बॉम्बे हाईकोर्ट ने मर्डर केस में शिकायतकर्ता के पूर्व वकील को विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Brij Nandan

25 Jan 2023 4:07 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने मर्डर केस में शिकायतकर्ता के पूर्व वकील को विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने महाराष्ट्र के अहमदनगर में वकील संभाजी राजाराम की हत्या से संबंधित मुकदमे में उज्ज्वला पवार की विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति को बरकरार रखा है। पवार ने पहले इसी मामले में शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था।

    जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस अभय वाघवासे की खंडपीठ ने कहा कि जिस तरह एक आरोपी को केस लड़ने के लिए अपने पसंद का वकील चुनने का अधिकार है उसी तरह का अधिकार शिकायतकर्ता के पास भी है, कुछ सीमित तरीके से यानी राज्य की अनुमति लेकर अपनी पसंद का वकील चुनना।

    पीठ ने कहा,

    "ऐसी परिस्थिति में, कानून और न्यायपालिका विभाग से मूल फ़ाइल को ध्यान में रखते हुए, हम यह नहीं पाते हैं कि प्रतिवादी संख्या 1 (राज्य) द्वारा प्रतिवादी संख्या 2 (पवार) को विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करने का निर्णय दुर्भावनापूर्ण है।“

    पीठ ने शिवाजी टेक (68) और उनके बेटे शरद टेक (35) की उस याचिका पर यह आदेश दिया, जो राज्य द्वारा पवार को विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने की 30 सितंबर 2021 की अधिसूचना के खिलाफ थी।

    अभियुक्तों ने निचली अदालत के उस आदेश को भी चुनौती दी जिसमें उनकी नियुक्ति पर उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया था।

    2019 में, नेवासा पुलिस स्टेशन ने चार लोगों के खिलाफ वकील संभाजी राजाराम टेक और एक संतोष सुंदर घुने की कुल्हाड़ी से दिनदहाड़े हत्या करने का अपराध दर्ज किया। हमले में शिकायतकर्ता और एक अन्य व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गए। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 34 सहपठित धारा 302, 307, 341, 201, 324, 323, 504, 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    शिकायतकर्ता रवींद्र गोसावी ने अभियोजन पक्ष की सहायता के लिए पवार के लिए अदालत के समक्ष दो आवेदन दायर किए थे, जिन्हें अनुमति दी गई थी।

    दलीलों के दौरान, अपीलकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि चूंकि पवार ने शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था, इसलिए उनका आचरण अभियुक्तों के प्रति पूर्वाग्रहपूर्ण होगा।

    यह दलील दी गई कि वकील की भूमिका केवल पुलिस का माउथपीस बनने की नहीं है, बल्कि अभियुक्तों के लिए निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने की भी है, जो वर्तमान मामले में संभव नहीं होगा।

    एपीपी ने अदालत को सूचित किया कि पवार को विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करते समय सभी नियमों और विनियमों का पालन किया गया है। रेमेंबरेंसर ऑफ लीगल अफेयर्स (आरएलए) की मंजूरी भी ली गई। उन्होंने कहा कि तथ्यों से पता चलेगा कि कैसे वकील की हत्या कर दी गई और यह एक जघन्य अपराध बन गया।

    शुरुआत में, पीठ ने नेमी चंद बनाम राजस्थान राज्य और अन्य में राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से एक वकील लोक अभियोजक के साथ अदालत को संबोधित कर सकता है, वो विशेष लोक अभियोजक के रूप में भी नियुक्त किया जाए।

    पीठ ने कहा,

    "कोई भी सामान्य बयान नहीं दिया जा सकता है कि केवल इसलिए कि प्रतिवादी नंबर 2 (पवार) ने एक विशेष स्तर शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था, इससे अभियुक्तों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा होगा।"

    हालांकि, अदालत ने कहा कि वह जांच कर सकती है कि नियुक्ति में उचित प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं। इसने कानून और न्यायपालिका विभाग से रिकॉर्ड मांगा था।

    कोर्ट ने कहा कि पवार की एसपीपी होने की सहमति उन्हें एसपीपी के रूप में नियुक्त करने के आवेदन से पहले दिनांकित थी, जो उसे अजीब लगी। कोर्ट ने कहा कि राज्य को इस बारे में नियम बनाने चाहिए कि क्या ऐसे दस्तावेज आवेदन के साथ होने चाहिए, या आवेदन प्राप्त करने के बाद राज्य सरकार द्वारा सहमति एफिडेविट और घोषणा की मांग की जाएगी।

    बहरहाल, अदालत ने कहा कि सभी शर्तों का पालन किया गया है। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई।

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