बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरसी रिन्यूअल में देरी के लिए एक्स्ट्रा फीस लगाने के खिलाफ जनहित याचिका पर जवाब के लिए केंद्र को 'आखिरी मौका' दिया

Shahadat

21 Dec 2022 5:31 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरसी रिन्यूअल में देरी के लिए एक्स्ट्रा फीस लगाने के खिलाफ जनहित याचिका पर जवाब के लिए केंद्र को आखिरी मौका दिया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र से केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर जवाब मांगा। उक्त संशोधन के तहत मोटर वाहन रजिसिट्रेशन सर्टिफिकेट के रिन्यूअल में देरी के मामले में एक्स्ट्रा फीस ली जाती है।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस एस. वी. गंगापुरवाला और जस्टिस संतोष चपलगांवकर की खंडपीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार को 31 जनवरी, 2023 तक जवाब दाखिल करने का 'आखिरी मौका' दिया। अदालत ने पहले प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया, लेकिन कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया।

    याचिकाकर्ता के स्वाक्ष ऑटो रिक्शा संघ, ऑटो रिक्शा चालकों और मालिकों के लिए काम करने वाला संगठन है।

    याचिका 1989 के नियमों के नियम 81 में संशोधन अधिसूचना को चुनौती देती है। इस अधिसूचना के माध्यम से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट के रिन्यूअल में विलम्ब होने पर परिवहन एवं गैर-परिवहन सभी वाहनों पर एक्स्ट्रा फीस लगाई जाती है।

    याचिका में कहा गया कि एक्स्ट्रा फीस लगाने से वाहन मालिकों को कठिनाई होती है, जो वित्तीय बाधाओं के कारण वाहन का उपयोग नहीं कर पाते हैं और बाद में रिन्यूअल के लिए आवेदन करते हैं। याचिका में तर्क दिया गया कि ऐसे मामले में मालिक को वाहन का उपयोग नहीं करने के बावजूद अधिक भुगतान करना पड़ता है।

    याचिका के मुताबिक यह एक्स्ट्रा फीस दंडात्मक उपाय है। सेवाओं के लिए फीस लगाने की शक्ति मोटर वाहन अधिनियम 1988 (एमवी अधिनियम) की धारा 211 में दी गई। याचिका में कहा गया कि एक्स्ट्रा फीस कानून के अधिकार के बिना है, क्योंकि अधिनियम की धारा 211 इसके लिए प्रावधान नहीं करती।

    याचिका के अनुसार, मोटर वाहन अधिनियम की धारा 39 और 56 उन मोटर वाहनों के साथ व्यवहार करती हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन समाप्त हो गया है या जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया। अधिनियम की धारा 39 और धारा 56 का उल्लंघन अधिनियम की धारा 192 के तहत दंडनीय है। रजिस्ट्रेशन को रिन्यूअल न कराना भी इसी धारा के तहत दंडनीय है।

    याचिका में कहा गया कि 2017 में मद्रास हाई कोर्ट ने सेंट्रल चेन्नई सिटी ऑटो ऊटुनारगल संगम और अन्य बनाम सचिव, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और अन्य मामले में 29 दिसंबर 2016 की इसी तरह की अधिसूचना रद्द कर दी गई थी। दिसंबर, 2016 की अधिसूचना को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मद्रास एचसी के फैसले से अस्थायी रूप से रोक दिया गया।

    याचिका के अनुसार, अन्य हाईकोर्ट के समक्ष विवादित अधिसूचना को चुनौती दी गई और विभिन्न हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।

    याचिका में दावा किया गया कि संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(जी) और 21 का उल्लंघन है।

    याचिका में प्रार्थना की गई कि अधिसूचना और परिणामी संशोधन को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट के विलंबित रिन्यूअल पर एक्स्ट्रा फीस लगाने की सीमा तक अल्ट्रा-वायरस और असंवैधानिक घोषित किया जाए।

    याचिका में यह भी मांग की गई कि परिवहन आयुक्त को जनहित याचिका के लंबित रहने के दौरान वाहन मालिकों से कोई एक्स्ट्रा फीस वसूलने से रोका जाए।

    याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट रुतुराज बाथे और वैभव कुलकर्णी पेश हुए। सरकारी वकील पी पी काकड़े राज्य के लिए पेश हुए और एडवोकेट डी पी सिंह भारत संघ के लिए पेश हुए।

    केस टाइटल- के स्वाक्षक ऑटो रिक्शा संघ बनाम भारत संघ

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