बॉम्बे हाईकोर्ट में भीमा कोरेगांव मामले में गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज

LiveLaw News Network

8 Feb 2021 9:46 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट में भीमा कोरेगांव मामले में गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने (सोमवार) एलगर परिषद के माओवादी लिंक मामले में आरोपी वरिष्ठ पत्रकार और कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज कर दी।

    जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने विशेष अदालत के एक आदेश के खिलाफ नवलखा द्वारा दायर आपराधिक अपील पर आदेश पारित किया। इसमें पिछले साल जून में डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए नवलखा के आवेदन को खारिज कर दिया था। वह 14 अप्रैल, 2020 को अपने आत्मसमर्पण के बाद से जेल में है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "हम ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखते हैं।"

    नवलखा ने इस आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत मांगी कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) 90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर अपनी चार्जशीट दाखिल करने में विफल रही। हालांकि, एनआईए ने दावा किया कि 29 अगस्त से 1 अक्टूबर 2018 के बीच नवलखा को 34 दिनों तक नजरबंद रखा गया था, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया था। इसलिए, यह उनकी हिरासत अवधि में शामिल नहीं किया जा सका।

    नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता, अपने वकील कपिल सिब्बल और वकील युग चौधरी ने कहा कि अदालत के एक आदेश के बाद नवलखा को घर में नजरबंद रखा गया था, इसलिए इसे 'न्यायिक हिरासत (Judicial Custody)' कहा जाएगा। आदेश ने

    उनके कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.PC) की धारा 167 (2) के तहत रिहाई के लिए अपनी दलील को वैध बनाता है।

    सिब्बल ने तर्क दिया था कि एनआईए ने पिछले साल 29 जून को अपनी चार्जशीट दाखिल करने के लिए एक्सटेंशन की मांग की थी। तब तक नवलखा ने 34 दिनों की हिरासत मिलाकर, लगभग 100 दिन जेल में बिताए थे।

    एनआईए का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता एसवी राजू ने तर्क दिया कि एक अभियुक्त को अदालत में पेश किए जाने से पहले गिरफ्तारी की तारीख प्रासंगिक थी, जबकि यह निर्णय लेना था कि उसे डिफ़ॉल्ट जमानत दी जानी चाहिए या नहीं।

    महाराष्ट्र पुलिस ने 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित 'एल्गर परिषद' और भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त, 2018 को नवलखा को गिरफ्तार किया था। सम्मेलन से जुड़े कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों पर देशव्यापी कार्रवाई के माध्यम से, पुलिस ने एक बड़ी माओवादी साजिश का पर्दाफाश करने का दावा किया।

    बाद में मामला एनआईए को सौंप दिया गया था।

    अगस्त 2018 में नवलखा की गिरफ्तारी और उसके बाद उन्हें नजरबंद (हाऊस अरेस्ट) किया गया था, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया था। तब नवलखा ने सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च 2020 को नवलखा को उनकी जमानत अर्जी खारिज करने के बाद तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर विस्तार की जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई। इसके बाद नवलखा ने 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण कर दिया था।

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