बॉम्बे हाईकोर्ट ने लाइब्रेरियन को राहत दी, कहा- पेंशन की पात्रता की गणना में उसके पार्ट-टाइम रोजगार का 50% शामिल किया जाना चाहिए

Brij Nandan

30 Jun 2023 8:37 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने लाइब्रेरियन को राहत दी, कहा- पेंशन की पात्रता की गणना में उसके पार्ट-टाइम रोजगार का 50% शामिल किया जाना चाहिए

    Bombay High Court 

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर पीठ ने एक लाइब्रेरियन को पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ की अनुमति इस आधार पर दी है कि उसके पद की पुष्टि होने से पहले पार्ट-टाइम कर्मचारी के रूप में की गई सेवा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

    पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1982 के तहत पेंशन के लिए उसकी पात्रता का आकलन करते समय पार्ट टाइम कर्मचारी के रूप में उसके कार्यकाल का 50 प्रतिशत शामिल किया जाना चाहिए।

    जस्टिस रोहित देव और जस्टिस एमडब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने लेखा अधिकारी, महालेखाकार के पेंशन से इनकार करने के आदेश को रद्द कर दिया।

    बेंच ने कहा,

    "उपरोक्त निर्णयों में निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए, यह मानना होगा कि याचिकाकर्ता 1 द्वारा प्रदान किए गए पार्ट टाइम रोजगार के 50% को योग्यता सेवा की गणना के उद्देश्य से विचार करना होगा।"

    याचिकाकर्ता प्रतिभा प्रकाश अलमस्त ने उन्हें पेंशन देने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    आदेश में कहा गया है कि अल्मास्ट को 2012 में पूर्णकालिक लाइब्रेरियन के रूप में नियुक्त किया गया था, 2016 में उनकी सेवानिवृत्ति से केवल तीन साल पहले, उन्होंने पेंशन के हकदार होने के लिए 10 साल की अपनी न्यूनतम योग्यता सेवा पूरी नहीं की थी।

    याचिकाकर्ता के वकील आनंद परचुरे ने कहा कि आदेश में अंशकालिक लाइब्रेरियन के रूप में 16 साल और 10 महीने की सेवा की पूरी तरह से अनदेखी की गई है।

    यह तर्क दिया गया कि यदि याचिकाकर्ता के अंशकालिक रोजगार के 50% को ध्यान में रखा जाए तो उसने 12 साल और 4 महीने की अर्हक सेवा प्रदान की है और पेंशन की हकदार है।

    उन्होंने आगे कहा कि पेंशन की पात्रता पर महाराष्ट्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1982 के नियम 30 और 31 के साथ पढ़े गए नियम 57, नोट 1 की कसौटी पर विचार करना होगा।

    राज्य सरकार ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता को 30.06.2012 को पूर्णकालिक लाइब्रेरियन के रूप में नियुक्त किया गया था, यानी 31.10.2005 के सरकारी संकल्प जारी होने के बाद, जिसने परिभाषित अंशदान पेंशन योजना शुरू की, जिसने तत्कालीन पेंशन योजना को बदल दिया, याचिकाकर्ता पेंशन का हकदार नहीं है।

    हालांकि, अदालत ने रेणुका चंद्रभान उमरेडकर बनाम महाराष्ट्र राज्य में बॉम्बे हाईकोर्ट के 2021 के फैसले पर भरोसा किया। राज्य के तर्क को अस्वीकार करेगा।

    इसके साथ ही अदालत ने अकाउंटेंट के 2019 के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को सभी पेंशन लाभ प्रदान किए।

    केस टाइटल - प्रतिभा प्रकाश अलमस्त और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य

    केस नंबर- WP 80 ऑफ 2020

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:



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