) नियम, 1994 के नियम 9(1) के तहत स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना ​​का नोटिस जारी किया। इस बीच पीठ को एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि कुमरे ने भी कैदियों को सूचित नहीं किया कि वे आपातकालीन पैरोल के हकदार हैं।

    अदालत ने अपराध शाखा (नागपुर) के डीसीपी द्वारा जांच का आदेश दिया, पाया कि 35 पात्र कैदियों के आपातकालीन पैरोल खारिज कर दिए गए थे जबकि छह अपात्र कैदियों को पैरोल दी गई थी।

    कुमरे ने शुरू में अपने रुख को सही ठहराने की कोशिश की, बाद में बिना शर्त माफी मांगी।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    पीठ ने कहा कि उसकी वास्तविक चिंता कैदियों की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाली अदालत की बाध्यकारी मिसाल का चयनात्मक आवेदन और कानून के शासन को तोड़ना था।

    यह नोट किया गया कि जब हाईकोर्ट का एक निर्णय "एक निष्कर्ष पर समाप्त होता है तो इस राज्य के क्षेत्र के भीतर और इस न्यायालय के पर्यवेक्षी अधिकार क्षेत्र के अधीन सभी अधीनस्थ प्राधिकरण इसके बंधे होते हैं और उक्त निर्णय का ईमानदारी से पालन करना चाहिए।"

    "बाध्यकारी मिसाल (मिलिंद अशोक पाटिल और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य) के चयनात्मक अनुपालन से न केवल गरीब कैदियों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और न्याय प्रशासन में कैदियों के विश्वास को प्रभावित करता है, बल्कि यह संदेश देकर न्यायालय की गरिमा को भी कम करता है। इस न्यायालय की बाध्यकारी मिसालों को चुनिंदा रूप से दरकिनार किया जा सकता है ताकि मिसाल के ऐसे कानून के उद्देश्य को ही विफल किया जा सके, जिससे न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचे।"

    माफी क्यों स्वीकार नहीं की जा सकती

    अदालत ने कहा कि माफी स्वीकार करने से एक बुरी मिसाल कायम होगी और भविष्य में इस तरह की प्रथा को बढ़ावा मिलेगा। "माफी मांगना अवमानना ​​कार्यवाही को छोड़ने का आयरन-कास्ट रूल नहीं है।"

    इसके अलावा, कार्यवाही के प्रारंभिक चरण में माफी मांगी जानी चाहिए, जिसे स्वीकार किया जाएगा, बशर्ते कि अवमानना ​​​​कार्य ने अदालत की गरिमा पर कोई दाग न लगाया हो, न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं किया हो और "वास्तविक और ईमानदार" हो।

    महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने माना कि सिर्फ सजा से बचने के लिए माफी नहीं मांगी जा सकती। इसने यह भी माना कि माफी और औचित्य साथ-साथ नहीं चल सकते। पीठ ने तर्क दिया कि माफी एक पश्चाताप का कार्य है, इसलिए इसे न्यायालयों की अवमानना अधिनियम के तहत कार्रवाई को विफल करने के लिए एक सार्वभौमिक सूत्र के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    केस शीर्षक: हनुमान आनंदराव पेंडम बनाम महाराष्ट्र राज्य

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