बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए अरुण गवली को पुलिस एस्कॉर्ट के बिना पैरोल की अनुमति दी

Sharafat

16 Nov 2022 5:55 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए अरुण गवली को पुलिस एस्कॉर्ट के बिना पैरोल की अनुमति दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने हाल ही में गैंगस्टर से राजनेता बने अरुण गवली को अपने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए बिना पुलिस सुरक्षा के पैरोल की अनुमति दी। कोर्ट ने उस पर लगाई गई कैश सिक्योरिटी और जमानत की राशि भी कम कर दी।

    जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वृषाली वी. जोशी की खंडपीठ ने गवली द्वारा दायर एक रिट याचिका को आंशिक रूप से यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि प्राधिकरण ने पैरोल देते समय पुलिस एस्कॉर्ट और बड़ी मात्रा में नकद सुरक्षा और ज़मानत की शर्त लगाने का कोई कारण नहीं बताया है।

    याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 302 और 120-बी और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम की धारा 3 के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था। गवली ने 17 नवंबर 2022 को मुंबई में अपने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र जेल (मुंबई फरलो और पैरोल) नियम 1959 के नियम 19(2) के तहत विशेष पैरोल के लिए आवेदन किया था।

    उप महानिरीक्षक (जेल) (पूर्व) नागपुर ने याचिकाकर्ता को दी गई विशेष पैरोल की अवधि को यात्रा अवधि सहित 4 दिनों तक सीमित कर दिया। इसके अलावा, पैरोल को पुलिस एस्कॉर्ट और 5 लाख रुपये नकद सुरक्षा और इतनी ही राशि की जमानत के साथ मंज़ूर किया गया था।

    याचिकाकर्ता ने पैरोल की सीमित अवधि के साथ-साथ पुलिस एस्कॉर्ट की शर्त और हाई सिक्योरिटी को को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता का मामला यह था कि वह लगभग 14 साल की कैद काट चुका है और उसने कभी भी कोई असामाजिक गतिविधि नहीं की है या इस अवधि के दौरान उसके खिलाफ कोई अपराध दर्ज नहीं हुआ है। उन्हें अपने कारावास के दौरान 12 बार पैरोल/फरलो दिया गया है और सभी शर्तों का पालन किया गया है और प्रत्येक अवसर पर बिना देरी के नियत तारीख पर आत्मसमर्पण किया है।

    राज्य ने अपने जवाब में प्रतिकूल पुलिस रिपोर्ट और याचिकाकर्ता के कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के आधार पर पैरोल की शर्तों को सही ठहराया। इसके अलावा, 1959 के नियमों के नियम 19(2) में संशोधन के मद्देनजर अगले 4 दिनों के विस्तार के प्रावधान के साथ यात्रा अवधि सहित चार दिनों के लिए विशेष पैरोल दी गई थी।

    अदालत ने 1959 के नियमों के नियम 19(2) की संशोधित अधिसूचना का अवलोकन किया, जो पैरोल की प्रतिबंधित समय अवधि प्रदान करता है। याचिकाकर्ता के वकील एमएन अली ने स्वीकार किया कि संशोधित नियम 19(2) के अनुसार विशेष पैरोल विस्तार के प्रावधान के साथ केवल 4 दिनों के लिए होगा।

    राज्य के लिए एपीपी एसएम उके ने पुलिस एस्कॉर्ट को सही ठहराने के लिए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त की रिपोर्ट का हवाला दिया। रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता की आपराधिक गतिविधियों में शामिल अन्य गिरोहों के साथ प्रतिद्वंद्विता है और इसलिए उसकी जान को खतरा है। उके ने कहा कि याचिकाकर्ता की समय पर वापसी सुनिश्चित करने के लिए उचित जमानत राशि तय की गई है।

    एडवोकेट अली ने तर्क दिया कि पिछले 12 मौकों पर पुलिस एस्कॉर्ट की शर्त नहीं लगाई गई थी, जहां प्राधिकरण द्वारा समान कारणों का हवाला देने के बावजूद याचिकाकर्ता को पैरोल या फरलो दिया गया है। उन्होंने आगे कहा कि पिछले मौकों पर लगभग 15000 रुपए की सिक्योरिटी पर पैरोल / फरलो दिया गया।

    अदालत ने कहा कि एसीपी की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता के खिलाफ 46 अपराध दर्ज किए गए हैं, लेकिन सभी अपराध उसके क़ैद से पहले के थे।

    अदालत ने कहा,

    "इस समय कोई विशेष कारण नहीं बताया गया है कि याचिकाकर्ता को जीवन के खतरे की आशंका में ऐसी कौन सी बाध्यकारी परिस्थितियां हैं, जो प्राधिकरण के लिए वजनदार हैं।"

    अदालत ने कहा कि विवादित आदेश पुलिस अनुरक्षण का आदेश देने का कारण नहीं बताता है। इसलिए, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पुलिस अनुरक्षण की स्थिति उचित नहीं है

    अदालत ने आगे देखा कि बिना कोई कारण बताए याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये की जमानत सिक्योरिटी लगाई गई है।

    अदालत ने कहा,

    "भारी सुरक्षा लागू करना अंततः पैरोल का लाभ उठाने से वंचित करना होगा।"

    अदालत ने पैरोल आदेश में संशोधन करते हुए पुलिस एस्कॉर्ट की शर्त को रद्द कर दिया और सुरक्षा की राशि घटाकर एक लाख रुपए कर दी।

    केस नंबर- आपराधिक रिट याचिका संख्या 782/2022

    केस टाइटल - अरुण गवली बनाम उप महानिरीक्षक (जेल) (पूर्व) नागपुर और अन्य।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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