बॉम्बे हाईकोर्ट ने साइकिल से टक्कर मारने के मामले में 9 साल के बच्चे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर हैरत जताई, मुआवजे का आदेश दिया

Shahadat

9 Nov 2022 5:24 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने साइकिल से टक्कर मारने के मामले में 9 साल के बच्चे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर हैरत जताई, मुआवजे का आदेश दिया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में 'हैरान' और 'आश्चर्य' व्यक्त किया कि पुलिस ने 9 साल के बच्चे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 83 में साइकिल चलाते समय गलती से महिला को टक्कर मारने का मामला दर्ज किया।

    जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस एस एम मोदक की पीठ ने अपने आदेश में कहा,

    "कार्रवाई अपराध दर्ज करते समय संबंधित अधिकारी द्वारा पूरी तरह से दिमाग का इस्तेमाल न करने को दर्शाती है।"

    आईपीसी की धारा 83 में प्रावधान है कि 7 से 12 वर्ष की आयु के बच्चे द्वारा किया गया कुछ भी अपराध नहीं है, जिसने उस अवसर पर अपने कार्यों की प्रकृति और परिणामों को समझने के लिए पर्याप्त परिपक्वता प्राप्त नहीं की।

    बच्चे की मां ने आईपीसी की धारा 338 और मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित कार्यवाही के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने के लिए याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट श्रवण गिरी ने कहा कि याचिकाकर्ता के बेटे की उम्र 9 साल है। इसलिए आईपीसी की धारा 83 के कारण पुलिस द्वारा कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकी। घटना के मीडिया कवरेज से लड़के को आघात पहुंचा, जो स्पष्ट रूप से दुर्घटना थी।

    राज्य के एपीपी जेपी याज्ञनिक ने एफआईआर रद्द करने पर आपत्ति नहीं जताई। उन्होंने आगे अदालत को बताया कि एफआईआर दर्ज करने वाले सहायक पुलिस आयुक्त के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई।

    शिकायतकर्ता के अनुसार याचिकाकर्ता के नाबालिग बेटे ने साइकिल चलाते समय अपना संतुलन खो दिया और अपनी मां को टक्कर मार दी, जिससे उसकी मां घायल हो गई।

    अदालत ने कहा कि तथ्य स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं कि घटना दुर्घटना थी। अदालत ने कहा कि जांच से पहले भी मामले में 'सी' की संक्षिप्त रिपोर्ट दर्ज की गई, लेकिन मामले को प्रचारित किए जाने से लड़के को काफी नुकसान हुआ।

    थाने से जुड़े पुलिस उपनिरीक्षक ने अपने हलफनामे में कहा कि एफआईआर कानून की भ्रांति के चलते दर्ज की गई। उनका इरादा नाबालिग बच्चे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने किशोर न्याय अधिनियम (छोटे अपराध) की धारा 2 (45) के तहत रिपोर्ट तैयार की, लेकिन बच्चे के खिलाफ कोई जबरदस्ती नहीं की। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने के लिए बिना शर्त माफी भी मांगी।

    अदालत को सूचित किया गया कि 'सी' सारांश रिपोर्ट किशोर न्यायालय को प्रस्तुत की गई लेकिन हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद कोई आदेश पारित नहीं किया गया है।

    अदालत ने कहा,

    "पुलिस अधिकारी के लिए गलतफहमी या कानून की अनभिज्ञता बहाना नहीं है। अजीबोगरीब तथ्यों के बीच इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बच्चा केवल 9 वर्ष का है। पुलिस की कार्रवाई करने से यानी एफआईआर दर्ज करने से नौ साल को बच्चे की मन-मस्तिष्क को चोट लगी।

    अदालत ने नाबालिग लड़के के खिलाफ चल रही एफआईआर और कार्यवाही रद्द कर दी।

    अदालत ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पर भी नाराजगी व्यक्त की, जिन्होंने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद मामले को नहीं उठाया। कोर्ट ने 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया, राज्य सरकार द्वारा याचिकाकर्ता को भुगतान किया जाना है। अदालत ने राज्य सरकार को इस चूक के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से जुर्माना वसूल करने का निर्देश दिया।

    केस नंबर- आपराधिक रिट याचिका नंबर 3062/2022

    केस टाइटल- 'एके' बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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